कहानी



निशा नंदिनी भारतीय, तिनसुकिया, असम 


 

महामारी और रिश्ते 

 

हमारी पड़ोस में रहने वाले वर्मा जी स्टेट बैंक में मैनेजर थे। सेवा निवृत्त हुए लगभग दस साल हो चुके थे। इस समय उनकी उम्र सत्तर के करीब थी। आस पास के सभी लोग उन्हें बाबूजी कहकर पुकारते थे। वर्मा जी बहुत ही सज्जन व्यक्ति थे। बच्चे, बड़े व हमउम्र सभी के साथ उनका व्यवहार बहुत अच्छा था। बाबूजी को अपने अनुशासन युक्त उत्तम कार्य के लिए सरकार की ओर से एवार्ड भी मिल चुका था। उनके परिवार में उनकी धर्मपत्नी कृष्णा तथा चार बच्चे थे। दोनों बेटियां अपना सुखमय वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रही थी। दोनों बेटे सुमित और अमित अपनी पत्नियों के साथ बाबूजी के साथ ही रहते थे। दोनों बेटे उच्च पदों पर आसीन थे। उनकी बहुएं जोली और शालिनी भी बहुत अच्छे स्वभाव की थीं। एक रेलवे में और दूसरी बैंक में नौकरी करती थी। पत्नी कृष्ण बहुत पतिव्रता स्त्री थीं। बाबूजी का बहुत ध्यान रखती थीं। दो पोते थे एक तीन साल का और एक आठ साल का। भरा-पूरा संयुक्त परिवार था। सभी लोग मिलजुल कर प्यार से रहते थे। सबके बीच में बहुत अच्छा तालमेल था। दोनों बेटे बाबूजी का बहुत सम्मान करते थे। उनको समय देते थे और उनका हर तरह से ध्यान रखते थे। 

बाबूजी के पास एक कुत्ता भी था। जिसका नाम जैकी था। जैकी हमेशा बाबूजी के साथ ही रहता था। उन्हीं के कमरे में सोता तथा उन्हीं के हाथ से खाना खाता था। बाबूजी भी उसे बहुत प्यार करते थे। जब बाबूजी शाम को टहलने जाते तो जैकी भी रक्षक की भांति उनके साथ साथ चलता था। 

 

एक दिन जब बाबूजी शाम को घूमने निकले। तब अचानक उनको सांस लेने में तकलीफ होने लगी। खांसी भी बराबर हो रही थी। बाबूजी वहीं रास्ते में बैठ गए। जैकी बहुत परेशान हो रहा था। वह वहां पर घूम रहे सभी लोगों से भौंक-भौंक कर गुहार कर रहा था। सबने बाबूजी को रास्ते में गिरा देखा पर किसी ने भी आगे बढ़ कर उनकी सहायता नहीं की। वहां घूमने वाले सभी लोग बाबूजी के परिचित थे क्योंकि वह घर के बिल्कुल आमने सामने ही टहल रहे थे। कोरोना महामारी के चलते दूर जाने का तो प्रश्न ही नहीं था। वहां से बाबूजी का घर सौ कदम पर होगा। पर ना तो किसी उनकी सहायता की और ना किसी ने उनके घर जाकर सूचना दी। जैकी जब परेशान हो गया तो दौड़ कर घर आया और उनकी पत्नी कृष्णा की साड़ी पकड़कर ले गया। कृष्णा बाबूजी को गिरा देख कर परेशान हो गई। वह उन्हें उठाकर सहारा देकर घर ले आई। बेटे ने जल्दी से डॉक्टर को फोन किया। चूंकि बाबूजी की सांस फूल रही थी। खांसी भी हो रही थी इसलिए कोई भी बेटा बहू उनके पास नहीं गए। उन्हें विश्वास था कि बाबूजी को महामारी लग चुकी है।उन्होंने माँ को भी बाबूजी के पास से हटा दिया। डॉक्टर को आने में थोड़ी देर हो रही थी। बाबूजी तड़प रहे थे। सिर्फ जैकी उनसे लिपट-लिपट कर उनकी हिम्मत बड़ा रहा था। थोड़ी देर बाद बाबूजी बिल्कुल शांत हो गए। कोई भी उनके पास नहीं गया। सब दूर से देखते रहे। पर जैकी बाबूजी के शांत होते ही रोने लगा। वह समझ गया था कि बाबूजी उसको छोड़कर चले गए हैं। वह उनके पैर चाट रहा था। उन्हें हिला रहा था। जबकि परिवार के दूसरे लोग दूर खड़े होकर सोच रहे थे कि बाबूजी को आराम मिल गया है। डॉक्टर तो आने ही वाला है। तभी डॉक्टर पहुंच गया। 

 

डॉक्टर साहब ने बाबूजी को अच्छी तरह चैक किया और बताया कि सीवियर हार्ट अटैक के कारण बाबूजी की मृत्यु हो चुकी है। इनमें महामारी का कोई लक्षण नहीं है। 

 

पत्नी और बच्चे बाबूजी से लिपट कर जोर-जोर से रो रहे थे। पत्नी कृष्णा इस महामारी को कोस रही थी। जिसके कारण वह अपने पति के अंतिम क्षणों में साथ होकर भी साथ नहीं थीं। दोनों बेटे भी ग्लानि का अनुभव कर सर पटक रहे थे तथा कह रहे थे कि हमसे तो यह जैकी ही ज्यादा समझदार है जो अंतिम क्षण तक बाबूजी को बचाने की कोशिश करता रहा। इस महामारी ने तो रिश्तों की डोर भी कच्ची कर दी है। भगवान इस महामारी से सबकी रक्षा करना।

 

 

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