दास्तान-ए-रुस्तम व तहमीना

एक दिन जब रुस्तम सोकर उठा तो उसने अपने को उदास पाया। तरकश में तीर भरे और कमर कस वह शिकारगाह की तरफ जाने का इरादा कर अपने घोड़े रख़्श पर जा बैठा और उसको ऐड़ लगाई। रख़्श हवा में बातें करता तूरान सीमा के पास पहुँच गया। उस बियाबान में उसने गूरखरों के झुण्ड बिखरे देखे, जिन्हें देखकर रुस्तम के उदास चेहरे पर खुशी की लाली दौड़ गई और खुशी से उसने रख्श की लगाम खींची और नीचे कूदा। तीर व कमान, गदा और कमन्द से देखते-ही-देखते उसने कई गूरखर मार गिराए।


झाड़ और पेड़ों की सूखी टहनियों को जमा करके उसने एक अलाव सुलगाया और उस पर एक गूरखर को भूनना आरम्भ कर दिया। उसके बाद पेट भरकर शिकार खाया और चैन की नींद सो गया। रख्श घास चरता हुआ रुस्तम के पास ही घूमता रहा।



उस शिकारगाह से सात-आठ तूरानी घुड़सवारों का गुज़रना हुआ। घोड़े के खुरों के निशान देखते, उनका पीछा करते हुए एक पानी के झरने के पास पहुंचे, जहाँ रख़्श पानी पी रहा था। रख़्श को देखते ही उन्होंने उसको पकड़ना चाहा और कमन्द उसकी गर्दन की तरफ फेंकी। रख़्श ने गुस्से में जबाबी हमला किया और किसी को लात मारी, किसी की गर्दन अपने दाँतों से दबाई। इस तरह से उनमें से तीन सवारों को मार गिराया। यह देखकर अन्य सवारों ने रख्श की दीवानगी पर काबू पाने के लिए हर तरफ से कमन्द फेंकी और उसको कैद कर लिया। फिर रख्श को हर ओर से खींचते हुए वे सवार उसे अपने शहर तूरान की तरफ ले गए।


रुस्तम जब सोकर उठा तो उसे रख़्श कहीं नज़र नहीं आया। थोड़ी देर इधर-उधर ढूँढ़ने के बाद वह रख़्श के लिए चिन्तित हो उठा। दुःख में डूबा मन बार-बार यही सवाल कर रहा था कि वायुवेग से दौड़ने वाले उस घोड़े को आखिर वह कहाँ ढूँढ़े? अबा, तरकश, गदा और म्यान में तलवार बाँधे रुस्तम पैदल चलते हुए इस बात से भी उत्तेजित था कि कैसे इस बियाबान को पैदल पार करे और युद्ध की इच्छा रखने वालों के साथ क्या व्यवहार करे। उसको इस खयाल से अपमान का अहसास हो रहा था कि जब तुर्क पूछेगे कि रख्श केसे चोरी हुआ, तो उसको बताना पड़ेगा कि उस समय रुस्तम जैसा होशियार पहलवान बेख़बर पड़ा सो रहा था। अपने मन को कड़ा कर वह रख़्श के पैरों के निशानों के पीछे-पीछे हो लिया।


रुस्तम जैसे ही समनगान शहर के समीप पहुँचा, उसके आने की खबर जंगल की आग की तरह वहाँ के बादशाह व जनता के बीच फैल गई कि ताजबख्श पहलवान पैदल ही चला आ रहा है। उसका घोड़ा रख़्श शिकारगाह में कहीं भाग गया है।


‘‘हर कोई यही कह रहा था कि यह रुस्तम पहलवान है या सुबह का उगता सूरज है।’’


शाह अपने दरबारियों के संग रुस्तम के स्वागत के लिए राजमहल से निकला और रुस्तम के समीप पहुँच कर घोड़े से उतरा और कहा कि तुम मेरे दोस्त हो। तुमसे जंग क्या करना। इस शहर में तुम्हारे आने से हम सब खुश हैं। तुम्हारी हर इच्छा हमारे सर आँखों पर है।


रुस्तम के मन में सिपाहियों से घिरे बादशाह को देखकर जो शंका उठी थी. वह बादशाह के विनम्र सम्बोधन से जाती रही। उसकी बातों को ध्यान से सुनने के बाद, रुस्तम ने कहा कि इस चरागाह से रख़्श बिना लगाम और जीन के जाने कहाँ चला गया है। सिरकण्डों के झुण्ड के पास जो छोटा-सा झरना है, वहाँ से रख़्श के पैरों के निशान समनगान शहर तक हैं। मैं अहसानमन्द हूँगा यदि आप रख़्श को वापस दिला दें। इस नेक काम के लिए आपको धन्यवाद दूंगा। यदि रख़्श नहीं मिला तो, मैं बहुतों के सर धड़ से अलग कर दूंगा।


बादशाह ने रुस्तम के क्रोध को देखकर उसको धीरज बँधाया कि ऐसी बातें उसके व्यक्तित्व से मेल नहीं खातीं। वह शाही मेहमान है। रख़्श को ढूँढ़ने में उग्रता दिखाने से कोई लाभ नहीं। बेहतर है कि वह आराम से चलकर शाही महल में आराम करें और शराब व लजीज़ खाने से अपनी थकान दूर करें। इस बीच रख़्श भी मिल जायेगा


‘‘तेज़ी और उग्रता से काम नहीं बनता है। नर्मी से साँप भी अपने सूराख से निकल आता है।’’


रुस्तम शाह की बातों को सुनकर खुश हुआ और उसका चिन्तामुक्त मन अब शाही महल में मेहमान बन थकान उतारने पर राज़ी हो गया। बादशाह रुस्तम को अपने महल में सम्मान के साथ ले गया और प्रेमपूर्वक अपने पास बिठाया और हुक्म दिया कि ज्योतिषियों को फौरन हाजिर किया जाए ताकि वह रख़्श के पाए जाने की सम्भावना पर स्वयं रुस्तम पहलवान के सामने विचार-विमर्श कर सकें। इसके बाद साज व आवाज और शवाब व शराब की महफिल जमीं। रुस्तम थका हआ था। उसको जल्द ही नींद आने लगी। वह तेजी से महफिल से उठा तो सेवकों ने उसका बिस्तर लगा कर गुलाब व अम्बर से बसा दिया। वह लेटते ही सो गया।


आधी रात गुजर चुकी थी। समय ने रात के ढलने का गजर बजाया, तभी सुगन्धित शमा हाथ में उठाए एक काया आहिस्ता-आहिस्ता चलती हुई रुस्तम के सिरहाने आकर खड़ी हो गई। रुस्तम सोते से अचानक जाग उठा ओर उसे लगा पर्दे की सरसराहट में कोई रहस्य छुपा हो। वह भेद यह था कि उस पर्दे के पीछे एक सुन्दर चाँद जैसी कन्या थी, जिसका चेहरा अन्धेरे में सूरज की तरह दमक रहा था। उसके जिस्म से रंग व खुशबू का सैलाब उमड़ रहा था। उसका लम्बा कद सूर्व के दरख़्त की तरह ऊँचा और सीधा था। उसके दोनों गाल यमन के अक़ीक़ की तरह सुर्ख थे और उसके होंठ ऐसे थे जिन्हें देखकर आशिकों का दिल उनके सीने में तड़पकर रह जाए। खुदा के बनाए इस हसीन शाहकार को अपने सामने पाकर रुस्तम जैसा बहादुर भी हैरान रह गया। उसने खुदा की महानता के आगे मन-ही-मन सर झुकाया और पूछा:


‘‘तुम कौन हो, तुम्हारा नाम क्या है? इतनी रात गए तुम यहाँ किसलिए आई हो? ’’


उस सुन्दर कन्या ने रुस्तम को जवाब दिया: “मैं समननान बादशाह की लड़कियों में से एक हूँ। मेरा नाम तहमीना है। मैं अपने दुःख के बारे में आपको बताना चाहती हूँ कि इस संसार में मेरा जोड़ा इन बादशाहों के बीच कोई नहीं है, जिसको मैं चुन सकूँ। फिर आगे बोली:


‘‘मुझे बेनक़ाब आज तक किसी ने नहीं देखा है। यहाँ तक कि मेरी आवाज भी किसी ने नहीं सुनी है।’’


कुछ पल ठहरकर तहमीना ने कहा कि आपकी बहादुरी के बेहद चर्चे सुने थे कि आप दैत्य, शेर, चीते, घड़ियाल से भी नहीं डरते। आपके बाजूओं में इतना बल है कि आप सबको पछाड़ कर रख देते हैं। काली अन्धेरी रात में आप इस तरह तूरान की सीमा में दाखिल होने से भी नहीं हिचके। एक गूरखर को भूनकर अकेले ही खा लेते हैं। जब भी आपकी गदा चलती है, तो शेर व चीते तक थर्रा उठते हैं। उकाब अगर आपकी नंगी तलबार देख लेता है तो भय से शिकारगाह की तरफ जल्द उड़ान भरने का साहस नहीं जुटा पाता है। आपके द्वारा फेंकी कमन्द का निशाना अचूक है और आपके चलाए तीरों के भय से बादल तक खून के आँसू रोने लगते हैं। आपके बारे में ये सारी बातें सुन-सुनकर, मैं दाँतों तले उँगली दबाती थी। ऐसे ही मर्द को पाने की कामना मेरे मन में थी कि खुदा ने आपको इस शहर में भेजा। मुझे तो आपको पाने की इच्छा है। यदि आप भी ऐसा सोचते हैं तो, मैं हाज़िर हूँ। परिन्दों व मछलियों के अलावा यहाँ हमें देखने वाला कोई नहीं है। सच पूछें तो मैं आपको अपने पूरे वुजूद के साथ पसन्द करती हूँ और खुदा की मर्ज़ी हुई तो आपसे एक पुत्र की इच्छा रखती हूँ। चूँकि आप शूरवीर हैं, इसलिए खुदा मुझे वैसी ही सन्तान भी देगा जो पहलवानी में हमारा नाम रोशन करेगा। तीसरी जो सबसे महत्वपूर्ण बात है कि आपके घोड़े रख्श को मैं कहीं से भी ढूँढ़कर ले आऊँगी, चाहे मुझे पूरा समनगान ही क्यों न छानना पड़े। इतना कहकर तहमीना खामोश हो गई।


रुस्तम ने अपने सामने यूँ परी चेहरे वाली हसीना को जो बात करते देखा तो उसके होश उड़ गए। चूँकि उसने रख्श को ढूँढ़ निकालने का प्रण लिया था, जिसके लिए उसको धन्यवाद देना जरूरी था, इसलिए रुस्तम ने तहमीना की बातों का जवाब दिया कि


एक हुनरमन्द बुजुर्ग आकर तहमीना के पिता से उसका हाथ रुस्तम के लिए माँगने का निवेदन करेगा।


शाह समनगान के पास जब यह खबर पहुँची, तो उसने खुशी? से यह रिश्ता मंजूर किया। अपने रस्म व रिवाज के अनुसार उसने दोनों का विवाह कर दिया।


जब सूरज का गोला अन्धेरी जुल्फों को झटककर ऊपर आया, उस समय रुस्तम ने तहमीना से विदाई ली। रुस्तम ने अपने बाजू पर बंधा बाजूबन्द खोला जिसकी बड़ी चर्चा थी। उसको तहमीना के हवाले करता हुआ बोला-“यदि लड़की हुई तो उसके बालों में यह सजा देना ताकि उसके भाग्य का सितारा चमके। यदि लड़का हुआ तो उसके बाजू पर बाप की यह निशानी बाँधना और बताना कि वह साम व नरीमान जैसे पहलवानों के वंश से है।‘‘ इतना कहकर रुस्तम ने उस परी चेहरा तहमीना की आँखों का चुम्बन लिया। तहमीना रोते हुए रुस्तम से अलग हुई और रुस्तम ने अपने दुःख को छुपा लिया।


सुबह, शाह समनगान ने रुस्तम से उसका हाल-चाल पूछा कि उसकी आवभगत में कोई कमी तो नहीं रह गई। फिर रख़्श के मिलने की खुशखबरी रुस्तम को सुनाई। अपने सामने रख़्श को पाकर रुस्तम ने उसको प्रेम से थपथपाया। शाह से विदा ली और रख़्श की पीठ पर जीन कसी और हवा से बातें करता हुआ समनगान से सीस्तान की तरफ चल पड़ा और रास्ते भर गुजरी यादों की मिठास में डूबा रहा। सीस्तान से ज़्ााबुलिस्तान की तरफ घोड़ा मोड़ा मगर वतन पहुँचकर किसी के आगे जबान न खोली कि इस बीच उसने क्या देखा और क्या पाया।


‘‘नौ महीने बाद शाह की बेटी ने एक चाँद से बेटे को जन्म दिया।’’


‘‘वह हँसता था तो उसका चेहरा खिल उठता था। उसका नाम तहमीना ने सोहराब रखा।’’


‘‘जब वह एक महीने का हुआ तो लगता था साल भर का है उसका सीना रुस्तम और जलाल पहलवानों जैसा था।’’


जब वह तीन साल का हुआ तो युद्ध कला में दक्ष हो गया। जब पाँच साल का हुआ तो वह पूरा शेर दिल मर्द बन गया।


‘‘बो दस साल का हुआ तो उसके बराबर का कोई इस ज़मीन पर न था जो उससे युद्ध कर सके।’’


एक दिन सोहराब माँ के पास आया और बड़ी निडरता से पूछने लगा कि-


‘‘मैं किसके वंश से हूँ, किसका बेटा हूँ-जब कोई मुझसे मेरे बाप का नाम जानना चाहेगा, मैं क्या जवाब दूंगा। मेरे इस सवाल के जवाब को अगर छुपाया तो मैं तुम्हें जि़्ान्दा नहीं छोडूंगा।’’


सोहराब की बातें सुनकर तहमीना ने कहा कि इतनी जल्दबाज़ी ठीक नहीं है। पहले मेरी बात सुनो, सुनकर खुश हो।


‘‘तू हाथी जैसी काया रखने वाले रुस्तम पहलवान के बेटे हो जिसके बाप और दादा साम नरीमान और ज़ालज़र जैसे पहलवान थे।’’


इतना कहकर तहमीना अपनी जगह से उठी और रुस्तम का भेजा ख़त बेटे के पास लाई और बोली कि तुम्हारे बाबा ने इस खत के साथ अपने बेटे के लिए तीन थैली सोने से भरी और तीन कीमती याक़ूत ईरान से भेजे थे। जो क़ासिद यह खत लेकर आया था, उसने यह ज़बानी पैग़ाम भी दिया था कि इस भेद को शाह अफ़रासियाब को कभी पता नहीं चलना चाहिए क्योंकि वह रुस्तम पहलवान का जानी दुश्मन है और तूरान के लिए भी किसी लानत से कम नहीं है। हो सकता है कि वह तुमसे बदला ले और माँ और बेटे दोनों को मरवा डाले। तहमीना ने सोहराब से आगे कहा


‘‘तेरे बाबा को मैंने भेजे पैग़ाम में तेरे बारे में कुछ नहीं बताया। यदि उन्हें पता चल जाता कि उनका पुत्र उन्हीं की तरह है, तो वह फौरन तुझे अपने पास बुला लेते और तेरी माँ का कलेजा तेरी जुदाई का ग़म न सह पाती।’’


यह सुनकर सोहराब ने माँ से पूछा-“आखिर इस भेद को तुमने मुझसे क्यों छुपाया जबकि रुस्तम जैसे नामी पहलवान के नाम से जंग की तारीख लिखी जायेगी। ऐसे खानदान की हक़ीक़त को मुझसे छुपाने का क्या तुक था। अब मैं एक फ़ौज तैयार करूँगा और तुर्कों से युद्ध करूँगा। शाह काऊस के विरोध में खड़ा हो ईरान से तूस तक जाऊँगा। उस समय मेरे आगे गुरगीन, गुदर्ज, गिव, नौज़र, बहराम जैसे नामी पहलवान भी नहीं टिक पायेंगे।‘‘


‘‘रुस्तम को ताज, खजाना दूंगा और उसको काउस के तख्ते शाही पर बादशाह की तरह बिठाऊँगा।’’


मैं ईरान से तूरान तक युद्ध करूँगा और सब जगह विजय-पताका फहराता हुआ अफ़रासियाब से उसका तख्त छीनूँगा और आपको ईरान की मालिका बनाऊँगा।


‘‘यदि रुस्तम जैसा बाप और सोहराब जैसा बेटा हो तब संसार में कोई भी बादशाह नहीं टिक पायेगा। जब सूरज और चाँद चमक सकते हैं तो फिर सितारों के सिर पर मुकुट क्यों?’’


इतना कहने के बाद सोहराब माँ से बोला कि पहले तुम मुझे एक घोड़ा लेकर दो। जिसके खुर फौलाद के हों, जो हाथियों का बल और परिन्दे की उड़ान, मछली की फुर्ती और हिरन की चुस्ती रखता हो। फिर देखना मैं क्या करता हूँ। तहमीना ने बेटे की बात सुनी और बेहतरीन घोड़ा देने का वचन दिया। अस्तबल खोले गए। लोग अपने बेहतरीन घोड़ों को लेकर सोहराब के पास पहुँचें सोहराब ने घोड़ा पसन्द करना आरम्भ किया। मगर जिस घोड़े पर वह उचककर बैठता, उसकी की पीठ जमीन से आ लगती। यह देखकर सोहराब उदास हो गया। सारे घोड़ेवाले अपने घोड़ों के साथ निराश लौटने लगे। तभी उनमें से एक आदमी आगे बढ़ा और सोहराब से कहा कि उसके पास रख्श की नस्ल से घोड़े का एक बच्चा है जो सोहराब के बताए गुणों से भरपूर है। यह सुनकर सोहराब खुशी से खिल उठा।


रख़्श की नस्ल का वह घोड़ा पल भर में सोहराब के आगे पेश किया गया। उसका क़द और बल देखकर सोहराब ने उसको पसन्द कर लिया। प्यार से उसकी पीठ थपथपायी और उस पर जीन कसकर सवारी की। सोहराब उसकी फुर्ती व चुस्ती देखकर कह उठा कि बेहतरीन घोड़ा मेरे हाथ लगा है। इसके बाद सोहराब घर लौटा और एक बड़ी फौज जमा की जिसमें दक्ष योद्धा थे।


सोहराब ने अपने नाना से सहायता व नेतृत्व का अनुरोध किया और बताया कि वह ईरान की तरफ फौज लेकर बढ़ने वाला है। शाह समनगान ने नवासे की जो यह दिलेरी देखी तो, उसका मन रखने के लिए उसको हर प्रकार का समर्थन देने का वचन दिया। ताज, तख़्त, जिरह बख़्तर, घोड़े, हथियार, सोना-चाँदी, मोती, हीरे, उसको दिए और दूध पीते बच्चे की इस बहादुरी पर आश्वर्यचकित हो उसे पूरे शाही ठाठ से लड़ने के लिए विदा किया।



 


 


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