पलाश
होली की आयी दस्तक खिल उठे पलाश
महके बौर फागुन में और भीजा ये मन
टपकी बूँदे प्रेम की और हो गया नई कविता का जन्म
फैली हर तरफ पलाश की सिन्दूरी रंगत
झूमते मस्ती में वन मानों फैली है जंगल की आग
जैसे कुदरत भी स्वयं खेल रही हो फाग
टहनियों से चिपके हंै , जैसे हो ,दहकते अंगारे
प्रकृति पर भी जैसे गदराया हो यौवन
फागुनी पवन में , झूमते गाते कुछ इठलाते
खुशी में लोट पोट कर वसुधा की चादर बन जाते
लो देखो पलाश भी गीत फागुनी गाते
चले जाओगे गर पलाश तुम इस बार
करूँगी इंतजार, फिर आयेगा फागुन ,
फिर आना तुम पलाश फिर आना तुम पलाश।