विकास हो रहा है
डॉ श्यामबाबू शर्मा शिलांग
गाँव घर के लोग
अब
भावुकता में आपा नहीं खोते
अपनपौ में नहीं फंसते
'हित अनहित पशु पक्षी जाना'
उन्हें समझ आने लगा है
गँवार, उजड्ड, जाहिल
आखिर कब तक?
अब उनकी मुट्ठियां
हो रही हैं सशक्त
फौलादी
मसलने के लिए उनको
जिन्होंने भरे मन से
छोड़ा था गाँव
इन्हीं अपनों के लिये
खपा दी दो तिहाई उम्र
उस ठौर से दूर
जहाँ डोली से उतरी थी माँ
जनी थीं संतानें
विदा हुई थीं बहनें
हुई थी परछन भौजाइयों और पत्नी की
और
अम्मा की डोली उठी थी. .
अत्याधुनिक दुनिया के
विविध रंगी मेहराबों में
खुद को रंग रहा है गाँव
अब
गँवई गाँव भदेस
संस्कृति की दरकार किसे है?
जहाँ रतौंधीग्रस्त
ग्लोबल विलेज का मॉडल हो
भइयाचारी की टूटती कसमें हों
देश की संपत्ति जायदाद
हो दस बीस लोगों के कब्जे में
वहाँ पिछड़े असभ्य बदसूरत
पुरवे खेड़े की दरकार किसे है?
सुना है
टोले भर की जमीन बराबर
बनी है हाकिम की आरामगाह
और इश्तहार में मडैया
चूल्हा रोसइया अलनहाई टटिया
मुस्कुरा रही हैं
याद आ रहा है
गुरू जी का पढाया
विकासवाद
बड़ा ताकतवर था वह
अब
संग्रहालय में है. .
स्वतंत्र लेखक, अनुवादक व एकेडमिक काउंसलर (स्नातकोत्तर हिन्दी एवं अनुवाद डिप्लोमा), इग्नू, शिलांग ( मेघालय)
संपर्क सूत्र : 9863531572