क्षितिज
योगेश मित्तल
जन्म-जन्म के साथी हैं वे
पर नियमों का पहरा चारों ओर।
दूर खड़े विपरीत दूजे से
बांधे अखण्ड प्रेम की डोर।।
ताक रहे एक दूजे को हर क्षण
लिए विभिन्नताएँ अनेक प्रकार।
हैं ब्रह्म व्यूह में बंधक वे दोनों]
और विश्व दूरी से लाचार।।
प्यासी आँखों से देख रहे
वे मिलन का सपना आज।
बीत गई सदियों पर सदियाँ
पर मिट ना पाई लाज।।
केवल एक किरण है दूर क्षितिज पर
संजोए अनुपम मिलन के सपने।
अब चले है दोनों उस ओर
बिखेर अपने प्रेम की किरणें।।
मार्ग है उनका काँटों भरा
बहुत विकट उनकी राह है।
पर नेत्रों में आज ज्वाला है
और मिलन की अमिट चाह है।।
है प्रकृति उन दोनों के बीच
बाँधे असीम ऋतुओं की धारा।
संकट है उनके क्षण-क्षण में
और केवल प्रेम का सहारा।।
धूप-छाँव ने घेरा उसे
आँधी ने भी छलाया।
कहीं बारिश बन कांटे बरसे
छलनी कर भू को सताया।।
उधर आकाश में छाया घोर अंधियारा
और घटाओ में भीष्ण गर्जन,
तीव्र तपन है सूर्य की किरणें
और प्रकृति का प्रबल रूदन
बाधाओं,कठिनाइयों से जूझती वह
मिलन के सपनों में झूमती वह।
प्रतिपल बढ़ती है क्षितिज की ओर
समेटने तारों और बादलों की भोर।।
है क्षितिज अब बेहद निकट
अब दोनों प्रेमी भी समतल में।
हुए सफल अब दोनों श्रमिक
और गिरता है आकाश धरती के आँचल में।।
है विभोर वे उस प्रेम मिलन में
खोaaये हुए एक मर्म स्वप्न में
आनंदित है धरती और मग्नमय नभ आकाश
हर रोम बिखेरता पावन प्रेम का प्रकाश
दिल्ली, मो. 9711252888