पुरुष और नारी
सुदर्शन प्रियदर्शिनी
ओहया, यू.एस.ए. (M. 014405390873)
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तुम्हारे और मेरे बीच...
जो युगों का...
संघर्ष फैला हुआ है...
उस से...
हम दो किनारों की तरह...
कभी मिल नहीं सकते...
शारीरिक बिन्दुओं पर
मिलना तो हर युग में होता रहा...
सच बात तो यही है...
कि वही हमारी दूरी का कारण रहा...
जिस सामंतशाही को...
तुम ईसा पूर्व लेकर चले थे...
आज भी चल रहे हो...
मुझे... तो ध्यान आता है...
कि ईसा भी सूली पर
नहीं चढ़े थे... वह तो तुम ने
नाम बदल दिया होगा...
सूली पर चढ़ने वाली भी
मैं ही थी... जिसे एक बार...
सूली पर चढ़ा कर
तुम्हें चैन नहीं मिला...
उसके बाद भी…
जिसका मनु- युग से आज - तलक
अहल्या, सीता, मन्दोदरी के
नाम - बदल-बदल कर...
न जाने किन - किन को
सूली पर टाँगते रहे हो...
आज भी टाँग रहे हो...
मैंने हर तरह का...
हर युग में विद्रोह
कर...के...देख...लिया
पर तुम ने मेरे विद्रोह में भी
नई राह ढूंढ़ निकाली है...
और खुली राहों पर
चौराहों पर... मुझे अर्द्धनग्न कर
विज्ञापनों की सूली पर चढ़ाते-चढ़ाते
थकते नहीं हो...