देवों का क़िला

 


बहत दिन पहले एक बादशाह बड़ी शान से हकूमत करता था। न कोई दुःख था, न परेशानी जिसकी उसे फ़िक्र होती। मगर अचानक एक दिन बादशाह की आँखों की रोशनी ग़ायब हो गयी। जितना हो सकता था इलाज किया गया पर कोई लाभ नहीं हुआ। आख़िर हकीम, जो सब-कुछ करके हार गये थे, बोले, “अब बादशाह की आँखों में ऐसे देश की मिट्टी रोशनी ला सकती है जहाँ पर बादशाह ने कभी पैर न रखा हो।"


लड़कों ने जब यह सुना तो सब साथ बैठे और सलाह-मशविरा करने लगे। बड़ा लड़का बादशाह के समीप गया और बोला, “बाबा मुझे इजाज़त दो ताकि मैं उस अनजान शहर की मिट्टी ले आऊँ।" बादशाह दुःखी होकर बोला, “मेरा मरना अब क़रीब है। मरने से पहले तुम सबको एक साथ मैं अपने आस-पास देखना चाहता हूँ। इसलिए तुम्हारा जाना ठीक नहीं है।"


“आप कैसी बातें करते हैं, मैं गया और आया। आपकी आँखों में रोशनी ज़रूर आयेगी।"


लड़का यह कहकर, सामान लेकर, सफ़र पर चल पड़ा। शहर-से-शहर और गाँव-से-गाँव फिरता रहा। आख़िर ऐसी जगह पहुँच गया जहाँ उसने सोचा कि यहाँ की मिट्टी पिता की देखी हुई नहीं होगी। वहाँ से मिट्टी लेकर और उस जगह का नाम लिखकर वह लौट आया। राजा उसे देखकर बोला, “क्यों बेटे जो मिट्टी लाये हो, वह किस देश की है?" जैसे ही बेटे ने उस देश का नाम लिया, बादशाह बोला, “मैं जब तीस साल का था तब वहाँ पर गया था।” यह सुनकर लड़का उदास हो गया। दूसरी बार बादशाह का दूसरा बेटा बादशाह के पास आया, “मुझे भी इजाज़त दें ताकि मैं भी अनजान देश जो आपका देखा हुआ न हो, उसकी मिट्टी ले आऊँ।”


“मेरे ज़िगर के टुकड़े, जब बड़ा भाई वह काम न कर सका तो तुम कैसे कर लोगे?” फिर बादशाह आगे बोला, “अभी तो जान बाक़ी है, कहीं तुम्हारी जुदाई में न देनी पड़े?"


लड़का बोला, “ऐसा मत सोचिये, मैं गया और वापस आया। साथ में मिट्टी लेकर आऊँगा।' बादशाह ने इजाज़त दे दी। जवान ने खाना-पीना बाँधा और सफ़र पर निकल पड़ा। इधर-से-उधर, इस शहर से उस शहर घूमता रहा, आख़िर एक जगह की मिट्टी उठाकर बोला, “इसको तो मेरे दादा ने भी नहीं देखा होगा?” मिट्टी ले वहाँ का नाम लिखकर वह तीन वर्ष के बाद सफ़र से लौटा। इधर बादशाह को ग़म के मारे टी.बी. होनेवाली थी। वह हरदम यही कहता, “काश! मैं उसको न भेजता तो अच्छा रहता।" तभी ख़ुशख़बरी मिली कि लड़का आ गया। लड़का सीधा बादशाह के पास मिट्टी लेकर पहुंचा और बोला, “बाबा, मैं वह मिट्टी ले आया हूँ जो आपको ठीक कर देगी।” बादशाह ने पूछा, “जहाँ से तुम मिट्टी ले आये हो वह जगह कौनसी है?" लड़के ने जैसे ही जगह का नाम लिया, बादशाह बोला, “मैं वहाँ पर जब पचास साल का था तो गया था।" लड़का बोला, “आप ग़लती कर रहे हैं।' बादशाह बोला, “नहीं, ऐसी बात नहीं है?" लड़का उदास हो गया। दिन गुज़रते गये, यहाँ तक कि सबसे छोटा लड़का बादशाह के समीप पहुँचा और बोला, "बाबा मेरा फर्ज़ है कि मैं उस मिट्टी की खोज में निकलूँ जो आपकी आँखों की दवा है और उसे लेकर आऊँ।” “मेरे बेटे, दोनों भाई जो तुमसे बड़े हैं, नहीं ला सके।" लड़के ने खूब ज़िद की। आख़िर बादशाह मान गया, “खैर, जब तुम तय ही कर चुके हो तो जाओ।"


लड़के ने सामान बाँधा और घोड़े पर सवार होकर चल पड़ा। एक शहर में पहुँचकर देखा कि वह रोशनी का शहर है। रोशनियों की लपटें निकल रही हैं जिससे सारा शहर जगमगा रहा है। कहाँ से रोशनी आ रही है, लड़का ताज्जुब में खड़ा सोच रहा था। यह देखकर उसका घोड़ा बोला, “ए शाहज़ादे, यहाँ एक तोता आनेवाला है। इस शहर का हर आदमी उसके लिए एक महल बनाना चाहता है। तोता सबसे ऊँचे बने हुए महल पर बैठेगा और गाना गायेगा और फिर यहाँ से चला जायगा।" लड़के ने पूछा, “क्या हम लोग महल बना सकते हैं?" घोड़ा बोला, “अभी तोते के आने में तीस दिन बाक़ी हैं और हमारे पास वक़्त है कि ईंटें लाकर एक महल व क़िला बना सकते हैं।" शाहज़ादा और घोड़े ने मिलकर एक महल बनाया। ऐसा कुछ भी नहीं छोड़ा कि तोता वहाँ न आये, बल्कि सुन्दर बनाने में भी जी-जान से लगे रहे। तीसवें दिन एक बड़ा महल बनकर तोते के लिए तैयार हो गया। घोड़ा बोला, “राजकुमार, ज़रूरी है कि कमन्द बनायी जाय जिससे तुम ऊपर पहँचकर किसी कोने में छुप सको। जब तोता आये और जैसे ही वह मीठा गाना शुरू करे, तुम ऊपर जाल खींच लेना। तोता कैद हो जायगा। इधर-उधर से आवाजें आयेंगी, ‘पकड़ो-पकड़ो' परन्तु तुम फ़िक्र मत करना, न मुड़कर ही देखना। हम लोग यहाँ से फिर दूसरी जगह चलेंगे।"


शाहज़ादे ने वही किया जैसा कि घोड़े ने कहा था। छत पर चढ़कर कोने में छुप गया। तोता आया, जैसे ही तोते ने गाने के लिए मुँह खोला तो उसकी मीठी आवाज़ से शाहज़ादा मस्त होने ही वाला था कि होश में आ गया और जाल खींचकर तोते को कैद कर लिया। इधर-उधर से देवों की आवाजें आने लगीं, ‘पकड़ो-पकड़ो', मगर शाहज़ादे ने पलटकर पीछे न देखा, बल्कि दौड़कर घोड़े पर बैठा और देवों के शहर से बाहर निकल गया। शाहज़ादा रास्ते में बोला, “यह कितना खूबसूरत तोता है?" घोड़ा बोला, “इसके लिए एक पिंजड़ा लाना है ताकि यह उसमें रहे और फिर यह देखना कि यह दिन-भर में तीन बार पिंजड़े में बन्द गाना गायेगा।” “तुम बताओ, पिंजड़ा पाने के लिए अब क्या करना होगा?" शाहज़ादे ने बेचैन होकर पूछा। "पिंजड़ा देवों के महल में है। ये देव तीन महीने सोते हैं, तीन महीने जागते हैं। अभी उनके जागने का समय है। जब हम पहुंचेंगे तो उनके सोने का समय हो जायगा।" घोड़े ने जवाब दिया।


शाहज़ादा घोड़े पर बैठा और देवों के क़िले के पास पहुँच गया। घोड़ा शाहज़ादे से बोला, “हाँ, आज देवों के सोने का पहला दिन है। देवों के सोने के बावजूद तुम अन्दर जाते हुए मन्त्र पढ़ते जाना और पैर रखते जाना और मन्त्र पढ़ते जाना। पहले घर में नहीं, दूसरे में नहीं, जब तीसरे घर में पहुँचोगे तो देखोगे कि एक पेड़ पर पिंजड़ा टॅगा होगा। पिंजड़े को उतारना और लौटना और जितनी भी आवाजें आयें, ‘ले गया, ले गया, तोता भी ले गया, पिंजड़ा भी ले गया' तुम फ़िक्र मत करना, न पीछे मुड़कर देखना।"


शाहज़ादा मन्त्र पढ़ता गया। देव सो रहे थे। पिंजड़ा उठाया और बिना परवाह किये वह बाहर चला आया। घोड़े के पास पहुँचकर तोते को पिंजड़े में डाला। तोते ने एक बार गाना गया। शाहज़ादा जो बहुत खुश था, घोड़े से बोला, “अब कुछ ऐसा करो कि वह पेड़ भी मेरा हो जाय।" घोड़ा बोला, “अब ज़्यादा लालच मत करो। बाप की फ़िक्र करो, जिससे दूर हो गये हो।" शाहज़ादा बोला, “मैं तो उस तोते का दीवाना हो गया हूँ। देखो, कितना सुन्दर है।" घोड़ा बोला, “फिर पेड़ के लिए भी वैसा ही करो, जैसा पिंजड़े के लिए किया है।"


शाहज़ादा ख़ुश होकर फिर क़िले की तरफ गया और अन्दर पहुँचकर उसने हर सोते हुए देव को सलाम किया और पेड़ उखाड़ने लगा। बहुत ताक़त भी लगायी तो भी पेड़ अपनी जगह से न हिला। शाहज़ादा बोला, “अब मैं क्या करूँ?” फिर उसे ख्याल आया कि उसे बोलना तो एकदम नहीं था। यह याद करके वह चुपचाप मन्त्र पढ़ते हुए पेड़ उखाड़ने लगा। पेड़ उखड़ गया और वह उसे लेकर चला। चारों तरफ से आवाजें आयीं, “पकड़ो, पकड़ो, देखो पहले तोता ले गया, फिर पिंजड़ा, अब पेड़ भी लिये जा रहा है।" मगर शाहज़ादे ने मुड़कर नहीं देखा और चलता ही गया।


घोड़ा शाहज़ादे को देखकर बोला, “तुम ही हो जो बादशाह की आँखों की दवा ला सकते हो।" लड़के ने पेड़ को ज़मीन पर लगाया, उस पर पिंजड़ा टाँगा और तोते ने फिर गाना गाया। सुनकर शाहज़ादा बोला, “सुनो, कितना अच्छा गा रहा है।" "अरे, तुम अगर इसकी मालकिन को देखो तो वह इससे भी अच्छा गाती है।" लड़का बोला, "फिर उसे भी ले आना चाहिए।" घोड़ा बोला, "इसकी मालकिन एक शाहज़ादी है। शायद वह राजा की आँखों की दवा भी ला देगी।" शाहज़ादा बेचैन होकर बोला, “जो भी कहोगे मैं मानूंगा।" फिर बोला, “शाहज़ादी कहाँ है?" घोड़ा बोला, "उन्हीं देवों के क़िले में है।” दोनों फिर लौटे और क़िले पर पहुंचे। घोड़ा बोला, “न पहले घर में, न दूसरे घर में, तीसरे घर में शाहज़ादी है, मगर उस पर एक से ज़्यादा बार निगाह न डालना।" लड़का जब तीसरे घर में पहुँचा तो देखा कि वह इतनी सुन्दर है कि शाहज़ादा न सिर्फ एक दिल से बल्कि सौ दिलों से उस पर न्यौछावर हो गया। वह जानता था, न बोलना है, न दुबारा निगाह डालनी है, इसलिए लड़की को उठाकर सीधा बाहर की ओर रुख किया। तभी आवाजें हुईं, “पकड़ो, पकड़ो, वही तोता ले गया, पिंजड़ा ले गया, अब शाहज़ादी लिये जा रहा है।" शाहज़ादे ने मुड़कर भी नहीं देखा। घोड़े पर बैठकर वह ऐसी जगह पहुँचा जहाँ आराम कर सके। लड़की को लिटाकर वह उसे देखने लगा। लड़की अब भी सो रही थी और शाहज़ादा जो उस पर फिदा हो चुका था, चाहता था कि वह होश में आ जाय। उसने घोड़े से कहा, “शाहज़ादी बेहोश है क्या?" घोड़ा बोला, “नहीं, बिस्तर चाहती है। जब तक बिस्तर नहीं आयेगा, उसे आराम नहीं मिलेगा।” “वह कहाँ है?" शाहज़ादे ने पूछा। "वहीं देवों के किले में है," घोड़े ने कहा। फिर बोला, “एक गुलदान है जो शाहज़ादी के बिस्तर के सिरहाने है। बस उसी को लेकर आ जाओ। उसी गुलदान के अन्दर बादशाह की आँखों की दवा है।" फिर बोला, “इस बार देव ज़्यादा शोर करेंगे पर तुम परवाह न करना, बल्कि वह तुमको पकड़ने की कोशिश भी करेंगे। तुम सब बातें याद रखना और पीछे मुड़कर मत देखना। बस, तभी तुम क़ामयाब हो सकते हो। परेशान न होओ।" लड़का घोड़े पर बैठकर देवों के क़िले की तरफ गया। एक घर, दूसरे घर, तीसरे घर तक पहुँचकर उसने गुलदान से मिट्टी निकाली, बिस्तर को लपेटकर बगल में दबाया और लौट पड़ा। देवों की आवाजें पहले की तरह आ रही थीं। इस बार शाहज़ादे को लगा कि देव उसका पीछा कर रहे हैं परन्तु उसने मुड़कर नहीं देखा और घोड़े के समीप पहुँचकर क़िले से दूर हो गया।


शाहज़ादे ने पहुंचते ही लड़की की चादर पर लिटा दिया और उसका दिल चाहने लगा कि इतनी सुन्दर शाहज़ादी के साथ तो फ़ौरन ही उसे शादी कर लेनी चाहिए, पर एकदम से उसे बाप की आँखों का ध्यान आया। वे फ़ौरन चल पड़े और अपने शहर लौट आये। बादशाह मरने ही वाला था और सोच रहा था कि अब कभी भी लड़के की आवाज़ दुबारा नहीं सुन सकेगा। तभी लड़के के आने की ख़बर बादशाह के पास पहुँची तो जैसे उसे यक़ीन ही न आया, जब तक कि लड़का उसके पास न पहुँच गया। "वाह मेरे बेटे, इतने दिन बाद आये! न पत्र लिखा, न किसी से ख़बर भिजवायी। बताओ कहाँ रहे?" लड़का बोला, “पिताजी, यह क़िस्सा इतना लम्बा है कि मैं अभी नहीं सुना पाऊँगा।” बादशाह बोला, "मेरी आँखों के लिए क्या लाये हो?" लड़का बोला, “मैं एक अनजान शहर से मिट्टी लाया हूँ, मगर इतना परेशान था कि उस शहर का नाम लिखना भूल गया।” “यही क्या कम है मेरे लिये कि तुम लौट आये हो।" लड़के की लायी हुई मिट्टी बादशाह की आँखों में सुरमे की तरह लगायी गयी। राजा की आँखें ठीक हो गयीं। दूसरे दिन पूरे शहर को शीशमहल बना दिय गया और सात दिन, सात रात तक उनके विवाह की ख़ुशी में दावत होती रही।


अनुवाद: नासिरा शर्मा, नई दिल्ली, मो. 9811119489


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