समीक्षा

अमृतलाल मदान, सिरसा, हरियाणा, मो. 9466239164


विकेश निझावन के कहानी संग्रह ‘छुअन तथा अन्य कहानियाँ के रोमाँच और शॉक्स


देश के लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में दो सौ से ऊपर कहानियाँ एवं कविताएँ प्रकाशित करा चुके तथा ‘पुष्पगंधा‘ के सम्पादक विकेश निझावन का यह कहानी संग्रह तेईस कहानियों से सुसज्जित है। ऊपर से देखने पर हर कहानी का शिल्प और भाषा सीधी व सहज, किंतु भीतर कितनी ही गुत्थियाँ और गुंजल, बाप रे! और अंत में आकर कुछ सुलट जाने का अहसास या फिर सुरंग के अंत में रोशनी की किरण दिख जाने का भी एक के बाद एक तेईस सुरंगों से गुजरने जैसा है इसे पढ़ना।


लगभग आधी संख्या की कहानियों में तो व्यक्ति-मन की रहस्यमयता के झीने परदे ही पाठकों को कुछ सोचते जाने पर ही विवश करते हैं। लगता है कि विकेश विविध पात्रों की विविध मनःस्थितियों एवं अनकही अभिव्यक्तियों का कुशल चितेरा है जैसे वैसे भी वह चित्रांकन तथा रेखांकन की कला में निपुण है‘। प्रसिद्ध चिंतक निर्मल वर्मा ने ‘साहित्य का आत्मसत्य‘ नामक निबंध संग्रह में साहित्य-सृजन के दौरान सोच की प्रक्रिया के अतिरिक्त रहस्यमयता एवं रसमयता के तत्वों को रेखांकित किया है। इनके चलते मैं समझता हूँ कि विकेश की अधिकतर कहानियों में भी वर्मा जी के शब्दों में न जाने कितनी पछाड़ खाती भावनाएँ, लहु-लुहान करते अन्तद्वन्द्व, संदेह और आत्मभ्रान्तियों के बीहड़ आते हैं जिन्हें मनुष्य भोगता है।‘ विकेश का सजग-संवेदनशील कथाकार इन बीहड़ों का द्रष्टा भी है, उन्हें अपने बेचैन शब्दों के घरों में समेटने का प्रयास करता हुआ। आधी कहानियों के बाद की कहानियाँ जीवन की कुछ स्थूल आवश्यकताओं के कथ्य से जुड़ी हैं, हालाँकि इनमें से भी विचार का निष्कासन नहीं होता। इन जरूरतों में मनुष्य की कामेच्छाओं के अलावा आर्थिक सुरक्षा, रोटी से उदर की पूर्ति, स्त्री की समाजिक सुरक्षा आदि मुददे हैं, पर राजनीतिक या कोरी विचारधारात्मक नारेबाजी नहीं है। विकेश कहानियों के प्लॉट बुनते हुए प्रतीकों, संकेतों, औत्सुक्य व विचित्र प्रकार की रहस्यमयी अनुभूतियों से जूझता चलता है। कहानी-संग्रह की पहली कहानी ‘यहाँ कोई बैठा है‘ की भरी ट्रेन में खाली सीटें आरक्षण की समस्या का प्रतीक बन जाती है। यात्री अमर बाबू अपने बेटे के पर्याप्त प्रतिशत अंकों के बावजूद भी आश्वस्त नहीं हो पाते कि आगे उसे दाखिला मिल जाएगा। बुढ़िया की गठरी, हिजड़ों का नाच आदि कुछ ऐसे संकेत हैं कि सीटों को हड़पने के. चलते सब ठीक नहीं है।


विकेश की कहनियों के अधिकतर पात्रों को जीवन के असहय बोझ ने उन्हें सहज मानवीय गरिमा से वंचित कर दिया है, फिर भी छिपकली की तरह वे जीवन से चिपके हुए हैं। छिपकली विकेश का प्रिय प्रतीक है‘ यथा गाँठ, सिलवटें, उसका फैसला आदि। कहानियों के पात्रों का अचानक हँस पड़ना, बिना बात मुस्करा देना, घर के भीतर-बाहर दम घुटने का संत्रास झेलना, उनकी विभिन्न सोच, मानसिक प्रतिक्रियाओं का परिचय देते हैं,


जिनके कारण वे अनेकानेक संदेहों व भ्रमों का शिकार होते हैं और धीरे-धीरे मरते रहते हैं। यथा ‘सिलवटें‘ का श्रीधर जो एक ही दिन में नहीं मर जाता, पत्नी सरिता की कठोरता के कारण वह अंदर घुट-घुट कर जीता हुआ अन्ततः सैर के बहाने नदी में जा डूब मरता है। यहाँ ‘सिलवटें‘ संदेहास्पद बिस्तर की ही नहीं, जीवन की बेचैन करवटों की भी हैं। ऐसे ही ‘उसका फैसला‘ विद्या ऐड्स के प्रौढ़ मरीज की सेवा करते-करते उससे शादी रचा बैठती है ताकि रोगी को नारी का प्यार तो मिले। एक अन्य श्रेष्ठ कहानी ‘सुरंग‘ में भी विचित्र मानसिकताओं वाले रेल यात्री हैं जो अपनी अपनी सुरंगों में खोये हैं, यथा अपने साथ ताश खेलता यात्री, छात्र के साथ दुष्कर्म का अपराधी मास्टर का सम्बंधी, बेघर हुई बुढ़िया। ‘आश्रम‘ कहानी का कस्तूरी अपने मास्टर का लिंग काटने को चाकू की धार तेज करता दिखता है, अपनी माँ की तरह। ‘सुरक्षा कवच‘ में एक सास अपनी बहू शिप्रा द्वारा लगातार प्रताड़ित होती हुई जज से जेल की सजा की मांग करती है, जो घर की यातना से अधिक सुखकर होगी। ‘चूड़ियाँ‘ कहानी में रज्जो का मोहभंग तब होता है जब वह अपने कथित प्रेमी को गुरुद्वारे के बाहर नवविवाहिता के साथ देखती है। ‘खुशबू वाला सिक्का‘ में घर में बंदी बनी आगरे वाली लली का पालतू बंदर भी एक सजीव पात्र है। उसका दिया पाँच रुपये का सिक्का बाद में कथानायक के लिये प्रमोशन का आशीर्वाद बन जाता है। ‘मातृछाया‘ भौतिकता की भागदौड़ में भावना की विजय का प्रतीक है, तो ‘मछलियाँ‘ कथित साहित्यकारों की पैसा, यश लिप्सा पर करारा व्यंग्य, कहानियाँ अन्ततः, अंग्रेजों, हेयर स्टाईल, चाँद में दाग, पाखण्डी आदि मनुष्य की स्थूल आवश्यकताओं, विवशताओं तथा फूले हुए अहं ‘ईगो‘ की कहानियाँ हैं तो प्रपंच ढोंग की ऊपरी सतहें कुरेद कर भीतर का सत्य दिखाती हैं चाहे वे चिलम वाले बाबा हों या धूंघट की आड़ में दूध में पानी मिलाने वाली तोषी हो-या मिलन खुशी के माँ-बाप। हाँ, इन कहानियों के अंत चकित कर देने वाले भी हैं।


‘छुअन‘ कहानी वाकई शीर्षक बनने के लायक है। गरीब शिवा की अत्यन्त कुरूप बेटी अंततः एक अपंग आदमी में अपना जीवन संगी ढूंढती है तथा उसमें अपने दिवंगत पिता की देहगंध भी। कहीं-कहीं यह बात खटकती है- जहाँ निपट अनपढ़ पात्र भी हिंदी के कुछ कठिन शब्दों का प्रयोग कर जाता है। वरना सभी कहानियों में प्रवाह है, सुधि पाठकों को बाँध रखने की क्षमता है, आगे क्या होगा की जिज्ञासा है, खुल कर वर्णन करने में सुखद झिझक है, गंभीर सोच की लगातार प्रक्रिया है, चौंकाने-चुंधियाने वाली दृष्टि है। विकेश को एक संग्रहणीय संग्रह देने की हार्दिक बधाई।


पुस्तक: छुअन तथा अन्य कहानियाँ, लेखकः विकेश निझावन, प्रकाशनः विश्वास प्रकाशन, अम्बाला।



विकेश निझावन, अम्बाला (हरियाणा), मो. 8168724620


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