कब तलक

कब तलक ज़िन्दगी के इस दामन में


यश वैभव सत्ता के शूलों को


बटोरते रहोगे


कहीं ऐसा ना हो कि शूलों को बटोरते-बटोरते


तुम्हारा ये दामन इतना जर्जर हो जाय


इंसानों के प्यार और प्रभु कृपा के


सुगंधित फूल भी ना ठहर पायें


जिन्दगी के इस जर्जर आँचल में।



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