लेख


-हेमलता दीखित, इंदौर, मो. 9165614428


 



वन लाइफ इज नाट इनफ: ए सोल्जर्स स्टोरी


वरिष्ठ सैन्य अधिकारी रिटायर्ड लेफ्टीनेंट कर्नल ओंकारसिंह दिखित की आत्मकथा ‘वन लाइफ इज नाट इनफ: ए सोल्जर्स स्टोरी’ जी.बी. बुक्स पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स नई दिल्ली द्वारा हाल ही में प्रकाशित हुई है। भूमिका सेवानिवृत्त आर्मी चीफ जनरल वी.के. सिंह ने लिखी है। जनरल साहब ने लिखा है यह किताब कर्नल ओंकार की लंबी जीवन यात्रा है, जो इन्दौर की स्टेट फोर्सेस से शुरू होकर, द्वितीय विश्वयुद्ध और जम्मू-कश्मीर ऑपरेशन्स का जिक्र करते हुए आगे बढ़ती है। इसे पढ़कर पाठक न केवल इंडियन आर्मी के डिसीप्लिन, कस्टम्स और ब्रदरहुड से परिचित होगा, बल्कि उस समय की संस्कृति और मूल्यों से भी अवगत होगा जिन्हे समाज में बहुत मान दिया जाता है।
कर्नल ओंकारसिंह दिखित एक परम्परागत फौजी परिवार से है। दादाजी कैप्टन गोपालसिंह और पिताजी कर्नल मंगलसिंह इन्दौर स्टेट फोर्सेस में थे। दोनों छोटे भाई शहीद मेजर अजीतसिंह (यून.एन. पीस कीपिंग फोर्स, कांगो) और मेजर रामसिंह ने भी इंडियन आर्मी में ही सर्विस की। 23 अगस्त 1921 को मिलिट्री एरिया इन्दौर में जन्में और पले-बढ़े ओंकारसिंह की आरंभिक शिक्षा सरकारी स्कूलों और प्रसिद्ध होल्कर कॉलेज में हुई। 23 मई 1942 को इन्दौर स्टेट फोर्सेस में कमीशन मिला। द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था। इन्दौर इनफैन्ट्री इराक-इरान और पशिया गई थी और 6 फरवरी 1946 को जीत कर घर लौटी थी। इस तरह सर्विस की शुरूवात ही युद्ध से काफी थ्रिलिंग रही। फिर जम्मू-कश्मीर ऑपरेशन्स में गए। इसके बाद 6 सिख रेजोमैन्ट क साथ बर्मा कम्पन में जापानियों के खिलाफ मोर्चा लिया। आजादी के बाद 1951 में परमनेंट कमीशन मिला और मनपसंद पल्टन 1/11 जी.आर. (गोरखा राइफल्स)। गोरखा पल्टन का आदर्श वाक्य है ‘कायर हनु भन्दा, मरनु भलो’ यानी कायरतापूर्ण जीवन से मरना भला है। खुकरी गोरखाओं का मुख्य हथियार है। एक सेकंड लेफ्टीनेंट के पद से सर्विस शुरू करके आपने सभी आवश्यक फौजी ट्रेनिंग और कोर्सेस किए। प्रमोशन होते गए। सन् 1956 में यू.एन.ओ. के तहत इंटरनेशनल कमीशन फॉर सुपरविजन एण्ड कंट्रोल इन इंडोचाइना के चेअरमेन बनाकर लाओस भेजे गए। 1963 में प्रमोशन हुआ और लेफ्टिनेंट कर्नल बने। देहरादून के क्लेमेनटाउन में 2/11 जी. आर. नई पल्टन बनाई और सन् 1963 से 1969 तक इसे कमांड किया। किसी अफसर के लिए नई पल्टन खड़ी करना बड़े सम्मान की बात होती है। इस पल्टन का आपने बेटल क्राय दिया - ‘‘जय महाकाली/आयाे गाेरखाली’’ जो बाद में 11 गोरखा रेजैमन्ट का भी बेटल क्राय बना। यही पर 61 माउंटेन ब्रिगेड़ बनाया और सन् 1964 तक उसके कमांडर रहे।


रिटायरमेंट और रिएम्प्लायमेंट के दौरान कर्नल दिखित ने 1966 में इंटर की परीक्षा दी। इसके बाद लखनऊ, आजमगढ़ और गोरखपुर पोस्टिंग में बी.ए., एम.ए. समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र, बी.एड. और एल.एल.बी. की परीक्षाऐं पास की। सन् 1980 से 1990 तक सोकोटो नाइजीरिया में पढ़ाया। लेखन कार्य यहीं से शुरू हो गया था। उनके लेख और कविताएँ वहाँ के अखबारों में छपती थीं। 1990 में भारत आने क बाद वे महू के डी.एस.ओ.आई. (डिफेंस सर्विसेस ऑफिसर्स इंस्टीट्यूट) में रहते है। यही वन ‘लाइफ इज नाट इनफ’ लिखी, जिसे लिखने में कई वर्ष लगे। कर्नल दिखित एक ज़िदादिल इंसान है वे खुद खुश रहते हैं और दूसरों को भी खुश रखते हैं। परफ्यूम, पार्टी, डांस और फोटोग्राफी के शौक़ीन कर्नल दिखित का फाैजी और सिविल आयोजनों के लिए तबियत से तैयार होना बहुत अच्छा लगता है। पत्नी का निधन हो गया है और तीनों बेटियाँ विदेश में है। उन्हे अपने जीवन से पूरा संतोष है। 99 वर्षीय कर्नल दिखित की देखभाल उनकी पल्टन, महू के रिटायर्ड और सर्विंग ऑफिसर्स और मित्र बड़े प्रेम और आदर से करते है। उन्हें अपने जीवन से पूरा संतोष है।   



 


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