सन्नाटा
पहाड़ी रास्ता
गहरा जंगल
पेड़ों से ढकी सभी चोटियाँ
किनारे -किनारे घाटियों की गुंजती आवाजें
साँझ के ढलते ही सब स्याह
गुंजता सन्नाटा
दूर तक फैली भनभनाती रात
निचाट अकेलापन
मैंने झाँका तो मैं भी खो गई
उसी के अकेलेपन में
आज भी मुझे वही रात
वही अकेलापन
कभी घेर लेता है
तब उदासी, ख़ामोशी
सभी दृश्य उतर जाते है
सन्नाटे से गुजरते
मेरे समक्ष
मेरे भीतर ..