साहित्य नंदिनी आवरण पृष्ठ 4 (मैं फिर मिलूँगी)


तनु, असलम, गज़ाला और कबीर प्रतीक है उस प्रेम की आत्मा के जो अजर, अमर है। केवल एक शाश्वत सत्य है इस सृष्टि का। जिस किसी ने इस मर्म को समझा वो मानव नहीं मानव श्री हो गया।


प्रेम कमज़ोरी नहीं ताकत है, प्रेम पाना नहीं खोना है। प्रेम विलास नहीं कुर्बानी है। प्रेम के जादू का घेरा इतना मज़बूत होता है कि चाहे आप कितने भी बाहुबली हों इस घेरे से आज़ाद नहीं हो सकते। तनु और असलम विपरीत परिस्थितियों में भी इसके बहाव को नहीं रोक पाए।


कबीर बेटा नहीं जीवन जीने का मकसद बना, पहचान जब मोहब्बत के रंग पहनने लग जाए तो आखिर पलती-पलती जिम्मेदारी बन जाती है। जीने के अंदाज बदल जाते हैं, मोहब्बत तो वह ताकत है जो ता उम्र साँसों की साँस बन कर खुदा के वुजूद का अहसासे एहतराम करवाती है और अपने खुद के वुजूद को एक मुकम्मल मुज्जसमा बना कर मकसद को परबान चढ़ाती है।


तनु पूजा है तो असलम नमाज़, गज़ाला एक गहरी सोच, और कबीर उस जज्बाए मोहब्बत का निशाने मील है, जो मज़िल नहीं ढूंढता- वह ढूंढता है एक मन जहाँ वह एक दिया बन कर चेतना के अंतरिक्ष को उदीप्त कर सके....।


‘‘मैं फिर मिलूँगी’’, इक अनोखी दास्ताने-मोहब्बत है जो हर सदी में अपने नये-नये रंग रूपों में सराही और दोहरायी जायेगी। 


  परिचय


डाॅ. उमा त्रिलोक शिक्षा प्रबन्धन में डाॅक्टरेट हैं। विशिष्ट विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र व शिक्षा प्रबन्धन की प्रवक्ता रह चुकी हैं।


एक लम्बे अर्से तक आप एक पोस्ट ग्रेजुएट यूनिवर्सिटी काॅलेज के प्राचार्य पद पर कार्यरत रही हैं।


आप हिन्दी व अग्रेज़ी दोनों भाषाओं में गद्य व पद्य लिखती हैं। आपकी अब तक कुल 18 पुस्तकें छप चुकी है। जिनमें कुछ 9 भारतीय भाषाओं में व 2 विदेशी भाषा में अनुदित हैं।


आप ने कई राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनारों व गोष्ठियों में अपने कई शोध पत्र प्रस्तुत किये हैं जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत सराहे गए हैं।


‘‘उमा त्रिलोक का लेखन प्रेम रस से लबालव है और इश्के़मिज़ाज़ी और इश्क़े हक़ीक़ी का अनूठा संगम है। भाषा की सरलता, उत्तम संप्रेषणियता, हृदयग्राही संवाद, तर्कपूर्ण विश्लेषण, पात्रों की सादगी और मासूमियत उनके लेखन के मूल तत्व हैं। पाठक-पात्रों का मुरीद बनकर संवेदनाओं की लहरों में बहता चला जाता है।’’ -अभिनव इमरोज़


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