कविता

 


डा चेतना उपाध्याय, 49 गोपाल पथ कृष्णा विहार कुन्दन नगर अजमेर राजस्थान Mob. 928186706
 


 " सुबह की जाग"


 


रात अभी  बाकी है,


सुबह अभी जागी है.


 
धुंधलका अभी छटा नहीं,


सूर्य किरण अभी बाकी है.


 
कोविद ने पंख पसार रखे


मौत का तांडव जारी है.


   
चहुंओर घबराहट है,


शान्ति की अभिलाषा जारी है.


 
स्पर्श की मनाही,


और सांसों पर पहरा है.


 
उजाला अभी हुआ नहीं,


अंधकार तो गहरा है.


 
हम पश्चिम की ओर दौड रहे,


पर भारतीय संस्कारों का पहरा है.



मात पिता की सेवा नहीं कर रहे,


पर उनका आशीष तगडा है.


 
जीवन की परिभाषा याद नहीं, 


उसका एहसास तो सुनहरा है.



शत वर्षों में कोविद ने जगाया हमें,


जाग का स्वाद तो गहरा है.



रसोई बाजारों में पहुंच गयी थी,


जिससे स्वाद हमारा बिखरा है.



गृहलक्ष्मी रसोई में जुट गयी,


सुगंधित महक यों फहरा है.



घर से बाहर भागने वाला आदमी,


आज घर पर ठहरा है.



घर पर रह कर आदमी,


अब अपने भीतर उतरा है.


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