लघुकथा 


डॉ सीमा शाहजी, अतिथि प्राध्यापक हिंदी , थांदला जिला झाबुआ मप्र , मो. 7987678511


 


"कोविद 19 तुझे हारना ही है"


चेत माह की सुहावनी सुबह थी, मेरे पिता वन विभाग के डिप्टी रेंजर है सो हमारा निवास भी वन के इस एक छोर पर ही था जहाँ जंगल में नाचता मोर नए सम्वत की बधाइयां दे रहा है घर से थोड़ी ही दूर बनी टपरियो से गायों का रंभाना, बकरियों का मिमियाना, नन्हे खरगोशों का फुदक फुदक कर नाचना ....वन प्रान्तर में आल्हाद के ये पल सचमुच ही सुकून का भांगड़ा बजा रहे होते है.


शाम को पापा और मैं अपनी ड्यूटी करके घर लौटे तो मां ने चाय मठ्ठी और नाश्ता दिया। पिछले दो सप्ताह से लाकडाउन क्वारनटाइन सेनिटाइजेशन जैसे शब्द हमारी बातचीत में शामिल थे । साथ ही देश व जिले की भी वार्तालाप को आधार देती ।    


पापा चाहते थे कि मैं पुलिस ऑफिसर बनू । उनके सपनों को साकार करने के लिए शिक्षा पूरी कर पुलिस विभाग में सब इसंपेक्टर की नौकरी जॉइन की । जिले के हेड क्वार्टर पर मेरी नियुक्ति हुई । वह  5 अप्रैल की अलसुबह थी । हवा के लिए मैंने खिड़की खोली और बाहर झांका तो जंगल में आग की तरह लोग सामान  हाथों में लिए बच्चो को पीठ पर लादे एक मार्च पास्ट की तरह चल रहे थे । आज पंखियो की मधुर आवाज बल्कि सिसकियों की आवाजें हवा में तैर रही थी ।


यह वही लोग थे जो अन्य प्रांतों में काम के लिए गए थे । वे अपने घरों की ओर लौटने की जुगत में पैरों से पैदल निकल पड़े थे।


इनमें कई लोग ढाई ढाई सौ किलोमीटर से भी ज्यादा चलकर अपने पैरों में छाले सहन कर आगे बढ़ रहे थे। बस एक ही लक्ष्य कि अपने घर तक पहुँचना है कैसे भी । स्थिति को देखते हुवे तुरंत ही पापा ने और मैंने मोर्चा सम्भाल लिया था। 


जिला पंचायत अधिकारी को सारी स्थिति से अवगत करवाया आधे घण्टे में स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी वहां आ गए थे और उन लोगो की जांच शुरू हो गयी। कई लोगो को उनके परिवार सहित गाँव पहुँचाने की व्यवस्था प्रशासन द्वारा की गई । और संदिग्ध लोगों को अन्य जांच एवम उपचार हेतु जिला मुख्यालय पहुचाया गया । तारीफ की बात यह थी कि कोई भी जवान बच्चा या बूढ़ा संक्रमित नहीं पाया गया ।


हम सभी के बीच चर्चा का विषय था कि इतने बड़े लोक लवाजमे के बावजूद सभी स्वस्थ पाए गए । हमारे बीच नानू डामोर उसके साथियों के साथ हम सभी को धन्यवाद देने आया । उसने बताया कि जगह जगह खाने के पैकिट मिले । कई बार भूखा भी सोना पड़ा। थकते गये, चलते गए, रात में वृक्षो के नीचे सो जाते। सुबह उगने से पहले फिर चल पड़ते । हाथों में नीम का दातुन चबाते चबाते । कही जंगली तुलसी मिलती उसे घरवाली बच्चे सभी चबा चबा के  नाश्ते की तरह खा जाते । लटालूम नींबू तोड़कर रस चूस लेते ।


साहब प्रकृति ने हमारा साथ दिया और कोरोना नामक जीव इन वनस्पतियों से डरकर भाग गया। 


हम सभी नानू डामोर और उसके साथियों का वानस्पतिक ज्ञान देखकर चकित थे । हमारी प्रकृति के साथ जीने की पद्धतियां और संस्क्रति "कोविद 19 तुझे हारना ही है " का सन्देश दे रही थी ।


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