गजल

होंठों पे मेरे आपकी आई कभी गज़ल


शरमा गई हूँ मैं तो लजाई कभी गज़ल


एहसास तेरे होने का रहता है हर जगह


यादों में मेरे छुप के समाई कभी गज़ल


तेरी खुशी के वास्ते जो दर्द सह लिए


आँखों ने आँसुओं में बहाई कभी गज़ल


तुम रूठ भी गए तो मनाने के वास्ते


रोने लगी कभी तो सुनाई कभी गज़ल


होंठों की तश्नगी को बुझाने के वास्ते


आँखों के मयकदे से पिलाई कभी गज़ल


बताओ तुम कब आयेगा हमारे  साथ का मौसम,


हमारे प्यार का मौसम भरे जज़्बात का मौसम,


सुनो मजबूरियों से कह दो हमको यूँ न तरसायें


चला जाये न हमसे रूठकर बरसात का मौसम


जरा सी बात पे हमदम खफा क्यूंकर तू होता है


न दे ऐसे मेरे दिल को नए सदमात का मौसम


मुझे मालूम है  तुम रोओगे मुझको भूला करके


तुम्हारे लब पे होगा दर्द के नगमात का मौसम


तुम्हे तो हक दिए सारे मोहब्बत में मेरे हमदम


कभी तुम दरम्यां लाना नहीं आफात का मौसम



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