जख़्म
कही कोई देख ना ले
आ तुझे छुपा लूँ
किसी ने देखा तो कहेगा
किसने दिया ये
‘‘जख््म‘‘
जो इतना गहरा है।
मुट्ठी में दबें, बोए हैं नए बीज
तुम्हारी प्रतीक्षा के
.. बचाया है हवाओं से
सींचा है आँसुओं से
पलकों की जमीन
पर बनाई है क्यिारयाँ
धड़कनों की लय पर गुनगुनाएँ है
नए गीत तुम्हारी प्रतीक्षा के ....।