आध्यात्मिक हत्या
सुनो, सुनो, सुनो
आज ही, अभी देखिए
एक वरिष्ठ आचार्य की
आध्यात्मिक हत्या का सीधा प्रसारण
ढेरों साधुओं एवं गृहस्थों के मध्य
ढेरों मोबाइलों के कैमरों के मध्य
ढेरों मंत्रोच्चारण के मध्य
जो जहाँ बैठा है वहीं से दर्शन लाभ ले
पुण्य कमा ले
मोक्ष का मार्ग प्रशस्त कर ले
दुनियाभर में प्रतिदिन इतने लोगों की हत्या होती है
एक यह भी सही
क्या हुआ गर यह एक वरिष्ठ साधु हैं
मनुष्य इतना विकसित तो शायद आरंभ से ही है
कि धर्म की आड़ में, ढोल पीट कर
उनकी बेबस, बेकल मृत्यु का सीधा प्रसारण कर
उसे अध्यात्म का चोगा पहना सके
जीते जी उन्हें ईश्वर का दर्जा दे
महिमामंडन कर सके
जय हो मोक्षमार्ग पर चल पाने में
समर्थ हो सकने वालों की
हम मूढ़मति क्या जानें
इन सब उच्च कोटि के क्रियाकलापों के विषय में
जो हो रहा है, अच्छा है
चिंतन का विषय हमारा नहीं
हम तो केवल जो कहा जाए
उसका अनुसरण करने हेतु बने हैं
देखो भाई, यदि कोई गृहस्थ काम का न रहे
बल्कि निरंतर, कई वर्षों तक
परिवारजनों पर बोझ बना रहे
तो इच्छा मृत्यु का प्रावधान है ना?
बस, ठीक वैसे ही सन्यासियों का है
बस यहाँ इसका नाम समाधि-मरण है
पहला, पीड़ा से निजात पाने का उथला
तो दूसरा, उच्च आध्यात्मिक अवस्था का प्रतीक
उपाय है
जो बेतुके प्रश्न तुम्हारे मस्तिष्क में उमड़ रहे हैं ना
तुम उन पर लगाम लगाओ
लेखिका ‘अभिव्यक्ति’ की सचिव हैं। जैन दर्शन में पीएचडी हैं एवं देश-विदेश में कई कॉन्फरेंसेज में अपने रिसर्च-पेपर प्रस्तुत कर चुकी हैं। -संपादक