तलाश

अठारह बरस की एक लड़की चैंक पड़ी है


हैरानी-सी ढूँढती है वह उस गन्ध को


जिसकी गाँठ खुल गई है


उसके भीतर....


दूर आसमान में ताकते


अचानक वह मुस्कुरा देती है


शायद!


कोई नाम याद आ गया है


एक मीठा दर्द


पूरे जिस्म में लहर बनकर फैल रहा है


साज़ के सारे तार


झनझना दिए हैं


भरपूर-सी एक अंगड़ाई ने


लड़की


दाँतों से काटती है होंठ


कुतरती है अपने नाख़ून


भरती है ठंडी साँस


और सोचती है


रात की अनन्त इच्छाओं


और, सपनों की दूरी के बारे में।


 


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