ईमानदार कलाकार
मैंने सुना है कि एक आदमी मुंह अंधेरे घर से निकला और गर्माबे की ओर चल पड़ा। रास्ते में उसकी मुलाकात अपने दोस्त से हो गई। वह दोस्त को गर्माबे चलने की दावत देता हुआ बोला, “क्या ख़्याल है नहाने के बारे में? चलो मेरे साथ गर्माबे चलो।"
“नहीं भाई!! मुझे जरूरी काम है, बस गमाबे के दरवाजे तक तुम्हारा साथ दे सकता हूं।” दोनों चल पड़े। दोराहे पर पहुंच कर दोस्त बिना कुछ कहे मुड़ गया और अपने रास्ते चला गया। उसी समय एक जेबकतरा जो पीछे-पीछे आ रहा था ताकि गर्माबे में लोगों की जेब पर हाथ साफ करे चूंकि अभी अंधेरा था। इस कारण उस आदमी ने जेबकतरे को अपना दोस्त समझ लिया। और पहचान न पाया कि यह दोस्त नहीं बल्कि कोई अजनबी है। अपनी आस्तीन से एक दस्तारचा निकाला और बोला, “लो दोस्त, इस अमानत को अपने पास रखो, मैं नहा कर आता हूं फिर ले लूंगा।"
उस जेबकतरे ने रुपये की पोटली को लिया और वहीं ठहर गया। वह आदमी जब नहाकर गर्माबे से बाहर निकला तो सूरज उगने वाला था और चारों तरफ रोशनी फैल गई थी। उसने कपड़े पहने और जाने को तैयार हो गया। उसको जाता देख कर जेबकतरे ने उसे पुकारा और कहा, “लो अपनी यह अमानत रखो, फिर जाना, इसके मारे मैं आज कोई कमाई नहीं कर पाया।" आदमी बोला, “तुम कौन हो? यह किस की अमानत है?"
जेबकतरा बोला, “मैं जेबकतरा हूं। तुमने गर्माबे जाते हुए पोटली मुझे रखने को दी थी ताकि जब तुम नहा कर लौटोगे तो मुझसे ले लोगे।"
आदमी बोला, “बहुत खूब । अगर तुम जेबकतरे हो तो फिर यह रुपये लौटा क्यों रहे हो?"
"अगर इस पोटली को मैं अपने हाथों की सफाई की कला से उड़ाता तो हरगिज़ वापस न करता। चाहे इसमें हज़ार दिनारें ही क्यों न होतीं।” लेकिन तुमने 'धरोहर' समझ कर मुझे रखने को दिया था और इस अमानत में ख्यानत करना मर्दानगी नहीं है। (क़ाबूसनामा)
अनुवाद: नासिरा शर्मा, नई दिल्ली, मो. 9811119489