अभिनव इमरोज़ आवरण पृष्ठ 2


 


खामोशी


खामोशी ने रोक दिया शब्द को
शब्द
स्तब्ध, रुका रहा स्तंभ सा


बना रहता शब्द, यदि शब्द तो
बन गया होता
काव्य, दर्शन
साहित्य व संगीत
या फिर
त्रास, रुदन वेदना संताप


मगर
खामोशी ने तो
खामोशी में ही
सुन लिया था
उसका वह
झंकृत अनंत नृत्य नाद, और
देख लिया था, उसका
संसार भव्य और विस्तार



उमा त्रिलोक
मोहाली, चंडीगढ़
मो. 9811156310 


 


प्रकृति है मयूर पंखी


यह प्रकृति है मयूर-पंखी,
राग मल्हार गुनगुनाती है।
अधर-अधर है आह्लादित,
विस्मृत कटुता करती है।


निकल कोहरे की कन्दरा से,
रवि-रश्मि जब मुस्काती है।
हरियाली की हर महफिल में,


जीवन-कलिका बौराती है।
रात रुपहरी, प्रात सुनहरी,
पल-पल पलकें झंपती हैं,
कलि-कलि के प्याले में जब,
मधुकर लहरी कंपती है।
वरदानों की सौगातों से
तब हर जीवन महकाती है,
यह प्रकृति है मयूर-पंखी,
राग मल्हार गुनगुनाती है।


ऊँचे तने शिरीष खड़ा है,
चम्पा-चमेली झूमे बाँहों में,
पवन वेग से धूल उड़ाता,
मद-गंध महकती राहों में।
ढकते रहते फूल धूल को,
कलियाँ हँसती नव-तन में,
नव-गुलाबों की सुन्दर बस्ती,
दूर्वा विहंसती रजतल में।
हरीतिमा से घिरी घाटी में,
जब जब वर्षा नर्तन करती है,
यह प्रकृति है मयूर-पंखी,
तब राग मल्हार गुनगुनाती है।



मंजु महिमा, अहमदाबाद
 मो. 9925220177


Popular posts from this blog

अभिशप्त कहानी

हिन्दी का वैश्विक महत्व

भारतीय साहित्य में अन्तर्निहित जीवन-मूल्य