कविता
लॉकडाउन के दिन
अब तो यही है रोना
संक्रमित हो रहे लोग
हो गईं
सड़कें, गलियां, कूचे
बचा नहीं अब
घर का कोना-कोना
चैन नहीं
अब उड़ गई आंखों की नींद
कैसे हो अब सोना
खाली दिन हैं, रातें खाली
शैतान का घर बना दिमाग है खाली
तू क्यों चुप है आली?
सोचो कैसे बीतेंगे दिन
बढ़ते तनाव पलछिन पलछिन
जैसे तरस रही मछली जल बिन
हम भी
गिन रहे दिन