विचार मंथन के बादलों से झरती कुछ बूंदें
सत्य और असत्य एक दूसरे के पूरक हैं।
असत्य ही सत्य की पहचान परिभाषित करता है।
ज्ञान मुक्ति के द्वार पर ले जाने के लिये होता है,
रीति के बंधन में बाँधे जाने के लिये नहीं।
पानी कितना भी उबले उसमंे से चिंगारी कभी नहीं निकलती।
भगवान जिससे रुष्ट होता है उसे इतना सुख देता है कि वह प्रभु को भूला रहे।
जो थकते हैं उनका कोई लक्ष्य नहीं होता।
हमारे लिये दो ही विकल्प हैं हम करें या नहीं
करें, कर्मों का परिणाम हमारे बस में नही ंहै।
कर्मफल की इच्छा नहीं होती तो कर्म भी दूषित नहीं होते।
कोयला कितना भी काला हो जल कर राख हो ही जाता है।
नये उगते सूर्य में इतनी गर्मी नहीं होती कि
बालों में सफे़दी ला सके पर इतना मालूम है कि
वह आसमान की ऊँचाइयों को अवश्य छुएगा।
मृत्यु सत्य है, आवश्यक है, जीवन की पूर्णता है।
हम अपने चारों ओर मृत्यु देखते हैं फिर भी
सोचते हैं हम ज़िन्दा रहेंगे। यही माया है।
सर पर रखे बोझ से ज़्यादा मन पर रखा
बोझ होता है और कमाल की बात है
यह बोझ हम खुद ही रखते हैं, खुद ही
लेकर चलते हैं और दुःख ही सहते हैं।