जीवन में जीवन

यदि लेखन न होता


तो मैं होता तो


किंतु मैं न होता


वह जो मैं होता


आवरणों, दिखावों में उलझा


भटका सा होता


अवसाद से जूझता


जाने किस अज्ञानी की शरण खोजता


जीवन होता तो


किंतु उसमें जीवन न होता


शुक्र है कि लेखन है


मैं, मैं हूी हूँ


और जीवन में जीवन है



Popular posts from this blog

अभिशप्त कहानी

हिन्दी का वैश्विक महत्व

भारतीय साहित्य में अन्तर्निहित जीवन-मूल्य