प्रस्तावना


अनगिनत पीढ़ियों से बहती हुई सरिता की तरह, लोक-कथाएँ, उस जन-समाज की, जो कि एक क्षेत्र-विशेष में फला और फूला है, आधारभूत विचारधाराओं, सभ्यता तथा संस्कृति की प्रतीक हैं। खुरासान की प्रस्तुत लोक-कथाएँ उस क्षेत्र का, जो ईरान की सभ्यता और संस्कृति में बेजोड़ रहा है, एक दर्पण हैं। इसमें पाठक उस प्राचीन भव्य जन-समाज की एक झलक देख सकते हैं। खुरासान एक चौराहे की तरह है जहाँ ईरान की सभ्यता तथा संस्कृति संगठित हुई और जहाँ से अन्य क्षेत्रों में फैली। 'तूस', 'निशापुर' और 'मशहद' के केन्द्र सांस्कृतिक वैभव के प्रतीक रहे और जहाँ पर 'उमर खय्याम' और 'फिरदौसी'-जैसे चिराग़ अब भी जीवित हैं। खुरासान की ये लोक-कथाएँ, 'निशापुर' और 'दमगान' से निकले हुए फीरोजों की तरह, भव्य तथा सारगर्भित हैं।


ईरान और भारत की सांस्कृतिक घनिष्ठता और साहित्यिक आदान-प्रदान का क्रम अब भी जीवित है और उसका एक नमूना ये खुरासान की लोक-कथाएँ हैं जिनका फ़ारसी से हिन्दी में अनुवाद प्रस्तुत पुस्तक में किया गया है। यह केवल अनुवाद मात्र ही नहीं है, मेरे विचार से ये नासिरा की मौलिक रचनाएँ ही हैं, क्योंकि ये लोक-कथाएँ खुरासान की बोली में हैं जिसको समझना एक आम फ़ारसी जानने वाले के लिए कठिन है और नासिरा ने, जो स्वयं नवोदित सफल कहानीकार है, सरल हिन्दी भाषा में लिखकर इन कहानियों में एक नयी जान डाल दी है।


मैं स्वयं फ़ारसी भाषा और साहित्य का विद्यार्थी हूँ और जानता हूँ कि इस प्रकार का कोई काम अभी नहीं हुआ है और इस दिशा में यह प्रथम प्रकाशन है। नासिरा की, जो स्वयं मौलिक रचनाकार हैं, सूक्ष्म दृष्टि खुरासान की सभ्यता के उस स्रोत पर पड़ी, जो न सिर्फ़ किताबों में, बल्कि लोगों के सीनों में परम्परागत पैतृक धन की तरह मौजूद है।


आशा है कि पाठक इन कथाओं को पढ़कर खुरासान के बारे में जो कि ईरान की सभ्यता का स्तम्भ रहा है, जानकर ईरान तथा भारत की मैत्री तथा पारस्परिक सांस्कृतिक आधारों का अनुमान कर पायेंगे।


प्रोफेसर तथा अध्यक्ष, 


सैय्यद अमीर आबिदी, 


फ़ारसी भाषा तथा साहित्य विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली


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