सुरक्षित प्रेम पत्र

हाँ


मैं मानती हूँ


मेरे पास अब तक सुरक्षित है


तुम्हारे प्रेम पत्र


जबकि


अपने हाथों से फाड़ डाला था।


तुम्हारा एक-एक संदेश


और सुनो


फिर जलाया भी उसे


राख होने तक


अपने भीतर से मिटाती रही


रगड़-रगड़ कर


तुम्हारे प्रेम का हर एक साक्ष्य


और प्रवाहित किया था उसे


उसी घाट पर


जहाँ हम अक्सर


बैठा करते थे घंटों


आते-जाते लोगों के घूरने से बेपरवाह


तुम्हारी चिट्ठियाँ


नष्ट होकर भी जाने क्यूँ


अब भी


मेरे मन की दीवारों पर


अंकित हैं


भित्ति चित्रों की तरह


उतनी ही पवित्र


उतना ही सुरक्षित!!



Popular posts from this blog

अभिशप्त कहानी

हिन्दी का वैश्विक महत्व

भारतीय साहित्य में अन्तर्निहित जीवन-मूल्य