‘अभिव्यक्ति’ की परामर्शदाता साहित्यकार चन्द्रकान्ता जी से साक्षात्कार

आज से लगभग 27-28 वर्ष पूर्व एक छोटा सा पौधा रोपा गया था। आज वह फल-फूल कर एक घने वृक्ष का रूप


धारण कर चुका है। मैं बात कर रही हूँ साहित्य को बढ़ावा देने वाली उस संस्था की जिसका नाम है ‘अभिव्यक्ति’। अभिव्यक्ति


परिणाम है दिवगंत श्रीमती त्रिशला जी जैन के अथक प्रयासों का जो इसकी संस्थापिका थीं। अभिव्यक्ति की ज्यादातर सदस्याएं गृहणियां हैं। गृहस्थ कार्यों के बीच अपना समय निकाल कर किसी एक लेखक की पुस्तक पढ़ती हैं फिर चर्चा होती है उसी पुस्तक के लेखक के साथ। अभिव्यक्ति की परामर्शदाता है हिन्दी साहित्य जगत की जानी मानी लेखिका आदरणीय चन्द्रकान्ता जी। चन्द्रकान्ता जी का रचना संसार अत्यन्त व्यापक है। 13 कहानी संग्रह, पांच कथा संकलन, आठ उपन्यास, एक कविता संग्रह के अतिरिक्त दो संस्मरण प्रकाशित हो चुके हैं। कथा सतिसर उनका सबसे विख्यात उपन्यास है उन्हें व्यास सम्मान सहित अन्य कई सम्मानों से भी नवाजा जा चुका है। अभिव्यक्ति को लेकर चन्द्रकान्ता जी से मधु कमल जैन की हुई बातचीत प्रस्तुत हैः


 


मधु कमल जैन: चन्द्रकान्ता जी आप कई वर्षों से अभिव्यक्ति से जुड़ी हैं अभिव्यक्ति की परामर्शदाता है इसके लिए अभिव्यक्ति परिवार आपका बहुत आभारी हैं सबसे पहले बताइए आप इस संस्था से कब और कैसे जुड़ी ?


उत्तर: चन्द्रकान्ताजी, करीब बीसेक वर्ष पहले, जब मैं पालम विहार में रह रही थी, पड़ोस में रहती कुंथा जी की बहू कुंथा जी का संदेश लेकर मेरे पास आई कि वे मुझे अभिव्यक्ति में आमंत्रित करना चाहती हैं, जहाँ मेरे उपन्यास पर विचार-विमर्ष होगा। दिल्ली और एनसीआर में हिन्दी साहित्य के प्रचार - प्रसार के लिए प्रतिबद्ध इस संस्था के बारे में, मैं पहले ही सुन चुकी थी सो मैंने उनके आग्रह पर अपने दो उपन्यास,ऐलान गली जिंदा है, और अपने-अपने कोणार्क, उन्हें कुन्था जी तक पहुँचाने के लिए दे दिए। कुन्था जी और अभिव्यक्ति की कार्यकारिणी ने चर्चा के लिए मेरा उपन्यास अपने - अपने कोणार्क, चुना और मुझे संवाद के लिए अभिव्यक्ति में आमंत्रित किया।उस उपन्यास पर संस्था में विस्तृत चर्चा हुई, सदस्यों ने उपन्यास पसंद किया था, कुछ प्रश्न मुझसे किए गए, जिनका उत्तर देकर मैंने अपने ढंग से उनकी जिज्ञासाओं का समाधान किया था। अभिव्यक्ति संस्था के सदस्यों और उनकी कार्यशैली से यह मेरा पहला परिचय था।


अभिव्यक्ति से मेरा सक्रिय जुडाव तो उसके कई वर्षों बाद हुआ। हुआ यह कि एक दिन अचानक अभिव्यक्ति की उपाध्यक्ष मधु जजोदिया मेरे घर आईं और मुझे संस्था से परामर्शदाता के रूप में जुड़ने का आग्रह किया। मैं उन दिनों एक


महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी, सो विनम्रता से, कभी आगे, कह कर फिलहाल अपनी असमर्थता जाहिर की। पर मधुजी कुछ ही दिनों बाद दोबारा संस्था की ओर से यही प्रस्ताव लेकर मेरे पास आईं, कहा, कुछ कारणों से संस्था में परामर्शदाता की जगह खाली है। त्रिशला जी का विशेष आग्रह है कि आप संस्था से जुडें और परामर्शदाता का काम संभालें। त्रिशला जी भी अभिव्यक्ति की संस्थापक थीं, सो मैं उनके साग्रह अनुरोध को अस्वीकार नहीं कर पाई। दूसरा कारण, हिन्दी साहित्य के प्रति मेरी प्रतिबद्धता मान सकते हैं। मूलतः कश्मीरी भाषी हूँ। अपनी सक्षम मातृभाषा में रचित समृद्ध साहित्य पर गर्व करने के बावजूद मैं ने हिन्दी भाषा को वरीयता दे कर हिन्दी में ही साहित्य रचा है, और हिन्दी साहित्य के प्रचार - प्रसार के लिए काम किया है। मैं कई वर्ष हैदराबाद, भुवनेश्वर आदि हिन्दीतर प्रदेशों में रही हूँ। जहाँ तक संभव हुआ,  हिन्दी के लिए साहित्यिक माहौल बनाने में अपना योगदान दिया है। क़रीब चालीस साल पहले मैंने कुछ स्थानीय हिन्दी लेखकों को साथ लेकर, हैदराबाद में लेखक संघ की स्थापना की थी जो, सुना है आज भी सक्रिय है और सदस्य बराबर साहित्यिक गोष्ठियों के माध्यम से साहित्य के प्रसार में अपनी भागीदारी निभा रहे हैं। अभिव्यक्ति सदस्यों की


सुरुचिपूर्ण साहित्य के प्रति रुचि और साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए प्रतिबद्धता ने भी मुझे प्रभावित किया, एक रचनाकार होने के नाते मुझे यह एक सार्थक कर्म लगा। सो लेखकीय व्यस्तता के बावजूद, मैं समय निकाल कर अपनी सेवाएं देने के लिए संस्था से जुड़ गई। मधु जाजोदिया का आत्मीय आग्रह भी अभिव्यक्ति से जुडने एक कारण तो रहा ही!


मधु कमल जैन: हर माह किसी एक लेखक की पुस्तक का चयन करते आप किन बातों को ध्यान में रखती हैं?


उत्तर: चन्द्रकान्ता जी,  हर माह किसी एक साहित्यिक कृति का चयन करते, पुस्तक का स्तर, उसकी पठनीयता,  सदस्याओं की रुचि का ध्यान जरूर रखती हूँ। साहित्य के पुरोधाओं के कुछ क्लासिक्स,, समकालीन वरिष्ठ रचनाकारों का कोई उत्कृष्ट उपन्यास, या कथा संग्रह के साथ, युवा लेखकों की स्तरीय


कृतियों का भी चयन करती हूँ। ताकि विभिन्न लेखकों से मिल कर, उनकी रचनाओं का परीक्षण कर सदस्यगण, साहित्य में समय के अनुरूप आए बदलाव की समीक्षा... करें और कृति की सार्थकता पर लेखक के साथ चर्चा करें। किसी कृति का चयन करने से पहले कई कृतियों को पढ़ती हूँ,तब उसके लेखक को अभिव्यक्ति में आमंत्रित करती हूँ। संस्था की अध्यक्षा रीता जैन कार्यकारिणी से मिल कर गोष्ठी का स्थान व दिन तय करती हैं,  यहाँ लेखक की सुविधा का भी ध्यान रखा जाता है, जो कि एक स्वस्थ प्रक्रिया


मधुकमल जैन: आप एक व्यस्त लेखिका हैं, अनेक संस्थाओं से भी जुडी हैं, संस्था के लिए समय कैसे निकाल पाती हैं ?


उत्तर - चन्द्रकान्ताजी, इसका कारण साहित्य के प्रति मेरा लगाव तो है ही, साथ ही रचनात्मक कृतियों के प्रचार-प्रसार से पाठकों में साहित्य के प्रति रुचि जगाना भी है। साहित्य समय और समाज का जीवंत साक्ष्य प्रस्तुत करता है, वह सामयिक व्यवस्था के प्रति हमें जागरूक ही नहीं करता, बल्कि, मनुष्य की आंतरिकता, उसकी आकाँक्षाओं, उसके स्वप्नों पर पड़ते प्रभाव का भी परीक्षण कर सही-गलत की समझ देता है। साहित्य हमारी चेतना का विस्तार कर हमें बेहत्तर मनुष्य बनाता है, तभी उसे मानवता का घर कहा गया है जाहिर है एक साहित्यकार होने के नाते मैं स्वस्थ एवं गरिमापूर्ण समाज के निर्माण में थोडा अंशदान देने के लिए लेखकीय व्यस्तता में से कुछ समय चुरा लेती हूँ, ख़ासकर, अभिव्यक्ति जैसी संस्था के लिए, जो करीब सत्ताईस वर्षों से साहित्य के प्रसार -प्रचार में प्रतिबद्धता से काम कर रही है।


मधु कमल जैन: कृपया इस संस्था से जुड़े अनुभव हमें बताएँ।


उत्तर - चन्द्रकान्ता जी अभिव्यक्ति से जुड़े मेरे अनुभव बहुत आत्मीय रहे हैं, सुखद भी, यहाँ की सदस्यों में साहित्य के वैविध्य की परिपक्व समझ है जो अनेक वरिष्ठ एवं युवा लेखकों के साहित्य को पढ़ कर विकसित हुई है। सदस्यों में क्लासिक्स पढने, के साथ नए लेखकों की रचनाओं को भी पढ़ने की जिज्ञासा है। यहाँ भीष्म साहनी, कमलेश्वर, कुँवर नारायण, मनोहर श्याम जोशी, काशीनाथ सिंह,विश्वनाथ त्रिपाठी, कृष्णा सोबती, मन्नू भंडारी, मृणाल पाण्डेय, राजी सेठ,मृदुला गर्ग,चित्रा मुद्गल आदि वरिष्ठ लेखकों से लेकर नए से नए लेखकों की पुस्तकों को खरीद कर पढ़ा जाता है। कृति में वे कृतिकार के साथ संवाद कर, उस की जीवन दृष्टि, और, युगीन चेतना की जटिलताओं को अभिव्यक्त करने की लेखकीय क्षमता का आकलन करने में रुचि रखती हैं, और कृति में जीवन- सापेक्ष मूल्यों की पक्षधरता को वरीयता देती हैं, जिसकी हर जागरूक और संवेदनशील पाठक साहित्य से उम्मीद करता है। अभिव्यक्ति में स्थानीय लेखकों के अतिरिक्त बाहर के प्रदेशों से भी लेखकों को आमंत्रित किया जाता है। सदस्य उनकी चुनी हुई पुस्तक पर, और उनकी रचना प्रक्रिया पर खुले मन से लेखक से संवाद कर, अपनी जिज्ञासाओं का समाधान करती हैं।


मधुकमल जैन: अभिव्यक्ति की दिवंगत संस्थापिका श्रीमती त्रिशला जैन के साथ आपका अनुभव कैसा रहा? उनके बारे में आपके विचार?


उत्तर - चन्द्रकान्ता जी स्वर्गीय त्रिशला जी साहित्य प्रेमी थी, अभिव्यक्ति की संस्थापिका भी! साहित्य घर-घर तक पहुँचे, उनका मक़सद था कि पुस्तकें ख़रीद कर पढ़ी जाएँ। अभिव्यक्ति में उन्होंने पुस्तकें खरीद कर पढ़ने की शुरुआत की। वे चाहती थीं साहित्य पाठकों की चेतना का संवर्धन कर उनमें व्यवस्था की खूबियों-खामियों का परीक्षण करने की रुचि जगाए। आम जन निज हित तक सीमित न रह कर, एक स्वस्थ समाज के निर्माण में अपना योगदान देकर जीवन को गरिमा दे। यह उनका स्वप्न था। वह जानती थीं कि साहित्य मन का परिष्कार कर, एक स्वस्थ समाज का निर्माण करने में हमेशा सहायक रहा है। अभिव्यक्ति संस्था के माध्मम से वे इस स्वप्न को पूरा करना चाहती थीं, जो कि किसी हद तक पूरा हो भी रहा है। संस्था में लेखकों को आमंत्रित कर उनकी किसी महत्वपूर्ण कृति पर चर्चा करवा कर, वे लेखक-पाठक संवाद में, जीवन के अंतिम पड़ाव तक रुचि लेती रहीं। अस्वस्थ होने के बावजूद वे व्हील चेयर पर बैठ कर अभिव्यक्ति की मासिक गोष्ठियों में शामिल होती रहीं। उन्होंने निष्काम भाव से साहित्य और समाज की सेवा का व्रत निभा कर साहित्य के पुरोधाओं और वृहत्तर समाज के सामने एक मिसाल पेश की। उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण सामाजिक कार्य किए। कई निर्धन गाँवों को गोद लेकर वहाँ के लोगों का जीवन स्तर सुधारने का सफल प्रयास किया। उनके स्वास्थ्य, और रोजी रोटी संबन्धी जरूरतों को पूरा करने के प्रयास किए। वे सच्चे अर्थों में समाज सेवा के प्रति समर्पित थीं। मुझे उन्होंने प्रेम और आशीर्वाद का उपहार दिया,  कहती थीं, तुम अभिव्यक्ति के साथ बराबर जुडी रहोगी। ‘‘बराबर,” शब्द पर मैंने विनम्रता से एक बार असहमति जताई तो बोली,‘‘ वादा करो, जब तक मैं ज़िन्दा हूँ, तुम अभिव्यक्ति छोड़ कर कहीं नहीं जाओगी,‘‘(त्रिशला जी के शब्द) मानव सेवा को समर्पित उस निष्काम कर्मयोगी त्रिशला जी का नमन कर, मेरे प्रति उनके प्रेम और आत्मीयता के लिए मैं हृदय से उनका आभार मानती हूँ। लेकिन कहा है न, कालो न यातो, वयमेव याता! एक दिन तो अपना निश्चित समय पूरा कर, अपने किए - धरे को, तमाम बन्धु -बाँधवों, नेह के नातों को पीछे छोड विदा लेनी ही होती है। त्रिशला जी भी अपनी जीवन यात्रा पूरी कर चली गईं, निज से पर की यात्रा, एक निस्वार्थ, कर्मनिष्ठ, भरा पूरा जीवन जी कर। उन्होंने कई यादगार कार्य किए। अपनी प्रिय संस्था अभिव्यक्ति के लिए एक महत्त्वपूर्ण निर्णय लेकर उन्होंने अपना दायित्व अभिव्यक्ति की कार्यकारिणी को सौंपा, सुश्री रीता जैन को अध्यक्ष पद सौंप कर हम जानते हैं रीता जी,उनके विश्वास पर खरी उतरेंगी और अभिव्यक्ति आगे प्रगति के नए रास्ते प्रशस्त करेगी! मेरा स्नेह और शुभ कामनाएँ उनके साथ हैं और रहेंगी!


मधु कमल जैन: चन्द्रकान्ता जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने अपना अमूल्य समय निकाला और हमारी जिज्ञासों को शान्त किया।     


 


 



चन्द्रकान्ता


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