‘श्रीमती त्रिशला जी जैन’
फूल मुरझा कर शाख से गिर जाते हैं,
सूरज रात में, चाँद तारे दिन में छिप जाते हैं
है यही कुदरत का नियम, जो आते हैं चले जाते हैं,
पर होते हैं कुछ इन्सान जो आकर भी नहीं जाते हैं,
सदा सदा के लिए सबके दिलों में बस जाते हैं,
ऐसी ही थीं अभिव्यक्ति (संस्था) की संस्थापिका
हमारी आदरणीय स्वर्गीय श्रीमती त्रिशला जी जैन।
अत्यन्त सरल, अद्भुत अनुपम,
दयालु निश्छल और कान्तिमय,
अभिव्ययक्ति परिवार को निज प्रभाव से,
सदा करती रहीं ज्योर्तिमय।
अभिव्यक्ति की शान थी वो,
अभिव्यक्ति की प्राण थी वो,
अभिव्यक्ति की आस थी वो,
अभिव्यक्ति की श्वांस थी वो
अभिव्यक्ति उन्हीं की सोच थी,
अभिव्यक्ति उन्हीं की खोज थी,
अभिव्यक्ति को उनसे मिली पहचान थी,
अभिव्यक्ति की प्रगति उनकी चाह थी।
अभिव्यक्ति को उनसे मिली राह थी।
यद्यपि आज नहीं हैं वह हमारे बीच,
पर उन्हें हम कभी न भूला पाएंगे
जब तक हैं अभिव्यक्ति उन्हें साथ पाऐंगे।