कबाड़ से जुगाड़

  राकेश गौड़, नई दिल्ली, मो. 9818974184


पीठ पर बोरी, हाथ में छड़ी से बंधा चुम्बक
कूड़े के ढेर को, आशा से निहारता एक बालक

तभी उसकी आँखों में, आयी एक चमक
धातु के एक टुकड़े पर, जैसे ही गयी नज़र

छड़ी से बंधा चुम्बक, जैसे ही छुआया उसने धातु से
चिपक गया वो चुम्बक, झटके से धातु के गुच्छे से

बालक के हाथ में आयी तेज़ी , छड़ी घुमाई उसने जब भी
चिपक गए धातु के टुकड़े, भरती गयी खाली बोरी भी

जब बच्चे का यह प्रयोग हुआ पूरा, नन्हे वैज्ञानिक ने लगाया दूसरा फार्मूला
जैसे ही उसकी निगाह गयी टूटे कम्प्यूटर पर, दिमाग का खुला ताला

बालक की आँखों में आ गयी चमक, टटोलने लगा वो कम्प्यूटर के पुर्जे
कुशल कंप्यूटर इंजीनियर की तरह, छांटने लगा वो काम के पुर्जे

काम के पुर्जे रखे बोरी में, फेंके फालतू टुकड़े वापस कूड़े के ढ़ेर में
इसे बेच कर आमदनी की कल्पना होने लगी, बालक के मन में

कौतुहलवश पूछ बैठा, "बेटा, कूड़े से बदबू नहीं है क्या आती"
वो बोला, "बाबू, कूड़े की बदबू से ज्यादा, पेट की भूख है सताती"

"अब तक कूड़े में हाथ डाल कर बीनता था कूड़ा
" वो तो भला हो बाबा का जिन्होंने, ये औज़ार बनाया"

ये कहकर उसने अपना औज़ार लहराया, और
कबाड़ से जुगाड़ ढूंढने वाले बालक को,

बाल मजदूर कहूँ या बाल वैज्ञानिक.....
यह सोचते हुए मैं घर लौट आया।


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