सूर्य प्रकाश मिश्र, वाराणसी 221001 मोबाइल 09839888743
कोयल की बेटी
एक कोयल की बेटी का घर छोड़ना
सबका दिल तोड़ना याद आया मुझे
हो गई थी बड़ी बेवजह जिन्दगी
हँसके जीने की कोई वजह आई थी
धूप का एक छोटा सा टुकड़ा लिये
गुनगुनाती परी की तरह आई थी
घर के आँगन में खुशियों की बारिश हुई
तिनका -तिनका लगा था नहाया मुझे
हो गये आम के पात पीले सभी
गुलमुहर सुनके ज्वालामुखी हो गया
नीम रोने लगी घर की तकदीर पर
पेड़ महुए का खुश था दुखी हो गया
प्रेम के इस बदलते हुए रूप ने
संग उपवन के पूरे , रुलाया मुझे
झिलमिलाते सितारों की दुनिया का क्या
थी सुरीली कभी बेसुरी हो गई
बादलों पर घरौंदा बनाने चली
मखमली जिन्दगी खुरदुरी हो गई
इस नये दौर ने इक हरे पेड़ का
सूखना, टूट जाना दिखाया मुझे
गहरी खाई
बिटिया पढ़ने स्कूल चली
मुँह सूख रहा है माई का
हे राम तुम्हीं रक्षा करना
साया ना पड़े बुराई का
जब बिटिया घर से जाती है
तब मन में घुस जाता है डर
उसके घर लौट के आने तक
डरता रहता है सारा घर
जाने किस मोड़ पे मिल जाये
कब चेहरा किसी कसाई का
चल देती स्कूली बस में
जैसे ही घण्टी बजती है
पर माई क्यों डर जाती है
ये बिटिया नहीं समझती है
खलता है उसको सुबह-शाम
संग जाना छोटे भाई का
झूठी हैं पंखों की बातें
झूठी है बात उड़ानों की
चुगली कर रही हवा बोझिल
तकदीर सुरीली तानों की
हँसता है नई तरक्की पर
मुद्दा ये गहरी खाई का