सीख

विदाई के समय


माँ ने कहा बेटी से,


ससुराल में झुकी रहना


झुकने में ही भलाई है,


घर की सुख शान्ति इसी में समाई है,


सदियों से यही रीत चली आई है,


नारी जाति ने ऐसे ही


गृहस्थी की नाव पार लगाई है,


माँ की बात पल्लू में बांध


वह झुकती रही


लोग झुकाते रहे,


वह सहती रही


लोक सताते रहे,


वह सुनती रही


लोग सुनाते रहे,


घर के कामों का बोझ लादते रहे


वह बोझ उठाती रही,


पर अब उसने नारी शक्ति को लिया है जान,


लोगों की फितरत को लिया है पहचान,


अपने मन में लिया है ठान,


अपनी बेटी को नहीं देगी माँ वाली सीख,


नहीं कहेगी रौंद कर सपनों को जीने की मांगों भीख


नहीं कहेगी कुछ न कह कर, अपने वजूद को मिटा डालो,


नहीं कहेगी सदियों से चली आ रही रीत को


तुम भी निभा डालो।



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