कविता


उमा त्रिलोक


मो. 9811156310


कोरोना ने जगाया है


कोरोना ने जगाया है
भय अनिश्चितता चिंता 
बेसब्री बेबसी व बेचारगी
 क्योंकि
भागती दौड़ती ज़िन्दगी में
यकदम विराम जो लग गया है


उभरता है कभी वैराग्य
तो कभी खीज भी 
लेकिन
अब इस असहाय मनुष्य में
जग गई है संवेदना भी
तभी तो
गृहणी
चार बच्चों की मां
पकाती है परिवार के लिए
और साथ ही पुलिसवाले के हाथ भिजवाती है खाना उनके लिए
जो बेघर भूखे बैठे हैं 
चौराहे पर


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