कहानी

‘‘अभिनव इमरोज़’’ के अगस्त अंक में आदरणीय मृदुला गर्ग की कहानी पढ़ी थी ‘‘सितम के फनकार’’ जिसमे नायिका की नज़र अमेरिका के सर्बव में एक भारतीय मेज़बान के घर के खाने की मेज़ पर बैठे हुए सामने की दीवार पर टँगी एक 40 बाईं 30 की एक अजीब सी पेंटिंग पर अटकी रहती है। धीरे धीरे रहस्य खुलता है कि ये केरल के मशहूर चित्रकार श्रीनिवासन जी की बनाई पेंटिंग है जिसमे सूरत में सन् 2012 ‘‘यथार्थ में सन् 2006, में आई भयंकर बाढ़ के कारण दो हज़ार से भी अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी। ये पेंटिंग उसी विभीषिका- अनेकों व्यक्तियों, बच्चे, गर्भवती स्त्रियों के आर्तनाद की दास्ताँ थी। उन्ही दिनों हम लोग वड़ोदरा में थे और बाढ़ के कारण सूरत की मृत्यु कथायें पढ़ पढ़ कर थर्रा रहे थे। मेरे सामने प्रशासन की देश भर में गफलत की और भी, कहानिया बिखरी हुई थीं-जब बिना सोचे समझे कि भारत के लोग नदियों के पर्व मनाने उनमें स्नान करने जाते हैं और प्रशासन उसी दिन डैम से पानी छोड़कर सैकड़ों लोगों का हत्यारा बन जाता है। सूरत में इसलिए  बाढ़ आई थी कि घनघोर बारिश के मौसम में डैम को बचाने के लिये पानी छोड़ा गया था। सूरत तीन दिन पानी में डूबा रहा, दो हजार एक सौ पिच्यासी लोग डूब मरे ‘‘कहानी के अनुसार’’ सन 2015 में टूर पर निकले मोहाली में किसी नदी में तीस युवा डूब गए थे क्योंकि प्रशासन का वहां बोर्ड नहीं लगा था कि नदी का ये मुहानाबेहद खतरनाक व गहरा है। 


मैंने एक कहानी सूरत के इस हादसे को सामने लाने व प्रशासन की आँखें खोलने के लिए व कॉरपोरेट एग्जेक्युटिव्स  को सब हृदयहीन मशीन समझतें है, ये भ्रम तोड़ने के लिये ‘‘रेसक्यूृ’’ लिखी थी जिसे एक पत्रिका ने सन् 2011 में प्रकाशित किया था, सच मानिये मेरी ये वह कहानी है जिसके लिए मुझे सबसे अधिक फोन मिले थे। तब मैंने जाहिर नहीं किया था कि इसका पात्र सुपन मेरा बेटा सुलभ है ‘जिसने ये कथानक मुझे दिया, वह अब बैंगलोर में है व फिल्म एक्टर हैं, मरहूम अभिनेता फारुख शेख की आभारी हूँ मै संपादक आदरणीय देवेन्द्र बहल जी की भी जिन्होंने ये निर्णय लिया कि वो इस कहानी को प्रकाशित करके उस पेंटिंग की अंतर्कथा 40 बाईं 30 के फ्रेम से निकालकर पूरी तरह ‘अभिनव इमरोज़’ के कैनवास पर उकेर कर पाठकों के सामने लायेंगे......ये बताने इंसानियत आज भी ज़िन्दा है...... सिंचाई विभाग का प्रशासन आँखें खोलो.......


 


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