कविता

   निशिगन्धा, वसंतकुंज, नई दिल्ली 110070


 


ख़ौफज़दा है आलम सारा
दहशत में है इंसां।
ख़ुद को नज़रबंद किया
बाहर पसरा सन्नाटा।


सूनी बस्ती, सूनी गलियां
कैसा है यह वीराना।


कब खुलेंगे घर के किवाड़
कब बहेगी बेख़ौफ़ हवा
ख़ौफज़दा है आलम सारा
दहशत में है इंसां।


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