कविता
शिव डोयले
विदिशा (म.प्र.), मो. 9685444352
वसंत आने से
नदी किनारे खड़े
गुलमोहर के तले
छूट गया था
बीता कल
आज चुपके से
लौटा दिया फागुन ने
वैशाखी उत्सव बना
रंगों की खुशी में डूबा
देख रहा हूँ
एड़ी रगड़-रगड़
नहाती धूप
शब्दहीन होकर भी
लहरें लिख रही हैं
उल्लासित गीत
वसंत के आने से
पलाश के
आंगन में सज रही
फूलों भरी रंगोली