कहानी



डा. अकेलाभाइ ने पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्विद्यालय शिलांग से एम. ए. (हिंदी) एवं पीएच.डी. की उपाधियाँ ली हैं। पूर्वोत्तर भारत में विगत 29 वर्षों से आकाशवाणी से संबद्ध रहते हुए हिंदी भाषा एवं नागरी लिपि का प्रचार-प्रसार खूब किया है। इन्होंने हिंदी के लेखन एवं प्रकाशन तथा नागरी लिपि के प्रचार-प्रसार के लिए पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी की स्थापना की। अनेक साहित्यिक सम्मेलनों, संगोष्ठियों, कार्यशालाओं तथा नागरी लिपि प्रशिक्षण का सफलतापूर्वक आयोजन एवं संचालन किया है। इनकी अनेक रचनाएं प्रख्यात पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी के सचिव (मानद) के रूप में राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक हिंदी-सम्मेलनों के सफल आयोजक भी रहे हैं। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा मौलिक लेखन के लिए भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार के साथ-साथ 30 से अधिक प्रतिष्ठित सम्मान एवं पुरस्कारों से सम्मानित हैं। -संपादक


 


गलतफहमी


मैं स्कूल से घर लौटी तो देखा घर के सामने काफी लोग जमा थे। पुलिस की गाड़ी भी खड़ी थी और एंबुलेंस में मेरे पति बेहोश पड़े थे। लोगों ने बताया कि मेरे पति ने जहर खा लिया है। जब एंबुलेंस चली गयी तो पुलिस इंस्पेक्टर ने मुझसे कहा, “आपको मेरे साथ थाने चलना होगा, फिर आप अस्पताल जाइयेगा।
“पहले मैं अस्पताल जाऊंगी, फिर चलूंगी थाने” कहकर मैं घर के अंदर चली गयी। मेरी नौकरानी ने मुझे एक पत्र देते हुए कहा, “साहब ने आपके लिए दिया था।
पत्र को एक ही सांस में पढ़ा तो लगा कि सारी दुनिया घूम रही है। फिर अपने को संयत किया और अस्पताल की राह पकड़ी। पत्र में लिखी बातों पर मुझे कतई विश्वास नहीं हो रहा था कि मेरे पति मुझ पर इस तरह से अविश्वास कर सकते हैं। पत्र के एक-एक शब्द मेरे मस्तिष्क पर हथौड़े की तरह चोट कर रहे थे और मुझे अतीत की ओर ढकेल रहे थे।
आज से लगभग 5 वर्ष पहले की बात है। शिक्षिका के पद पर नियुक्ति के लिए साक्षात्कार देने मैं शिलांग गयी थी। उस वक्त मेरे पति एक प्राइवेट फर्म में मैनेजर थे। मेरे साथ एक और लड़का साक्षात्कार देने के लिए गुवाहाटी से ही आया था। हमारी जान-पहचान गुवाहाटी से आते समय बस में हुई थी। उस लडके ने अपना नाम फारुक बताया था। वह गुवाहाटी के एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षक था। बाद में पता चला कि उसी लड़के की नियुक्ति हुई है। मेरे पति जिस फर्म में काम करते थे, उसकी एक शाखा शिलांग में खुली तो उनका स्थानांतरण शिलांग हो गया और हम लोग शिलांग आ गये। फिर फारुक का मेरे घर आना जाना शुरू हो गया। इसी बीच मैने एक बच्ची को जन्म दिया। उनकी आमदनी इतनी ही थी की हम तीनों का पेट मुश्किल से ही भर रहा था। फारुक मेरी नौकरी के लिए प्रयास कर रहा था। उसी के प्रयास के फलस्वरूप मुझे उसी के स्कूल में नौकरी मिल गयी। फिर हमारे घर की आर्थिक स्थिति सुधर गयी। किंतु मेरे पति संजय को मेरा नौकरी करना बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। लेकिन वे कुछ बोलते नहीं थे। फारुक जब भी मेरे घर आता मेरी बेटी को खूब प्यार करता। बेटी की देखरेख के लिए मैंने एक नौकरानी को भी रख लिया था। फारुक का । आना-जाना मेरे पति संजय को शायद अच्छा नहीं लगता था। क्योंकि वह जब भी मेरे घर आता संजय किसी-न-किसी बात को लेकर मुझे खूब डांटते। उसके सामने मुझे नीचा दिखाने की कोशिश करते।
एक दिन फारुक मेरे घर आया था। हम लोग स्कूल के किसी शिक्षक को विषय बनाकर मजाक कर रहे थे, “देखो फारुक, वह तो मुझे बहुत अच्छा लगता है, क्योंकि वह मुझे भी बहुत देखता है और मेरी प्रशंसा भी करता है।
“वह तो सभी लडकियों को अच्छा लगता है। देखती नहीं, उसके आगे-पीछे कितनी लडकियां चलती हैं
फारुक की बात सुनकर पता नहीं क्यों संजय आग बबूला हो गया,” तुम लोग स्कूल में यही सब करने के लिए जाते हो। किसी दिन मैं तुम्हारे स्कूल जाकर बिना कुछ कहे सुने ऐसा थप्पड लगाऊंगा कि...ष्
“भाई साहब, आप तो बेकार ही नाराज होने लगे। सरिता की इसमें कोई भूमिका नहीं” फारुक ने कहा था। ऋऋ ष्मैं उस कमीने को देख लूंगा और तुम इसी सबके लिए स्कूल जाती हो।”
संजय को आपे से बाहर देखकर फारुक ने कहा, “माफ कीजिएगा भाई साहब। कम-से-कम मेरे सामने तो सरिता को भला-बुरा नहीं कहना चाहिए था। मेरे जाने के बाद कहते।
“यह मेरी बीवी है, जो चाहूँ, जब चाहूं कहूं, तुम बीच में मत पडो’’ संजय ने अंगुली दिखाकर फारुक से कहा। फारुक चला गया। दूसरे दिन मैंने संजय की ओर से फारुक से माफी मांगी। “मांफी मांगकर तुम मुझे क्यों शर्मिंदा कर रही हो?ष् फारुक ने कहा।
“नहीं फारुक, तुम्हारी जगह अगर मैं होती तो मुझको भी बुरा लगता। पता नहीं क्यों जब से मेरी नौकरी लगी है तबसे वे मुझे शक की नजरों से देखते हैं। इधर वे शराब भी ज्यादा पीने लगे हैं। रात को देर से घर लौटते हैं और एक दिन तो...कहते- कहते सरिता रुक गयी।
“क्या हुआ एक दिन?’’ फारुक ने जानना चाहा।
“छोड़ो इन बातों को।" मैंने टालने की कोशिश की।
‘‘प्लीज बताओ सरिता, क्या हुआ एक दिन’’ फारुक ने जिद किया। “एक रात तो वह कालगर्ल को भी लेकर आए थे। मैं चाहकर भी विरोध न कर सकी। अपनी बेटी को सीने से लगाए रात भर सिसकती रहीश् किसी तरह मैं कह पाई।
‘‘मुझे तुम्हारी बातों पर विश्वास नहीं होता कि संजय जी इस तरह की हरकत भी करेगें।’’
‘‘क्योंकि तुम भी एक मर्द हो। मर्द तो मर्द का ही पक्ष लेगा’’ खिसियाकर मैंने कहा।
एक दिन जब मैं स्कूल पहुंची तो पता चला कि फारुक अस्पताल में भर्ती हैं। किसी ने उसकी पिटाई कर दी थी। मैं इसे एक मामूली घटना समझकर दूसरे दिन अस्पताल गयी। वह मुझे देखते ही फफककर रो पड़ा। उस समय उसके पास कोई नहीं था। ‘‘मुझे लगता है हेडमास्टर का यह सब कराया हुआ है, क्योंकि पिछले दिनों उनसे तुम्हारा झगडा हुआ था,’’ मैंने अपना संदेह प्रकट किया। ‘‘मुझे भी ऐसा ही लगता है। इस घटना के पीछे जिसका भी हाथ हो पर यह पूर्वनियोजित घटना थी’’ फारुक ने भी अपना संदेह प्रकट किया। ‘‘अगर यह घटना पूर्व नियोजित है तो हमें हेडमास्टर से बदला लेना चाहिए। अगर इस घटना में उसका या किसी का हाथ नहीं है तो इसे भूल जाना चाहिए, क्योंकि शिलांग में ऐसी घटनाएँ तो होती ही रहती हैं। फिर तुम जिस रास्ते से घर जाते हो उस रास्ते में तो इस तरह की घटनाएँ होती ही रहती हैं।’’ फारुक की नाक पर बुरी तरह चोट लगी थी। किसी ने हथियार से उसकी नाक पर वार किया था। पूरे 22 दिनों के बाद उसे अस्पताल से छुट्टी दी गयी। अस्पताल से आने के बाद फारूक के स्वभाव में काफी परिवर्तन आ गया था। वह किसी से भी नहीं मिलता था हर समय गंभीर बना रहता। वह हिंदी का शिक्षक था। बच्चों को कहानियां सुनाकर खूब हंसानेवाला युवक इतना गंभीर प्रकृति का हो जाएगा मैंने सोचा भी नहीं था। मेरे घर उसका आना-जाना भी कम हो गया था। इस घटना के बाद हेडमास्टर को भय था कि फारुक उसके विरुध्द पुलिस को कुछ न बता दे। इसी डर से शायद फारुक को रोज बुलाकर उसका हालचाल पूछा करते थे। मुझे यह सब देखकर खूब गुस्सा आता था। अब मैं अपने संबंध को जीवित रखने के लिए ही उससे मिलती थी। मैं भी उसे अकेला रहने देना चाहती थी। मेरा मन स्कूल में बिल्कुल नहीं लगता था। लगभग चार वर्षों के बाद फारुक के स्वभाव में थोडा परिवर्तन आया। फिर हम लोग पहले की तरह मिलने-जुलने लगे। फारुक के साथ मेरा संबंध पहले जैसा हो गया था, लेकिन मैं अपने पति संजय को अपने विश्वास में नहीं ले सकी थी। शराब पीने के साथ- साथ मेरी अनुपस्थिति में लडकियों का आना-जाना घर में ज्यादा हो गया था। यहां तक घर में काम करनेवाली लडकी के साथ भी उनके अवैध संबंध स्थापित हो गये थे। वे अपने दफ्तर भी कम जाते थे। घर का पूरा खर्च में ही उठा रही थी। मैं उनसे इस विषय में बात करना भी चाहती थी तो वे मौका ही नहीं देते थे। एड्स की बीमारी होने के डर से मैं उनसे शारीरिक संबंध बनाने में डरती थी, लेकिन वे थे कि बात नहीं करते थे पर आधी रात के बाद अपनी हवस मिटाने के लिए मेरे बिस्तर पर आ जाते। जब मैं इंकार करती तो वे मुझे मारते-पीटते। उनके लिए मैं एक मात्र शारीरिक भूख मिटाने की मशीन बन गयी थी, पर मैं आर्थिक रुप से स्वतंत्र थी इसीलिए उनकी मनमानी अपने साथ नहीं होने देती थी।
मैं अतीत से वर्तमान में लौटी तो उन्हें सदर अस्पताल के प्राइवेट वार्ड में भर्ती कराया जा चुका था। डाक्टरों ने बताया कि खून की कमी है। खून देना होगा। जब मैं ब्लड बैंक से वापस आई तो देखा, फारुक अपना खून संजय को दे रहा था। संजय का लिखा पत्र मैं अपने पर्स से निकालकर पुनः पढने लगी
सरिता मैंने तुम और फारुक पर संदेह किया जिसके लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूं और सच्चाई जानने के बाद मैं अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहता हूं। आज सुबह तुम्हारे स्कूल जाने के बाद मैं फारुक के घर गया। दरवाजा एक सुंदर युवती ने खोला। “मैं सरिता का पति संजय हूं। फारुक से मिलना चाहता हूं।’’ मैंने कहा तो उसने मुझे शालीनता पूर्वक बुलाकर अंदर बैठाया। मैंने सोचा यह फारुक की बहन होगी, क्योंकि वह सलवार- कुर्ता पहने थी और मांग में सिंदूर भी नहीं था। आज मैं अपना बदला इससे लेकर रहूंगा। तभी मेरी नजर सामने टी.वी.पर रखी तस्वीर पर पड गयी। फारुक के साथ यह लडकी और दो बच्चे। जब वह अंदर से पानी का गिलास लेकर आई तो मैंने उस तस्वीर के बारे में पूछा। “ये मेरे पति और बच्चे हैं। फारुक भी स्कूल गये हैं कहिए कैसे इधर भूल पडे।’’
‘‘तो फारुक विवाहित हैं?” मैंने आश्चर्य से पूछा।
‘‘अरे भाई साहब । फारुक या सरिता दीदी ने आपको कभी बताया नहीं?’’ वह हंसते हुए बोली।
मैंने सोचा, ‘‘मैंने उन्हें बताने का मौका ही कहां दिया’’ तुम्हें पता है तुम्हारे शौहर फारुक और मेरी पत्नी सरिता के बीच क्या रिश्ता है?’’ मैंने उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश करते हुए पूछा।
“आप भी कमाल करते हैं भाई साहब । कैसे जीजा हैं आप जो साले के रिश्ते को भी नहीं जानते’’ वह हंसते हुए बोली। ‘‘क्या सरिता और फारुक का रिश्ता भाई और बहन का है?’’
‘‘बेशक।’’
‘‘मुझे विश्वास नहीं होता।’’ मेरे अविश्वास शब्द को सुनकर उसने एक एलबम तथा एक पैकेट ले आई। अलबम की कुछ तस्वीरें दिखाते हुए उसने कहा, ‘‘ये वे तस्वीरें हैं जिन्हें सरिता दीदी फारुक के साथ हर साल रक्षाबंधन का अवसर पर खिंचवाती रही हैं और ये हैं उनकी दी हुई राखियां जिसे हमने संभालकर रखा है। फारुक के कोई छोटी बहन नहीं है। इसीलिए उन्होंने सरिता को धर्मबहन बनाया है। लेकिन आप यह सब बातें क्यों पूछ रहे हैं ?’’ फारुक की बीवी ने जब ये बातें मुझे बताई तो मैं अपने को कमीना शकी और नालायक समझने लगा। तुम दोनों के पवित्र रिश्ते पर मैंने शक किया। एक बात और जो पिछले चार वर्षों से मैनें तुमसे छिपाई थी। वह यह है कि मेरे कारण ही उस समय फारुक को 22 दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा था। मैनें ही अपना आदमी भेजकर उसे पिटवाया था। मैनें ही उसके विरुद्ध हेडमास्टर को भी भड़काया था। तुम्हें इतने दिनों तक प्रताड़ित किया। एक गलतफहमी के कारण मैंने अपना जीवन भी नर्क- सा बना लिया। अब मेरा जीना बेकार लगता है। तुम अब अपने पैरों पर खड़ी हो गयी हो। अपनी बेटी का पालन-पोषण ठीक से करना। फिर उसे मुझसे अधिक प्यार देनेवाला उसका मामा भी है। वैसे भी अब मैं अधिक दिनों तक जीवित नहीं रह सकता था, क्योंकि नशीली दवाओं के सेवन और पर स्त्री गमन के कारण में एड्स जैसे खतरनाक बीमारी का शिकार हो गया हूं। इसीलिए आज मैं अपना जीवन समाप्त कर रहा हूं। तुम्हारा अभागा पति संजय ‘‘किसका पत्र है सरिता?’’
फारुक मेरे सामने खडा था, ‘‘लगता है उन्हें जल्दी ही होश आ जाएगा।’’ तीसरे दिन मैं अस्पताल पहुंची तो डाक्टर ने कहा, "हम संजय को नहीं बचा सके। जहर का प्रभाव तो खत्म हो गया था पर हमें लगता है उनकी मृत्यु किसी अन्य कारण से हुई हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखने के बाद पता चलेगा। रात 11 बजे उनकी मृत्यु हो गयी। आप शाम को आकर उनका शव ले जा सकती हैं। उनका शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया था। यह सुनकर मैं अपने को संभाल नहीं सकी। मुझे लगा कि अब मैं धरती और आसमान के बीच पिस जाऊंगी। मुझे चक्कर-सा आने लगा। जब मुझे होश आया तो देखा मैं अपने घर में हूं और मेरी बच्ची रो रही थी। फारुक उसे प्यार कर रहा था। संजय का शव लाया जा चुका था। लोग शमशान जाने की तैयारी कर रहे थे।


सचिव, पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी शिलांग 793006 (मेघालय)


मोबाइलः 9774286215


 


 


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