शिव-ताण्डव स्तोत्र


अनुवादक : ज़ाहिद अबरोल, ऊना (हि.प्र.), मो० 98166 43939


 


रावणकृत “ शिव-ताण्डव स्तोत्र” (संस्कृत) और उसका उर्दू काव्यानुवाद


उसी बहर/वज़न (छन्द/मात्रा-क्रम) में


 


जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले,गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् |


डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं, चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||१||


 


(1)


जटाओं  से  निकल   रही   है  धार   रूदे-गंग   की


गले  में   माला  सज   रही   तने   हुए   भुजंग   की


डमड्डमड   डमरुओं  की  लय  पे  रक़्स  ताण्डवम्


भला करें सभी का ‘शिव’, नम: शिवम् नम: शिवम् ।


नम: शिवम् नम: शिवम् नम: शिवम् नम: शिवम् ।


(रूद-ए-गंग = गंगा नदी, रक़्स = नृत्य)     


****


जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी, विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि |


धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाट पट्ट पावके किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ||२||


 


(2)


जटायें  सैरगाह  हैं  तरंग-ए-रूद-ए-गंग की


ललाट पर शदीद आग की है लौ  धधक रही


सजा हुआ है जिनका  शीश नन्हे माहताब से


उन्हीं के ध्यान  में  मिरा  हमेशा मन  लगा रहे ।


नम: शिवम् नम: शिवम् नम: शिवम् नम: शिवम् ।


(शदीद = प्रचण्ड , माहताब = चाँद )


****


धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुरस्फुरद्दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे |              


कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ||३||


 


(3)


जो   दुख़्तर-ए-हिमाला   के  हसीन  तंज़  भी   सुनें


जो इश्क़िया-ओ-दिलकुशा से ता'नों पे भी ख़ुश रहें


सभी  की    परवरिश  करें   मिटायें   सब   मुसीबतें


लिबास  जिन  का  आस्मां  हम  उनको  पूजते  रहें ।


नम: शिवम् नम: शिवम् नम: शिवम् नम: शिवम ।


(दुख़्तर-ए-हिमाला = हिमालय की बेटी (पार्वती) , दिलकुशा= विलासमय एवं रमणीक)


****


लता भुजङ्ग पिङ्गलस्फुरत्फणा मणिप्रभा कदम्ब कुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्व धूमुखे |


मदान्ध सिन्धुरस्फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ||४||


 


(4)


जटा में नाग की  मणि  के नूर  को  लिये  हुए


उसी को काइनात में हर  इक  तरफ़  बिखेरते


जो हाथियों की खाल को पहन के हैं सजे हुए


उन्हीं के  पाए-पाक पर  हमेशा मेरा  सर  झुके ।


नम: शिवम् नम: शिवम् नम: शिवम् नम: शिवम् ।   


(काइनात = ब्रह्माण्ड , पाए-पाक = पवित्र पांव )


****


सहस्र लोचनप्रभृत्य शेष लेखशेखर प्रसून धूलिधोरणी विधूस राङ्घ्रि पीठभूः |


भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः ||५||


 


(5)


जो  ‘इंद्र’  जैसे   देवताओं   के  सरों   पे   झूमते


वो फूल धूल बन के ‘शिव’ के पांव में  हैं लोटते


जटा पे जिन के नाग , सर  पे ताज  माहताब  का


वो   पाएदार     शादमानियां    हमें    करें   अता ।


नम: शिवम् नम: शिवम् नम: शिवम् नम: शिवम् ।


(पाएदार शादमानियां = स्थाई ख़ुशियां ,  अता = प्रदान )


****


ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जयस्फुलिङ्गभा निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम् |        


सुधा मयूखले खया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदे शिरोजटालमस्तु नः ||६||


 


(6)


जो सर  से  लौ निकाल भस्म ‘कामदेव’ को करें


और ‘इंद्र’   जैसे   देवताओं  का  ग़रूर  तोड़  दें


जटाओं  में   सजे  हैं   जिनके चाँद  और जाह्नवी


वो  ‘शिव’ अता  करें  हमें  आसूद:हाल  ज़िंदगी ।


नम: शिवम् नम: शिवम् नम: शिवम् नम: शिवम् ।


(आसूद:हाल = समृद्ध )


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कराल भाल पट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड पञ्चसायके |


धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम |||७||


 


(7)


ललाट  से  निकाल  कर  शरर  शदीद  आग  का


जिन्होंने  एक  पल में  ‘कामदेव’ भस्म  कर दिया


मुसव्वरी  करें  जो  छातियों  पे  बिन्त-ए-कोह की


वो ‘शिव’ हैं  साहिबे-फ़नून मैं हूं उनका ख़िदमती ।


नम: शिवम् नम: शिवम् नम: शिवम् नम: शिवम् ।


(शरर = लपट , बिन्त-ए-कोह = पर्वत(राज) की पुत्री , मुसव्वरी = चित्रकला साहिबे-फ़नून = कलाओं के स्वामी , ख़िदमती = सेवक)


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नवीन मेघ मण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः |


निलिम्प निर्झरी धरस्तनोतु कृत्ति सिन्धुरः कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ||८||


(8)


गला सियाह जिनका अब्र-ए-नौ में  घिरती  रात सा


जो रूप गज की खाल , गंग-ओ-माहताब से खिला


जो  सर   पे  बोझ  काइनात  का  उठाए   फिर   रहे


उन्हीं  से  सब  तरह  की  हम  आसूदगी  हैं   मांगते ।


नम: शिवम् नम:शिवम् नम:शिवम् नम: शिवम् ।


(अब्र-ए-नौ = नवीन मेघ , आसूदगी = समृद्धि )


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प्रफुल्ल नीलपङ्कज प्रपञ्च कालिम प्रभा वलम्बि कण्ठकन्दली रुचिप्रबद्ध कन्धरम् |          


स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छि दांध कच्छिदं तमंत कच्छिदं भजे ||९||


 


(9)


मिटा के ‘कामदेव’, ‘त्रिपुरासुर’,’गजासुर’,’अंधका’


मिटा के ‘दक्ष-यज्ञ’,‘काल’ को भी बस में कर लिया


गिरेबां  और  शाने  जिनके  ज्यूं  कमल    खिले  हुए


मैं  उनका  ही  भजन  करूं  वो  दुख  हरें  जहान  के ।


नम: शिवम् नम: शिवम् नम:शिवम् नम: शिवम् ।


(गिरेबां और शाने = गला और कन्धे)


****


अखर्व सर्व मङ्गला कला कदंब मञ्जरी रस प्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् |


स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्त कान्ध कान्तकं तमन्त कान्त कं भजे ||१०||


(10)


जिन्होंने ‘कामदेव’, ‘त्रिपुर’, ‘गज’ हो या हो ‘अंधका’


वो ‘काल’ हो  कि ‘दक्ष-यज्ञ’ सब  का  अंत  कर दिया


जो  भँवरा  बन  के  रस  सभी  कलाओं  के  हैं  पी  रहे


मैं  उनका   ही  भजन   करूं  वो   दुख  हरें   जहान  के ।


नम: शिवम् नम: शिवम् नम: शिवम् नम: शिवम् ।


(त्रिपुरासुर,गजासुर,अंधिकासुर राक्षसों के नाम हैं जिनका वध शिव ने किया था)


****


जयत् वदभ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस – द्विनिर्ग मत् क्रमस्फुरत् करालभाल हव्यवाट्


धिमिद्धिमिद्धिमि ध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ||११||


 


(11)


जो  तेज़  तेज़  झूमते  हैं    सांप   उनकी  फूंक    से


ललाट  में  भी  शिव के आग के  शरर  भड़क  उठे


मृदंग  की    धमद्धमद्ध  लय  पे    रक़्स    ताण्डवम्


हैं  मस्त ‘शिवजी’ रक़्स में नम: शिवम् नम: शिवम् ।


नम: शिवम् नम: शिवम् नम:शिवम् नम: शिवम् ।


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स्पृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्- – गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः |            


तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः ( समं प्रवर्तयन्मनः) कदा सदाशिवं भजे ||१२||


 


(12)


वो  दोस्त  हो  कि  हो  अदू , चटान  हो   कि   बिस्तरा


वो  सांप  हो  कि माला हो, वो  रत्न  हो  कि  हो  डला


वो हुक्मरां हो ख़ल्क़ हो,कमल हो या हो ख़ार-ओ-ख़स


सभी  हैं  ‘शिव’ को  एक  से , जपूँ  उन्हें  मैं  हर  नफ़स ।


नम: शिवम् नम: शिवम् नम: शिवम् नम: शिवम् ।


(अदू = शत्रु , हुक्मरां= शासक , ख़ल्क़ = प्रजा , ख़ार-ओ-ख़स = कांटे और फूस, नफ़स = सांस )


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कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् |


विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ||१३||


 


(13)


मैं   रूद-ए-गंग   के  कछार   पर  मुक़ीम   हूँ   अभी


बाएहतराम  सर   पे  रख  के   अँजली  ख़ुलूस   की


हूँ कब से ‘शिव’ की शोख़तबअ सी नज़र को पूजता


मैं  जप  रहा  हूँ  मंत्र  कब  मिलेगा   सुख  वो   देरपा ।


नम: शिवम् नम:शिवम् नम:शिवम् नम: शिवम् ।


(मुक़ीम = निवासी , बाएहतराम = सम्मान सहित , ख़ुलूस = निष्कपटता, शोख़तबअ = चंचल स्वभाव वाली ,
देरपा = चिरस्थाई )


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इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् |


हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ||१४||


 


(14)


इस आलीशान हम्द-ए-‘शिव’  को रोज़ जो  पढ़े सुने


वो   शख़्स  इस  जहान   में   हमेशा  पाक    ही   रहे


वो  उम्र  भर  हर  इक  गुमान-ओ-वहम  से  बचा रहे


‘शिव’ उस में  ही बसे रहें वो ‘शिव’ में  ही  बसा रहे ।


नम:शिवम् नम:शिवम् नम: शिवम् नम:शिवम् ।


(हम्द-ए-‘शिव’ = शिव-स्तुति , गुमान-ओ-वहम = शंका और भ्रम )


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पूजा वसान समये दशवक्त्र गीतं यः शंभु पूजन परं पठति प्रदोषे |                     


तस्य स्थिरां रथगजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः ||१५||


                         इति शिव- ताण्डव- स्तोत्रम् ।


(15)


सुबह सवेरे  सच्चे  मन  से  शिव-पूजा  के बा'द


शिव-ताण्डव की हम्द जो गाए सदा रहे वो शाद


उस के घर में  लक्ष्मी  माता  रहे  अटल आबाद


मालामाल  रहे  वो  हर  पल  हर ग़म से आज़ाद ।


           " इख़्तिताम-ए-हम्द-ए-शिव-ताण्डव "


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