आलेख


-डाॅ. निर्मल सुन्दर, नई दिल्ली, मो. 9910778185


 


अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस


यह दिन अमरीका की उन मज़दूर औरतों के संघर्ष का यादगार दिवस है जिन्होंने सौ से अधिक वर्षों पहले, काम के घंटे, मज़दूरी, और काम की शर्तों के लिये पुलिस की लाठि़यां खाई और गोलियां भी। बहुत से देशों में महिलाओं को वोट देने का अधिकार तक नहीं था। महिलाओं ने संघर्ष किया और ज़ार को रूस की सत्ता छोड़नी पड़ी। इसके बाद महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला। उनकी एकता, संघर्षशीलता और बहादुरी को दुनिया की महिलाओं के सामूहिक चिन्तन का अमिट आदर्श बताते हुए, अन्तर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट महिला नेता क्लारा लेटकिन ने उनके संघर्ष के प्रथम दिन यानि आठ मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित कर दिया। यह दिन अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रही महिलाओं का सम्मान करने और उनकी उपलब्धियों का उत्सव मनाने का दिन है।
पुरुष और स्त्री, दोनों परमात्मा द्वारा रचित सृष्टि का अभिन्न तथा परस्पर पूरक अंग हैं। विधाता ने किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया। किसी को अधिक महत्वपूर्ण तथा दूसरे को हीन समझना विधाता का अनादर करना है। क्या पुरुष नारी के बिना संसार में आ सकता है? फिर भी विश्वभर में नारी को पुरुष के समान स्थान नहीं मिलता।
भारतीय धार्मिक ग्रन्थ, परम्पराएं सभ्यता, संस्कृति स्त्री का सम्मान करते हैं जैसे नारी दुर्गा है, शक्ति है, जगतजननी है। जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं लेकिन इसके बावजूद भी भारतीय स्त्री पुरुष के अनादर, उपहास, उपेक्षा, उत्पीडन यौनक्रियाकलाप का पात्र बन कर रह गई हैं हज़ारों साल पहले सीता जैसी पतिव्रता स्त्री को अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ा, द्रौपदी जैसी स्त्री को भरी सभा में निर्वस्त्र करने का दुःसाहस किया गया। आज भी दहेज, कन्या-भ्रूणहत्या, बलात्कार, निर्धन जवान बालाओं का क्रय-विक्रय आदि स्त्रियों के उत्पीड़न लाचारी, बेबसी के शर्मनाक उदाहरण है।
वैदिक तथा वैदिकोत्तर काल में भी नारी का अशक्त रूप ही दिखाई देता है। केवल दो नारी पात्र ऐसे हैं जो सशक्त एवं स्वावलम्बी प्रतीत होते हैं और समाज को चुनौती देते हैं। एक मदालसा, दूसरी जाबाला। मदालसा ने अपने पति से स्पष्ट कह दिया कि वह अपने किसी पुत्र को राजा बनने की राह नहीं दिखायेगी और जबाला ने अपने पुत्र सत्यकाम को असंदिग्ध वाणी में अपनी बहुभोग्या स्थिति स्पष्ट कर दी। पुत्र ने भी प्रसन्न हो कर माता को ही अपना लिया। पिता के नाम की परवाह तक नहीं की।
हाँ! यह गर्व की बात है कि वेदों और उपनिषदों की ऋचाओं की रचना में कुछ विदुषी बहुमुखी प्रतिभा वाली महिलाएं भी शामिल थी। उन्होंने यज्ञ, वेदपाठ भी सम्पन्न करवाये। उनके नाम थे घोषा, अपाला, इन्द्राणी, मैत्रेयी, गार्गी आदि। लेकिन मध्यकालीन युग में राजनैतिक स्थितियों के बदलाव के साथ ही स्त्रियों की स्थिति में भी बदलाव आना शुरु हो गया। वह पुरुषों के भोगविलास का अंग बनकर रह गई। उसका अपना अस्तित्व गौण हो गया। नारी की सुरक्षा के लिये उसे पर्दे में कैद कर दिया गया। बाल विवाह, अनमेल विवाह, सती प्रथा, दहेज प्रथा जैसी बुराइयाँ पनपने लगीं। इन सब का शिकार बनी नारी और उसे अबला समझा जाने लगा।
भगवान ने तो नारी में असीम शक्ति और क्षमता प्रदान की है। उसने सभी क्षेत्रों में अपने कीर्तिमान स्थापित कर दिखाए हैं। अपने साहस अथक परिश्रम, दूरदर्शिता, बुद्धिमत्ता के आधार पर, विश्वपटल पर अपनी पहचान बनाने में सफल रही है। करुणा, वात्सल्य, ममता जैसे गुणों के आधार पर युगनिर्माण में योगदान दिया है।
टैसी थाॅमस पहली भारतीय महिला हैं जो देश की मिसाइल प्रोजेक्ट को संभाल रही हैं। इन्हें मिलाइल वूमन या अग्निपुत्री के ख़िताब से नवाज़ा गया है। भारत के सर्वोत्तम खिलाड़ियों में से एक हैं पी.टी. उषा। सन् 1983 में सियोल में हुए दसवें एशियाई खेलों में दौड़-कूद में पी.टी. उषा ने चार स्वर्ण और एक रजत पदक जीते। 1985 में जकार्ता में पांच स्वर्ण पदक और अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में छः स्वर्णपदक जीते। उषा ने अब तक एक सौ एक अन्तर्राष्ट्रीय पदक जीते हैं। सन् 1985 में उन्हें पद्यश्री और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।दूसरी महिला मैरी काॅम वुमन्स बाॅक्सिग चैंपियनशिप में छः राष्ट्रीय ख़िताब जीत चुकी हैं। सायना मेहवाल, सानिया मिर्ज़ा खेल जगत की गौरवपूर्ण पहचान हैं।
लेखनजगत में भी नारियों का अभूतपूर्व योगदान रहा हैं महादेव वर्मा, सुभद्राकुमारी चैहान, महश्वेता देवी, मैत्रेयी पुष्पा जैसी लेखिकाओं ने उच्च कोटि का लेखन साहित्य जगत को प्रदान किया है।
भगिनी निवेदिता, मदर टैरेसा आदि ने अपनी करुणा और वात्सल्य की भावना से सामाजिक क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान दिया है। आज महिलाएं ट्रेन और हवाई जहाज़ भी चला रही हैं। प्रथम महिला रेलगाड़ी ड्राईवर सुरेखा यादव, भारत की ही नहीं वरन् एशिया की भी पहली ड्राईवर रही है। सुनीता विलियम्स और कल्पना चावला तो अन्तरिक्ष पटल की विशेष पहचान है।
सिनेमा जगत में नारी अपने कदमों के निशान छोड़ती जा रही हैं।  सांई परांजपे, अपर्णा सेन, फराहखान, सरोजखान जैसी महिलाएं कुछ अलग हट कर काम कर रही हैं।
गाँवों में महिलायें चुनाव जीत कर पंचायतों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। शमा खान, गीता बाई जैसी अनेक महिला सरपंचों ने नारी के गौरव को बढ़ाया है। वाणिज्य क्षेत्र में इन्द्रा नुई, किरण मजूमदार नैना लाल किदवई जैसी अनेक महिलाएं प्रतिष्ठित कम्पनियों की सी.ई.ओ. बन कर आगे बढ़ रही हैं।
नारी तो हर परिस्थिति में अपनी शक्ति और साहस से आगे बढ़ती रही और पुरुष की प्रेरणा बन कर उन्हें जाग्रत करती रही। सन् 1857 में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी झांसी के लिये अंग्रेजों के साथ टक्कर ली और लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गई। यह एक चिंगारी थी जो समूचे देश में स्वतन्त्रता आन्दोलन की आग बन गई और फलस्वरूप सन् 1947 में भारत स्वतन्त्र हो गया।
जापान 21वीं सदी का विश्व का सबसे विकसित देश है। वहां एक करोड़ त्र्यानवे लाख महिलाएं कार्यालयों तथा कारखानों में काम करती हैं। वहाँ की संस्कृति में यूरोपीय संस्कृति का संक्रमण नहीं हुआ था। जापानी प्रौफेसर ओसाका ने न्यूयार्क टाइम्स में लिखा- जापान के विकास में हमारी महिलाओं का बहुत बड़ा योगदान है क्योंकि वे पुरुषों को घरेलू झगड़ों से मुक्त रखती हें। उनसे नाजायज मांग नहीं करती। न किसी पुरुष को अपने आकर्षण में बांध कर, उसके लक्ष्य तक पहुंचने में बाधा बनती हैं। जापानी महिलाओं का यही सद्व्यवहार, जापानी पुरुषों और पूरे देश के लिय वरदान सिद्ध हुआ है।
ईश्वर ने महिलाओं को अन्तर्ज्ञान और स्त्रीत्व प्रदान किया है। यदि समाज में किसी परिवर्तन की आवश्यता हो तो महिलाओं को संगठित कर देना चाहिये। चूंकि पुरुष और महिला एक-दूसरे के पूरक होते हैं तब उस परिवर्तन में होंगे मूल्य, स्थायित्व और उत्थान। महिला समाज की असली शिल्पकार होती है। पुरुष की क्षमता के साथ, महिला की मानसिक क्षमता और प्रतिभा का मिश्रण नया सवेरा ले कर आयेगा। बेटियों का व महिलाओं का तिरस्कार पुरुष का अपना तिरस्कार हैं। बेटियाँ होंगी घर-परिवार होंगे, समाज होगा और होगा फलता-फूलता संसार जिसकी रचना में लगा है स्वयं ईश्वर।   


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