मौलाना कमालउद्दीन हुसैन वायज़ काशफी

मौलाना कमालउद्दीन हुसैन वायज़ काशफी : अनवारे सुहेली फारसी गद्य साहित्य की एक महत्वपूर्ण पुस्तक है जिसको मौलाना कमालउद्दीन हुसैन वायज़ काशफी ने अमीर शेख अहमद सुहेली 'सुल्तान हुसेन' के दरबार के अमीर के नाम से लिखी थी। यह किताब कलीले व दमने का ही रूपांतर है जिसके सारे शेर और उदाहरण, अरबी में थे लेकिन अनवारे सुहेली के लेखक ने यह कोशिश की कि वह सारे शेर उदाहरण, अरबी के स्थान पर सरल, प्रवाहपूर्ण फारसी में कर दिये ताकि उनको समझना सरल रहे।



अनवारे सुहेली नामक फारसी ग्रन्थ की एक कथा


बाज़ की नज़र


बहुत दिनों पहले एक राजा था जिसको शिकार का बहुत शौक था। राजकाज से फुर्सत पाते ही वह मित्रों व सिपाहियों के साथ शिकार को निकल जाता था। जहाँ वह कमन्द, तलवार व तीर-कमान साथ रखना आवश्यक समझता, वहीं अपने बाज़ को साथ ले जाना कभी न भूलता था। बाज़ सदा उसके कंधे पर बैठा रहता। राजा जैसे ही आकाश में उड़ने वाले पक्षियों को तीर मारता, बाज़ पलक झपकते पक्षी को धरती पर गिरने से पहले ही राजा के समीप चोंच में पकड़ ले आता। इस बात में स्वयं राजा ने उसे दक्ष किया था।


सदा की भाँति राजा शिकार को गए। एकाएक उनकी दृष्टि भागते हुए सुंदर हिरन पर पड़ी। वह हिरन राजा के मन को भा गया। उन्होंने अपना घोड़ा उसके पीछे डाल दिया। इस कोशिश में राजा अपनी मित्र-मंडली से बिछुड़ गए। हिरन जाने कहाँ झाड़ियों की आड़ लेता, छुपता-छुपाता आँखों से ओझल हो गया। राजा थकान व प्यास से व्याकुल लौटने लगे। चारों ओर दृष्टि डालने पर भी उन्हें पानी का नामोनिशान न दिखा। चलते-चलते वह एक पहाड़ के समीप से गुजरे तो देखा ऊपर कहीं से पानी आ रहा है और नीचे आते-आते वह बूंद-बूंद टपक रहा है। राजा ने तरकश में रखे प्याले को निकाल पहाड़ की उस चट्टान के नीचे रख दिया ताकि बूंद-बूंद पानी पीने के क़ाबिल हो जाए।


प्याला भर गया। जैसे ही राजा ने उस शीतल जल से प्यास बुझानी चाही बाज़ ने डैना मारकर प्याला गिरा दिया। पानी धरती पर फैल गया। यह देख राजा दुखी हो उठे । पर कुछ न बोले प्याले के भरने का फिर से बेचैनी से इन्तज़ार करने लगे।


प्याला भर गया। राजा ने लपककर प्याले को होठों से लगाया ही था कि बाज़ ने फिर वही हरकत की। प्यास से व्याकुल राजा का खून खौल उठा। पगलों की भाँति उन्होंने बाज़ को धरती पर पटका और उसके दो टुकड़े कर दिये। उसी समय एक सिपाही राजा को ढूँढता हुआ वहाँ पहुँच गया। बाज़ को मरा और प्याले को धरती पर औंधा पड़ा देख उसने शीघ्रता से अपनी छागल से राजा को पानी देना चाहा पर राजा ने उसे मना कर दिया। राजा को जिद्द चढ़ गई कि 'पीऊंगा तो उसी टपकते पानी को।' इस कारण उन्होंने सिपाही को आज्ञा दी, "मैं बहुत देर प्रतीक्षा नहीं कर सकता, इसलिए तुम पहाड़ से पानी भरकर लाओ।" राजा की आज्ञा सुनते ही सिपाही शीघ्र ही उस सोते के समीप पहुँच गया जहाँ से पानी नीचे बूँद के रूप में गिर रहा था पर सिपाही उस सोते को देख सकते में रह गया। सोते की पतली-सी धार धरती से निकल रही थी और एक बहुत बड़ा अज़दहा (अजगर से चौगुना बड़ा साँप) उसी सोते के ऊपर मुँह खोले मरा पड़ा था। सोते का पानी उसके मुख के अन्दर से होकर नीचे गिर रहा था।


सिपाही परेशान नीचे उतरा। सारा हाल सुनाकर उसने प्याले को साफ कर, छागल से पानी निकाल कर राजा को पीने को दिया। राजा ने प्याले को मुख से लगाया और उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बह निकली। राजा को रोते देख सिपाही ने प्रश्न किया। राजा ने पूरी बात कह सुनाई। सुनकर सिपाही बोला, : “राजन, बाज़ ने आपकी जान बचाई इसलिए उसको मरना पड़ा, इसके बिना कोई चारा भी न था, आपको स्वयं पता होता तो ऐसा आप क्यों करते?"


“हाँ, पर मुझे नादानी व जल्दबाजी पर अफसोस है पर अफसोस व दुख से अब क्या फ़ायदा?  मैं जब तक जीवित रहूँगा यह दुख नहीं भूल पाऊँगा।"


अनुवाद: नासिरा शर्मा, नई दिल्ली, मो. 9811119489


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