आजादी
ये जिन्दगी है
कैद में नहीं रह सकती
आजादी माँगती है
रोते नहीं बैठ सकती
दुःख की घड़ियों में भी
हँसी की चंद घड़ियाँ चाहती है
दिमाग पर से बोझ उतार
हल्कापन चाहती है
चिंता से इतर
अन्तस् में शांति के कुछ क्षण बुनती है
खुली आँखों से यदि न देख पाए
तो रात्रि में स्वप्न बुनती है