करोना
मुक्ति वर्मा, Noida (U.P)
करोना
महामारी क्या होती है
सचमुच सबने तो देख लिया
देखा कि मंदिरों की घंटियों से
दूर थी नव-रात्रि!
दीयों की जगमगाहट से
दूर थी नव-रात्रि !
सुंदर-सलोनी बच्चियों की
चहचाहती, लहलहाती,लाल चुनरियों से
रही वंचित यह नव-रात्रि !
पुष्प मालाओं की सुगंध से
बेजार रही नव-रात्रि !
देवी-देवताओं के पूजन से
बेजार थे मंदिर
थे बेहाल पंडित
छिन चुकी थी आमदनी
मंदिरों का जो हुआ सो हुआ
लॉक डाउन का आतंक सचमुच
कम ना था-मौत के पैगाम से
पर सुने कौन ?
क्यों सुने ?
ऊपर वाले की दुविधा का अंत
उफ! कैसा है ? संसार
कैसे हैं इसके लोग ?
क्यों इतना पाप, फैला रहे हैं ।
क्यों धन ही मां है
है, बाप ही धन
धन है तो पति है,पुत्र भी है
बिना धन ना तू-तू है-तो?
यह खून इतना पानी कैसे बन गया ?
कहां जा पहुंची हमारी मर्यादाएं ?
उफ़! कौन सुने, देखे यह सब
कब तक सह पाएंगे हम यह सब
उसकी-इस सोच का अंत न था
आखिर हो मननशील-हो गहन गंभीर
उसने लाठी को उठा लिया
क्या करेगा जग-अब सोचे जग
उसने सचमुच यह दिखा दिया
योद्धाओं का योद्धा बन के
छा गया वह विश्व पर ऐसे
मानो छा जाते हैं काला बादल नील गगन पर जैसे,
देखो! सब कैसे विहल है बेचैन हो रहे हैं सब
हैं सब की बुद्धि के बाहर
अब क्या होगा न जाने
बरबस नतमस्तक हो हाथ जोड़
सब शीश झुकाते जाते हैं
हे देव ! "करोना" तू ही अब हम सबका जीवन दाता है ।
चाहे तो प्राण बचा ले तू
चाहे एक भक्षक भस्म कर के
दुनिया की साख मिटा दे तू
सचमुच
बन लाठी उन तथ्यों की
जग को यह तुमने दिखा दिया
तुम संस्कारों के पूजक हो
अपनी लाठी से दिखा दिया
हम शरण तुम्हारी में है सब
अब की दो जीवनदान
अब समझे हम क्या चाहे तुम
बन अनुयाई करेंगे आवाहन
सुना है जब भी भीड़ पड़ी
पहरी बन तुम आते ही हो
गीता के इस उपदेश को तुम
कभी नहीं झूठलाते हो
हमें भरोसा है आओगे लाठी सा जम जाओगे
जग जीवन में आशा और विश्वास की
नई किरण फैलाओगे