सन्यासी
सुना है आज असीम सागर के किनारे
रेत का एक टुकड़ा
सन्यासी हो गया है
वर्षों तक रेत का टुकड़ा इंतजार करता रहा
कभी तो लहरे तट पर आयेंगी-
कुछ पल के लिये रेत के टुकड़े
का दुःख दर्द बांटेगी
उसकी प्यास बुझायंेगी
लहरें दूर से ही तट से टकरा कर लौट जातीं
वो दिन कभी नहीं आया
लहरें उसका मर्म जानती दुःख बांटती
धीरे धीरे रेत के टुकड़े की आस्था टूट गई
सुना है, आज वो सन्यासी हो गया।