अभिनव इमरोज़ आवरण पृष्ठ 4
कहो किसको लिखूँ !
दर्द की पाती कहो
किसको लिखूँ !
उमड़ते बादल दुखों के -
टीस किससे कहूँ ?
मौन की वेदना
समाई मौन में
मौन की तड़पती ब्यथा
किससे कहूँ ?
हर राह जीवन की
नुकीले पत्थरों से पटी
रक्त से लथपथ
शिराएँ हो रहीं ,
चाँद के घर से
निकल कर चाँदनी
थक सिसक कर सो गई
विश्वास के नाते
दिलों में काँच से
चुभने लगे
पत्थरों से दोस्ती
जिन्होंने भी करी
दिल की ख्वाहिशें
दिल में ले के रो रहे
उम्र गुजरती जा रही-
शिकवों भरी यह जिन्दगी
दर्द का हर जाम पी कर जी रही
आततायियों के वनों में
भटकती जिन्दगी को
चाह इक क्षण की अहो !
इतनी सी रही -
खुशनुमा अहसास का दरिया बहे
उसके शीतल श्रोत में
मन जरा सा डूब ले
पत्र को उसका पता मिल जायगा,
हर पल - छिन को
सुकून मिल जाएगा
पुष्पा मेहरा़, दिल्ली, मो. 9873443661
खामोशी
खामोशी ने रोक दिया शब्द को
शब्द
स्तब्ध, रुका रहा स्तंभ सा
बना रहता शब्द, यदि शब्द तो
बन गया होता
काव्य, दर्शन
साहित्य व संगीत
या फिर
त्रास, रुदन वेदना संताप
मगर
खामोशी ने तो
खामोशी में ही
सुन लिया था
उसका वह
झंकृत अनंत नृत्य नाद, और
देख लिया था, उसका
संसार भव्य और विस्तार
उमा त्रिलोक, मोहाली, मो. 9811156310