अभिनव इमरोज़ आवरण पृष्ठ 3


ईश्वर


अरबों वर्षों के बाद भी
यदि अभी भी बची हैं
ईश्वर में संवेदनायें


तो वह दुःखी होगा धरती की दशा से
मनुष्य की दिशा से
वह दुखी हुआ होगा वह
हूणों की बर्बरता, कलिंग के युद्ध,
चंगेज़, तैमूर और नादिर कुली की क्रूरता से


और तो और
उसे दुःख हुआ होगा अपार
दोनों विश्वयुद्धों, वियेतनाम-वार,
इराक-ईरान की लड़ाई,
बगदाद के विनाश से


आओ!
ईश्वर के दुःख से दुखी हम
करें वसमवेत प्रार्थना
ईश्वर करे
कि हो ईश्वर के असीम दुःखों का अंत।



सुधीर सक्सेना, भोपाल, 
मो. 9711123909


 


हृदय का दीपक


हृदय में दीपक जो रखा है
जिगर का तेल डाला है
यादों की माचिस से
एक-एक तीली जला कर
रोशन उसे बना रखा है।
बुझने नहीं दूंगी वह शमा
लाख परवाने आ जायें
झूमते, गाते, मंडराते
चाहे प्राण भी अपने दे जायें।
ऐसे दीवानों की हस्ती क्या 
जो साथ चले न पग भर भी।
जलती शमा पर जल कर खुद
क्या हाथ पकड़ेंगे तिल भर भी?
मेरे हृदय का दीपक जलता है
जलता रहेगा पल, पल, पल।
हर पल कहता जायेगा
यह दीपक जले है पल-पल-पल।



निर्मल सुन्दर, नई दिल्ली 
मो. 9910778185


Popular posts from this blog

भारतीय साहित्य में अन्तर्निहित जीवन-मूल्य

कुर्सी रोग (व्यंग्य)

कर्मभूमि एवं अन्य उपन्यासों के वातायन से प्रेमचंद