राजा नंगा है!
नरेन्द्र मोहन, नई दिल्ली, मो. 9818749321
राजा नंगा है!
'नित नए रूपों, नूतन छवियों में मुझे सजाने वाले,
ओ बुनकर, ओ बुनकर की औलाद
उज़बक-सा तू खड़ा
वादे करता रोज़ बुनूँगा जादुई पारिधान
देख जिसे अश-अश करती दुनिया होगी पैरों में
ओ ढपोरशंखी, क्यों न लाया अब तक मेरा नया लिबास तू
बोल ज़रा, क्यों न कर दूँ तेरा काम तमाम?'
राजा के चरणों में गिर बुनकर लगा घिघियाने
'हे राजाओं के राजा, महाराजा
माफ कीजिए, चूक हो गयी
उच्च कला की मानक हो, सर्वोत्तम हो
पोशाक आप की
इसी फ़िक्र में कुछ टाँके कुछ बटन रह गए लगने
हे राजाओं के राजा, माफ कीजिए, चूक हो गयी
जान बख्शिए कल तक बस!'
अट्टहास कर उठा राजा-
‘कल तक बस....'
काँप उठे चारों कोने 'कल तक बस...'
अगले दिन डरता-सकुचाता बुनकर
हाज़िर हुआ राजा सम्मुख-
प्रस्तुत हूँ महाराज
एक नज़र-भर देख लीजिए
झीनी-झीनी तारों-अंतर्तारों से बुना
सूक्ष्मतर अनुपम लिबास
देखा न पहना होगा आज तलक किसी महिपति ने
क्षण-भर में बुनकर ने
बड़ी नफ़ासत से राजा को निर्वस्त्र किया
अगले ही क्षण पहनाया नया लिबास-
‘हे राजा, हे महाराजा-
देह-कल्पना में देख निराली देह स्वयं की
बिल्लौरी काँच-सी घूमती
रग-रग झलकाती जगमग-जगमग
इंद्रदेव ललचाता जिसके लिए
परिधान यही-पारदर्शी अगम्य, अमूर्त, आलौकिक
नक्षत्रों-सा देदीप्यमान
देख न सकेगा जो वह
मूर्ख-शिरोमणि होगा अंध-अभागा'
पलक झपकते धूम मच गयी
मुर्ख के लिए अगम्य राजा के नए वस्त्र की
स्तब्ध खड़े रह गए-
राज पुरोहित, मंत्रिगण, सभी सभासद
सम्मोहित भय-कंपित-से देखते
राजा को नए वेश में
राज पुरोहित ने आगे बढ़ राजा का तिलक किया
ढोल-नगाड़ों की ध्वनियों के साथ दूजे ही पल
मदमाता राजा हाथी पर था
विशाल जुलूस के आगे-आगे मंत्रिगण, सैन्य प्रमुख, श्रेष्ठिजन
राजा की जयकारों से
आसमान का कोना-कोना गूंज उठा
उमड़ उठी जनता देखने
राजा का दिव्य रूप
इधर-उधर फैली-बिखरी अनन्त लहरियों-सी
अस्फुट ध्वनियों के बीच
यकायक निर्मल हँसी की कौंध एक निकली कि
राजा डोल उठा, डोल उठे सेनापति, श्रेष्ठिजन
राजा ने आगे बढ़ तलवार खींच ली-
‘मेरे हुक्म के बिना कौन हँसा?
किस मूर्ख की शामत आई?'
जन-समूह से मुँह निकालता
मासूम निडर-सा एक नन्हा बालक
चकित-विभ्रमित आगे बढ़ आया
विस्मय से राजा को देखा-
हँसा-हा हा हा
देखो देखो-राजा नंगा
हा हा हा-राजा नंगा
हँसते-हँसते चीख पड़ा वह-राजा नंगा है
दूर-दूर तक फैल गयी ध्वनियाँ
राजा नंगा है