हताशा

 संगीता कुजारा टाक, राँची, मो. 9234677837

 



हताशा

 

घर से निकले थे

घर की आस में...

 

उदास पैरों से 

उदास रास्तों पर 

उदासी ने घर कर लिया था 

चारों तरफ से 

 

कि  

गाँव के नुक्कड़ पर 

लिखा दिखा था 

"यहाँ आना मना है"

 

 

हर बार सुखद नहीं होता 

लौटना......!!

 

 


रोटियाँ

 

जब तुम थे 

रोटियाँ नहीं थीं

रोटियों के लिए 

लाइन में लगे 

लड़ाई की भीड़ से 

 

यह जानते हुए भी 

कि कोरोना घुस सकता है 

तुम्हारी उंगलियों के पोरों में

 

भूख की अनिश्चितता ने पागल बना दिया था 

 

और 

जब रोटियाँ हैं 

भीड़ से जीत चुके हो तुम 

तब ,.....तुम ही नहीं...

 


 

कोरोना काल

 

संक्रमित होना

जीव की पुरानी समस्या है

 

तुम्हारे प्रेम से

संक्रमित हुई मैं 

वर्षों से क्वॉरेंटाइन में हूँ  

 

तुम्हारे दिए

एकांतवास का दन्त 

सीने में गड़ाए.....

 

कोरोना तो आज की बात है!

 



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