ज़िन्दगी के मर्तबान से (समीक्षा)

 रश्मि प्रभा, मुम्बई, मो. 7624961192


कुहू गुप्ता, जिन्हें भगवान से सुरीली आवाज़ सौगात के रूप में मिली है और जिन्होंने अपनी मेहनत से भारत के सर्वश्रेष्ठ में से एक कॉलेज - IIT Bombay - से कंप्यूटर इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की है, वे रचनात्मक और आध्यात्मिक संतुष्टि की खोज में कभी कभी लिखती भी हैं. उनके लिए अभिव्यक्ति संशुद्धि के सामान है. वे गुलज़ार से अत्यधिक प्रेरित हैं और लिखने के मामले में उन्हें अपना गुरु मानती हैं.


हवाओं के पैरों में घुघरू बाँध 


जब जब वह मुझसे मिली है 


उसकी मुस्कान गुनगुनाती लगी है 


चेहरे पर एक अल्हड़ चपलता 


सधे आलाप लेती है ....


कुहू गुप्ता, · सुरों के मर्तबान से निकला एक स्वर, और उनके जीवन की कुछ ख़ास पगडंडियां, जो रास्तों की शक्ल ले रही हैं खट्टे, मीठे, तीते, फीके अनुभवों के साथ। उसे "ज़िन्दगी के मर्तबान से" मन के हाथों बने अँचार की तरह लेकर मेरे पास आई, भावों का सहज,सरल स्वाद, जिसके बिना ज़िन्दगी अधूरी ही होती है। आवरण अपने आप में एक नज़्म है, वो भी गुलज़ार की नज़्म ! आँखें चमकी न ? समझ सकती है, जो नज़्म की छाँव में ज़िन्दगी की कड़ी धूप से पल-दो- पल की थकान मिटाते हैं, वे आवरण की व्याख्या से ही इस विशेष संग्रह की बानगी समझ सकते हैं। आइये, ज़िन्दगी के मर्तबान से सेकेण्ड,मिनट,घंटे,दिन,सप्ताह, महीनों की धड़कनें निकालते हैं और अपने अपने मन के इअर फोन से सुनते हैं - पहली नज़्म ATM'- जिससे पैसे नहीं निकलते, शाख से जुड़े सूखे पत्ते में जैसे कोई तिरोहित हो जाए, कुछ उसी तरह कह कहती है


 


"हर सुबह ATM से खर्चने के लिए 


एक दिन की साँसें


एक दिन की हिम्मत


एक दिन का उत्साह 


ले आती हूँ ... उतना ही मिलता है 


खुदा तेरी बैंक भी गजब है !"


एक बार में जीवन रुपी ATM से सब कहाँ मिलता है, कई बार तो बैलेंस भी नहीं होता,ख़ुदा की नेमत, - किसी न किसी से कुछ जमा करवा ही देता है !


तभी तो उम्मीदें कहती हैं,


"तू आना कभी मेरे घर फुर्सत में 


अपने तहखाने की सैर की आड़ में 


मेरी 'ब्लैक एंड व्हाइट' 'गैलरी' दिखाऊँगी"


'बिन मौसम की बारिश से बस तबाही होती है' - कुहू ने कहा, पर इस ख्याल ने उन्हें चंद शब्द दे दिए जेहन की कटोरी में भरकर ... तभी तो कलम कहती है,


"कुछ मैंने नदियों को काटा, कुछ उन्होंने मुझे 


अब लगता है शायद निखर गई हूँ मैं"


निःसंदेह, जीवन रुपी नदियों को हम शक्ल न दें, वे हमें न तराशें तो चमक कहाँ मिलती है! और जब चमक मिलती है तो उससे प्यार की किरणें उतरती हैं, कहीं कोई अँधेरा नहीं होता, जबकि - 


"तेरा बोसा ... 


सिरहाने रख सोती हूँ 


किसी ने देखा नहीं है ....


एक मासूम, अल्हड से जज़्बात, जिसके आगे कवयित्री भीड़ से अलग अपनी सोच में नहाती है! और


.. कहती है मुस्कुराकर -


"बड़ी बेतकल्लुफी में हूँ मैं 


तेरा मेरा होना अब हमसे पर है"


ज़िन्दगी के इस मर्तबान में आपको अपना अक्स मिलेगा, हर अगले पन्ने पर एक सीधा,पर गहरा ख्याल आपको अपना लगेगा। नई पीढ़ी सिर्फ जीती नहीं है, यात्रा के छोटे छोटे निशानों को भी भावनाओं के छोटे-बड़े फ्रेम में सजा देती है - कुछ इस अंदाज में,


"अपने हाथों में चीनी रखती हूँ 


रोज पर्दे हटाते हुए 


फूंको से हवाओं में उड़ाती हूँ ..." क्योंकि,


"बेरंग हवा को ख़ुशनुमा बनाना 


बेसाज़ पानी को मौसिकी बनाना 


खुद मेरे ही हाथों में है ... है ना ?"


 


ज़िन्दगी ही है,उदासी झलकती है कहीं कहीं, पर हर हाल का हौसला हर हाल में जीने का दमख़म रखता है। जी हाँ,


"सुना है दिल की थैली में छेद हुआ है ! 


रहने दो छेद, हवा भी लगती रहेगी ... 


दिल का क्या है, .... 


छेद के साथ भी जी लेगा"


नज़्मों का बेहतरीन अँचार है इस मर्तबान में, चखा नहीं तो फिर बात यही रह जाएगी न ?


"तुझे तो बहुत शौक था न बातें करने का


देख, तू साथ था तो कितने पन्ने भर दिए थे


....... इन पन्नों में अहसासों की गुनगुनाहट है,एक बार इसे देखिये तो - पढ़ने का मन हो ही जाएगा। अभी तो यह पहला खज़ाना है, कई खज़ाने मिलेंगे - शुरू कीजिये यात्रा ! विशेष जानकारी के लिए


www.kuhoogupta.com


Author - Zindagi Ke Martbaan Se


Singer / Song-writer / Performer



कुहू गुप्ता


 


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