तुम चली गई मां

संसार के सारे दुखों से मुक्ति पा कर ,


तुम चली गई मां,


मुक्ति दुनिया के अकेलेपन से,


भूख  लगने पर कुछ न खा पाने के कष्टों से,


सबसे मुक्ति


और हर समय मुक्ति की गुहार से


दवाईयों और


स्वार्थ और लोभ से भरे  आस पास फैलते


बदबूदार कसैलेपन से भी।


तुम्हारी खामोश आंखे, बंद होती जुबान की भाषा,


मै पढ़ रही थी तुम्हारी आंखो की इबारत,


और तुम तैयार हो रही थी


छोड़ कर जाने को  विशाल इमारत,


अपने एक एक दिन में जोड़ा साम्राज्य,


उफ कितना पीड़ादायक होता है


संसार की चुभनो के साथ खुद को शांत करना,


पर तुम लाचार थी,


तुम अब उन्मुक्त हो,


विचरण करो इस धरा के छोर से उस ओर तक ,


हिमालय की चमकती  चोटियों पर,


देश भर के मंदिरों के प्रांगण में,


उनकी सुनहरी फुनगियों पर भी अब जाओ,


जो जो, जब जब, जहां जहां जाना है जाओ,


अब मत डरो कि तुम औरत हो,


अब तुम आत्मा हो,


जाओ और उन सबसे मिल लो,


जो आत्मा हो गये  है तुम्हारे अपने


कोई बोलता नहीं,


बैठता नहीं मेरे पास ,


मत याद करना कोई बुरी बात,


तुम उन्मुक्त होकर आनंदित हो,


तभी हमारी मुक्ति हो पायेगी,


जाओ मां भगवान के  घर,


सुनते हैं वहां कोई  दिवार नहीं,


सब तुम्हारे लिए ही है वहां,


सुगंधित तिलिस्मी ब्यार...


रंग बिरंगे फूलों के  परिधान में सज जाओ मां,


जाओ मां  वहीं रहो ,


मैं हर रोज तुम्हें शांत और


चिंता रहित देखना चाहती हूं।



सविता चडढा


रानी बाग, दिल्ली, मो. 9313301370


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