सात बहनें


किसी ज़माने में एक बूढ़ा व बुढ़िया साथ-साथ रहते थे। उनके सात लड़कियाँ थीं। बूढ़ा रोज़ सुबह बियाबान की तरफ जाता और फाख़ता का शिकार करके घर लौट आता। वे फाख़ता पकाते और खाते और यही उनका खाना था। एक दिन उस बुढ़िया ने सोचा और अपने से कहा, “अगर मेरा आदमी इन सातों लड़कियों को ले जाकर जंगल में छोड़ आये तो कितना अच्छा हो। हमारी ज़िन्दगी कितने आराम से गुज़रने लगे, जो सात फाख़्ता उनके हिस्से को बचेंगी, उनको बेचकर हम रुपया जमा करेंगे।" यह ख़्याल कई दिनों तक उस बुढ़िया के दिमाग़ में चक्कर लगाता रहा, यहाँ तक कि एक दिन उसने बूढ़े से कह ही दिया, “ए आदमी, तुम कब तक इन लड़कियों को खाना देते रहोगे। इनको बियाबान में ले जाकर आज़ाद कर दो। जब यह नहीं रहेंगी तो इनके हिस्से की सात फाख़्ताएँ बचेंगी, जिन्हें हम खाने के बजाय बाज़ार में बेचकर अच्छे पैसे पैदा कर सकते हैं।" यह सुनकर बूढ़ा बोला, “अरे, कैसी बात कर रही हो? मैं कैसे इन्हें बियाबान में जाकर छोड़ आऊँ। यह तो वह फल हैं जिन्हें हम ख़ुद इस दुनिया में लाये हैं। यह काम ठीक नहीं है।" मगर बुढ़िया ने एक न सुनी। वह रात-दिन यही एक बात बूढ़े को समझाती रहती जिसका नतीजा यह हुआ कि आख़िर बूढ़ा भी मान गया। बुढ़िया बोली, “मैं उनके लिए दो बोरे रोटी पका देती हूँ और तुम उन्हें इस किले से इतनी दूर ले जाना कि वे कभी न लौट सकें। उन्हें वहाँ जाकर सुला देना और जागने से पहले ही भाग आना ताकि वे कुछ समझ न सकें।" सुबह जब बूढ़ा सोकर उठा तो उसने लड़कियों को भी जगा दिया और कहा, “सुनो बेटियो, मैं चाहता हूँ कि यहाँ से सात मील दूर नाशपाती का पेड़ है, वहाँ जाऊँ। क्या तुम भी मेरे साथ चलोगी?'


रोटी के बोरे लादकर वे चलने लगीं। चलते-चलते आख़िर नाशपाती के पेड़ के पास पहुँच गयी। बूढ़े ने देखा, लड़कियाँ थक गयी हैं, तो बोला, “तुम सभी सो जाओ। मैं तब तक इस पेड़ की डालियों को हिलाकर नाशपातियाँ गिराता हूँ।” लड़कियाँ सो गयीं। बूढ़ा बजाय इसके कि पेड़ पर ठहरकर डालियों को हिलाता, उसने डाल पर मशक टाँग दी और नीचे उतर आया। हवा मशक से टकराती और मशक डालियों से, इस तरह आपस की टकराहट से डालियों से आवाज़ निकलने लगी। बूढ़े का दिल नहीं चाह रहा था कि लड़कियों से अलग हो, मगर फिर किसी तरह वह क़िले में पहुँचा और बुढ़िया से बताया कि वह क्या कर आया है।


बूढ़ा दूसरे दिन बियाबान में गया और शाम तक फिरने के बाद भी वह दो फाख़्ता से ज़्यादा न मार सका। यह देखकर बुढ़िया दुःखी हुई और बोली, “क्यों, तुमने आज केवल दो फाख़ता ही मारी?” बूढ़ा बोला, “उनकी क़िस्मत की फाख़्ताएँ उनके साथ हैं।"


जैसे ही बूढ़े ने उन सातों बहनों को अकेला छोड़ा, वे सोती हुई जाग पड़ीं। छोटी लड़की ने देखा कि डाल पर सिर्फ मशक लटकी है, बाबा का दूर तक कहीं भी पता नहीं है। वे समझ गयीं कि बाप ने उन्हें छोड़ दिया है। सभी भूखी थीं, बोरे का मुँह खोला ताकि रोटी खा सकें, मगर वहाँ दो टुकड़े रोटी से ज़्यादा कुछ न था। बाक़ी सारा बोरा भेड़ की गन्दगी से भरा हुआ था। दो-तीन दिन उसी दो कौर सूखी रोटियों पर सातों के गुज़र गये। लेकिन चूँकि वे चल रही थीं, इसलिए भूख-प्यास से बेहाल हो रही थीं। बड़ी बहन बोली, “चलो, सब मिलकर रोयें। जिसके आँसू सबसे ज़्यादा नमकीन होंगे, हम उसे मार डालेंगे।" छोटी बहन के आँसू सबसे ज़्यादा नमकीन निकले और सभी उसे मार डालने को तैयार हो गयीं। यह सब देखकर छोटी बहन ने कहा, "मझे ज़िन्दगी से प्यार है, मझे मत मारो।" यह कहकर वह बचाव का साधन सोचने लगी। उसकी निगाह इधर-उधर तेज़ी से घूम रही थी कि तभी उसने देखा कि कुछ दूरी पर एक गड्ढा है। उसे देखकर वह ख़ुश हुई और बड़ी बहन से बोली, “मैं गड्ढे में जा रही हूँ, बाद में निकलने पर मुझे मार डालना।" बड़ी बहन राजी हो गयी।


छोटी बहन ने उस गड्ढे में जाकर इधर-उधर कुछ ढूँढा मगर उसके हाथ कुछ न लगा, जिससे वह अपना बचाव कर सके। थककर ऊपर आना ही चाह रही थी कि उसकी नज़र एक किशमिश के दाने पर पड़ी। किशमिश का दाना उठाकर बाहर लौटने ही वाली थी कि उसे कई दाने और दीख गये। उन्हें भी उठा रही थी कि एक खिड़की दीख गयी। खिड़की खोलकर वह अन्दर गयी तो ताज्जुब से उसकी आँखें फट गयीं। सामने ढेरों बोरे गेहूँ के आटे के और दूसरी खाने की चीज़ों से भरे हुए वहाँ चुने हुए थे। लग रहा था कि जैसे बाज़ार लगा हो। अपने दामन को किशमिश से भरकर वह ऊपर आयी। बहनों ने देखा कि वह बहुत खुश है। बहनों के पास पहुँचकर बोली, "दुःखी न होओ, अब हमारे दिन पलट गये हैं," और यह कहकर उसने अपना आँचल दिखाया। बहनें भूखी थीं, किशमिश पर टूट पड़ीं और खाने के बाद एक-एक करके उस खिड़की में गयीं। जितना भी उनसे हो सकता था, उन्होंने खाया, फिर छोटी बहन, जो सबसे चतुर थी, बोली, “बियाबान के बीचोंबीच इस तरह से सामान का ढेर आख़िर क्यों है? ज़रूर इसके अन्दर कोई भेद है।" रात होते ही सब बहनों ने अपने को गेहूँ व किशमिश के बोरों के पीछे छिपा लिया। जो थोड़ी देर बाद उन्होंने देखा कि भेड़ों के झुण्ड-के-झुण्ड आ रहे हैं। आते ही चले जा रहे हैं, यहाँ तक कि उस तहख़ाने की पूरी ज़मीन भेड़ों से भर गयी। उसके पीछे गड़रिया आया, जो देव था। देव जैसे ही अन्दर घुसा, साँस खींचकर बोला, “बूए आदमज़ाद है, बूए जिन व परीज़ाद है।" वह इधर-उधर फिरने लगा, मगर कोई भी आदमज़ाद उसे नहीं दिखायी दिया तो वह बड़बड़ाने लगा और बोला, “अब खाना खाना चाहिए।" यह कहकर लस्सी से भरे कटोरे में रोटी तोड़ने लगा, फिर खाकर सो गया। दूसरे दिन सुबह देव ने सारी भेड़ें निकालीं और खुद भी उनके पीछे बाहर निकला और खिड़की बन्द कर दी।


सातों बहनें समझ नहीं पायीं कि क्या करें? इस बार भी छोटी बहन बोली, "जैसे भी हो इस देव से छुटकारा पाना चाहिए। रात को जब देव आयेगा तो इस तरह कहेगा, कब तक इस तरह से अकेले ज़िन्दगी गुज़ारूँ, कब तक मेरा सिर इस तरह से गन्दा रहेगा? कोई ऐसा नहीं है जो मेरे बालों को. कपड़ों को साफ़ करे? जैसे ही वह यह कहेगा, मैं सामने चली जाऊँगी और कहूँगी, मैं करूँगी यह सब काम। जब वह कहेगा, आओ करो यह काम, तो मैं उसके कपड़े धोऊँगी और सुखाने के लिए तन्दूर के पास फैलाऊँगी और तन्दूर के अन्दर गिराकर ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाऊँगी कि कपड़े तन्दूर में गिर गये। जब वह उसको उठाने के लिए झुकेगा, मैं उसे तन्दूर के अन्दर धकेल दूंगी।" रात हुई और दोबारा भेड़ों के झुण्ड आने शुरू हो गये। आते गये, आते गये, यहाँ तक कि तहख़ाना भर गया और देव भी अन्दर आया और उदास एक किनारे बैठकर वही सब बोलने लगा, जैसा कि उस लड़की ने अनुमान लगाया था। जैसे ही देव ने अपनी बात ख़त्म की, देव के सामने वह लड़की आयी और बोली, “मैं तुम्हारा हर काम करने के लिए तैयार हैं। तुम्हारे कपड़े धोऊँगी. तम्हारा सिर साफ़ करूंगी।"


यह कहकर वह तेज़-तेज़ चलती हुई देव के पास पहुंची और उसके कपड़े लेकर धोने चली गयी। जब कपड़े धो चुकी तो तन्दूर के किनारे सुखाने के लिए डाल दिये और चीखी, “ऐ तुम्हारे कपड़े तन्दूर में गिर गये।" देव जल्दी से तन्दूर के पास आया और उस पर बैठकर झुका कि अन्दर से कपड़े निकाले, तभी सारी लड़कियों ने मिलकर उसे धक्का दे दिया और देव तन्दूर में जलकर मर गया।


उस रात लड़कियों ने भेड़ काटी और आग पर उसे खूब सेंककर लाल किया और खूब मज़े से पेट भर खायी। सुबह हुई तो छोटी लड़की ने एक लम्बा लबादा पहना और सिर पर नमदे की टोपी लगाकर गड़रिये का भेस बनाया, और सारी भेड़ों को तहख़ाने से बाहर निकालकर उन्हें चराने लग गयी। शाम के वक़्त बहनों ने आग जलायी ताकि खाना पकायें। धुआँ काफ़ी उड़ रहा था और उसी समय शाहज़ादे ने दो फाख़्ता का शिकार किया था और चाहता था कि उसे भूने, तभी उसे दूर से धुआँ उठता दिखायी दिया। वज़ीर से वह बोला, “यह फाख्ता लाल करके ले आओ।" वज़ीर धुएँ की तरफ जाने लगा, जब धुएँ के क़रीब पहुँचा तो देखकर चकरा गया। एक-से-एक सुन्दर, आदमी के होश उड़ा देनेवाली लड़कियाँ उस बियाबान में मौजूद थीं। घोड़े से उतरकर आगे बढ़ा और बोला, “यह दोनों फाख़्ता बादशाह के लड़के ने मारी हैं, मैं चाहता हूँ कि आग पर भून लूँ।" वह लड़कियाँ मान गयीं। उनके कहने से वज़ीर एक किनारे बैठकर उन सबको देखने लगा कि यह यक़ीन करने के क़ाबिल बात भी है या नहीं। यह लड़कियाँ हैं कि परियाँ, एक से बढ़कर एक खूबसूरत। उसने आग पर फाख़्ता रखी, तभी उन्होंने देखा, अँगीठी से तेज़ काला धुआँ निकला। तब वह समझा कि लड़कियों ने दोनों फाख़्ताएँ जलाकर कोयला कर दी हैं, जो खाने के क़ाबिल नहीं रह गयी थीं। वज़ीर यह देखकर ख़ुद से बोला, अब क्या करूँ, और घोड़े पर बैठकर वह जले कबाब-जैसी फाख़्ताएँ शाहज़ादे के पास ले गया। शाहज़ादे ने देखा, काले कोयले-जैसी फाख़्ताएँ वज़ीर ले आया है। वह बोला, “तुम्हें क्या हुआ था जो यह इतनी जल गयी?” वज़ीर बोला, “अगर शाहज़ादे, आप मेरी जगह होते तो यह कभी नहीं पूछते कि यह फाख्ता कैसे काली हो गयी हैं?" शाहज़ादा सुनकर बोला, “चलो सुनाओ क्या हुआ है तुम्हारे साथ?" वज़ीर बोला, “जहाँ धुआँ उठ रहा है, वहाँ कई लड़कियाँ जो आदमियों के होश उड़ानेवाली हैं, इतनी खूबसूरत कि आदमी सब-कुछ भूल जाय। जब में फाख्ता भून रहा था तो मेरे होश-हवाश उनके हुस्न को देखकर ग़ायब थे। इतने में यह जल गयीं।" सुनकर शाहज़ादा बोला, “अजीब बात है, चलो देखू, कौन हैं वे?"


अभी सूरज डूबा नहीं था कि भेड़ों के झुण्ड-के-झुण्ड आने लगे। आते गये, आते गये, बाद में उन्हीं के पीछे-पीछे शाहज़ादा पहुँचा। उसने देखा कि वज़ीर ने झूठ नहीं कहा था। शाहज़ादा बोला, “सुनो, मैं चाहता हूँ कि तुम्हारी बहनों में से किसी एक से शादी करूं।" छोटी लड़की जो सबसे ज़्यादा चतुर और समझदार थी, सिर से नमदे की टोपी उतारकर बोली, “ऐसी जल्दी क्या है, मैं खुद तुमसे शादी करूंगी", और अपने बाल यह कहकर बिखेर दिये। यह देख शाहज़ादा ख़ामोश हो गया और सोचने लगा, “कहीं सपना तो नहीं देख रहा हूँ।" मगर लड़की ने उसे समझाया, वही सच्चाई है जो वह देख रहा है। फिर बहनों की तरफ मुँह करके बोली, “सब लोग शाहज़ादे के महल में चलने के लिए तैयार हो जाओ।”


काफिला शहर की ओर चल पड़ा, यहाँ तक कि महल पहुँच गये। सात दिन, सात रात तक ख़ुशी मनायी गयी। पूरा महल शीशमहल की तरह सजाया गया।


शाहज़ादे ने छोटी लड़की से और बाक़ी लड़कियों ने वज़ीरज़ादे और अमीरज़ादों से शादी कर ली।


ज़्यादा दिन नहीं गुज़रे थे कि बहनें अपनी छोटी बहन की ज़िन्दगी देखकर जलने लगीं। बोली, “अपनी छोटी बहन होकर कैसे हमारे ऊपर हुक्म चलाती है। ऐसा कुछ करना चाहिए ताकि यह शाहज़ादे की नज़रों में गिर जाये।"


कुछ दिन बाद छोटी लड़की गर्भवती हुई। दिन बहुत क़रीब थे, इस कारण एक-एक दिन गिनती हुई वह लेटी रहती थी। एक दिन सब बहनें आपस में बोली, “वह नहीं जानती है कि कैसे बच्चे को जन्म दे। चलो देखा जाय, बाद में पूछकर कुछ करना चाहिए।" वे आयीं और देखा कि वह बिस्तर पर मुँह तक लिहाफ़ ओढ़े लेटी हुई है। उसे देखकर वे बोली, “ए बहन, यह कोई जन्म देने का तरीक़ा नहीं है। हमारी माँ जब बच्चे को जन्म देनेवाली होती थी तो किसी ऊँची जगह पर जाती थी।" यह कहकर उन्होंने छत की तरफ इशारा किया, फिर बोलीं, “दाइयाँ नीचे चादर लेकर खड़ी रहती थीं और माँ ऊपर से उस चादर में बच्चे को जन्म देती थी।" यह सुनकर लड़की को कोई राह नहीं सूझी सिवाय इसके कि उनकी राय क़बूल करे। बच्चे के जन्म का समय निकट आ गया था। बहनों ने देखा कि छोटी बहन ने एक रेशम के-से बालोंवाली लड़की और सोने के-से बालोंवाले लड़के को जन्म दिया है। अब इन्हें अपना बदला लेने का मौक़ा हाथ आया था। जल्दी से उन दोनों बच्चों को उठाकर दूर पानी की चक्की के समीप छुपा दिया और दो कुत्ते के बच्चे लाकर डाल दिये। छोटी बहन ने पूछा, “क्या लायी हूँ मैं इस दुनिया में?" बहनें बोलीं, “ए बहन, क्या कहें, खाक सिर पर, इन्सान के बच्चे की जगह तुमने कुत्ते के बच्चों को जन्म दिया है।" सुनकर छोटी बहन रोने लगी। रोकर कहने लगी, “अब क्या करूँ?" इसी बीच शाहज़ादा भी आ गया और वह बड़े घमण्ड के साथ पूछने लगा कि रानी ने क्या जन्म दिया है। बहनें बोलीं, “ए शाहज़ादे, तुम्हारी रानी ने बजाय इन्सान के बच्चों के, कुत्ते के बच्चों को जन्म दिया है।" यह सुनकर शाहज़ादा इतना अपमानित हुआ कि गुस्से में आकर हुक्म दिया कि रानी की आँखें प्याले में निकालकर रख दी जायँ।


पास में ही एक गड़रिया रहता था जो रोज़ भेड़ें चराने जाता था। इस भेड़ों के झुण्ड में एक बकरी भी थी जो एक बुढ़िया की थी। रोज़ बकरी चरने जाती थी ताकि उसके दूध से बुढ़िया का पेट भर जाय। उस दिन भी भेड़ के झुण्ड के साथ बकरी चरने गयी थी और झुण्ड से कुछ दुरी पर अकेली चर रही थी। धीरे-धीरे चलते-चलते वह एक खंडहर के पास पहुँच गयी। वहाँ पहुँचकर बकरी ने बू-सी सूंघी और आवाज़ सुनी। बाद में देखा कि दो बच्चे चक्की के पास पड़े रो रहे हैं। उसने अपने दूध से उनका पेट भरा और वापस लौट आयी।


शाम को जब बुढिया ने चाहा कि दूध दुहे तो देखा, थन में एक बूंद भी दूध न था। वह समझ गयी कि यह काम गड़रिये का है। उसने बकरी दुह ली है। उसने बिना क़सूर के गड़रिये को काफ़ी बातें सुनायी। गड़रिये को पता था कि उसने यह काम नहीं किया है, न करता है, मगर रोज़ ऐसा ही होता रहा। एक दिन चक्कीवाला बोला, “ऊपर जाकर ख़राब चक्की को ठीक कर डालूँ।” ऊपर गया तो ‘शलप', 'शलप' की आवाज़ सुनायी पड़ी। वहाँ पहुँचा तो देखा, दो बच्चे पानी से खेल रहे हैं। उन्हें प्यार से उठाकर गोद में लिया और नीचे आकर बोला, “कई साल बाद हमारी आरजू पूरी हुई है। इनकी अच्छी तरह देखभाल करो। आज से मैं सकून से सो सकता हूँ कि बुढ़ापे का सहारा हमें मिल गया है।"


समय गुज़रता गया और वह लड़का और लड़की बड़े हो गये। एक दिन एक दूसरे से बोले, “कैसे यक़ीन करें कि यह हमारे माँ-बाप हैं?" दोनों यही बोलते रहे, आख़िर सोचा कि यहाँ से भाग चलते हैं। तय यह हुआ कि लड़की दरवाज़े पर खड़ी कंघी करेगी और लड़का कंघी लेकर घर से दूर भागेगा और पत्थर पर रख देगा। इस बात पर लड़की खूब रोयेगी और बहाने से बुढ़िया से इजाज़त माँगकर कंघी उठाने भाई के पीछे भागेगी और फिर दोनों भाग जायेंगे। दोनों ने यही किया। जैसे-जैसे भाई आगे भागता, वैसे-वैसे बहन पीछे भागती। दोनों चक्की से दूर और एक-दूसरे से नज़दीक होते गये। फिर इसी तरह करते-करते बहुत दूर निकल गये। चलते-चलते बियाबान के बीच में एक चारदीवारी के पास पहुँचे। वहीं रात गुज़ारी। सुबह उठकर भाई बोला, “मैं जा रहा हूँ ताकि फाख्ता का शिकार करूँ।” चलते-चलते एक बहेलिये के पास पहुंचा। बहेलिये से बोला, “अगर मैं तुम्हारा कुछ काम कर दूं तो क्या तुम मुझे खाने को दोगे?" बहेलिया मान गया। दिन ढलते ही बहेलिये ने उसे एक हिरन और एक फाख़्ता दे दिया और बोला, “आज तुम बहुत दौड़े हो। यह तुम्हारा हिस्सा है।" शाम को लड़का चारदीवारी पर पहुँचा और बहन से बोला, “यह हिरन हमारे लिये बहुत ज़्यादा है। अच्छा हो कि मैं शहर जाकर बेच आऊँ।" शिकार किये गये हिरन को लेकर वह शहर की तरफ चला। शहर पहुँचकर एक दुकान पर गया। दुकान की दीवार पर एक औरत की तस्वीर टंगी हुई थी। ऐसी सुन्दर औरत थी कि जिसका ज़मीन पर मिलना मुश्किल था। उसने दुकानदार से पूछा, “इस तस्वीर को पहचानते हो? अगर तुम इसका पता मुझे दे दो तो तमको हिरन दे दूँगा।" दुकानदार बोला, “यह तस्वीर एक ज़ादूगरनी की है, जो जंगल में एक महल में अकेली रहती है। अभी तक कोई उस तक पहुँच नहीं पाया है। इस समय इससे सुन्दर इस ज़मीन पर कोई नहीं है।" यह सुनकर और जादूगरनी का पता लेकर लड़का घर लौटा और बहन से बोला, “चलो यहाँ से चलते हैं।"


चलते-चलते दोनों ज़ादूगरनी के महल के पास पहुंचे और देखा कि महल सात मंज़िला है। उसी समय एक बूढ़ा मर्द वहाँ से गुज़रा और उससे बोला, “यह महल जादूगरनी का है। अगर वह जान लेगी तो दूसरों की तरह तुम्हें भी काट डालेगी और तुम्हारा कटा सिर दीवार पर सजा देगी। अच्छा है कि तुम दोनों यहाँ से भाग जाओ।" लड़का बोला, "मैं तो उससे शादी करने आया हूँ।" बूढ़ा बोला, “तुम्हारी तरह हज़ारों आये और मारे गये। आख़िर तुमने इस काम के लिए हिम्मत कैसे की?"


लड़के ने बूढ़े की बात पर ध्यान न दिया और महल में घुस गया। वहाँ देखा कि दीवारों पर सिर टॅगे हुए हैं। तभी जादूगरनी की नज़र उस पर पड़ी। वह बोली “क्यों, किसलिए तुमने अपनी बहन को महल के दरवाज़े पर खड़ी कर रखा है। जाओ, उसे ले आओ ताकि मैं जान सकूँ कि तुम कौन हो, तुम्हारा बाप कौन है?" लड़का गया और बहन को ले आया। ज़ादूगरनी ने बड़ी ख़ुशी से उनकी आवभगत की। लड़का बोला, “मुझे तुमसे अजीब-सा लगाव हो गया है।" जादूगरनी बोली, “मगर हम इस ज़िन्दगी में एक साथ नहीं रह सकते।"


एक दिन ज़ादूगरनी ने जवान से कहा, “आज बादशाह इस महल के पास से गुज़रेगा। तुम छत पर खड़े रहो। जैसे ही वह गुज़रे, तुम खाने के लिए उनको दावत देना, वह क़बूल कर लेगा। फिर मैं तुम्हें बताऊँगी कि आगे क्या करना है।" दोपहर हुई और बादशाह खाने के लिए आया। ज़ादूगरनी छुप गयी। उसने लड़के से पहले ही कह रखा था कि सोने के मुर्गे को सुफरे पर ले जाना और बादशाह जब खाना शुरू करे तो मुर्गे की चोंच प्याले में डालकर कहना, “क्यों मुर्गे क्यों, दाना नहीं खा रहे हो।" तब बादशाह कहेगा, "ए जवान, सोने का मुर्गा दाना नहीं चुगता।" उस पर तुम कहना, "बादशाह की रानी भी कुत्तों को जन्म नहीं देती है।" जब सब खाने के लिए सुफरे पर बैठे तो जवान ने ज़ादूगरनी के कहे अनुसार सब-कुछ किया। यह देखकर बादशाह बोला, "कहीं सोने का मुर्गा भी दाना चुगना जानता है?"


“ए बादशाह, अगर सोने का मुर्गा दाना नहीं चुग सकता है तो यह कैसे हो सकता है कि रानी इन्सान होकर कुत्ते के बच्चों को जन्म दे।" यह सुनकर बादशाह अपनी अंगुली दाँतों तले दबाकर बोला, “क्या हुआ था जो मेरी रानी ने कुत्ते के बच्चों को जन्म दिया?" तभी ज़ादूगरनी आगे आयी और बोली, “ए बादशाह, यह लड़कालड़की जो तुम देख रहे हो, तुम्हारे ज़िगर के टुकड़े हैं।" यह सुनते ही बादशाह ख़ुश हो गया और सबको शाही महल में ले गया। जब ज़ादूगरनी महल में पहुँची तो उसने ऐसा काम किया कि अन्धी रानी की आँखें ठीक हो गयीं। ज़ादूगरनी वहाँ महल में ठहरी नहीं, बल्कि अपने महल में लौट आयी।


शाम हुई तो बादशाह बोला, “छह घोड़े मँगवाये जायें और हुक्म दिया कि छहों बहनों को रस्सी से उन घोड़ों के साथ बाँधा जाय और उनको बियाबान में ले जाकर इतना घसीटा जाय कि उनके शरीर का कोई अंग, सिवाय खोपड़ी के, न बचे और खोपड़ियाँ मेरे लिये ले आना।"


रस्सी लड़कियों की गर्दन में बाँधी गयीं और घोड़े तेज़ दौड़ाये गये। घोड़े तब तक दौड़ते रहे जब तक उनके शरीर में सिर्फ खोपड़ी न बच गयी। जलनभरी उन खोपड़ियों को बादशाह के पास लाया गया। वे खोपड़ियाँ आग में डाल दी गयीं और वे जलती रहीं, जलती रहीं, यहाँ तक कि राख हो गयीं और उस राख को महल के बाहर फेंक दिया गया।


कुछ दिनों बाद वह जगह जहाँ वे खोपड़ियाँ जो राख हो गयी थीं और फेंक दी गयी थीं, हरी हो गयीं और वहाँ घास उग आयी।


अनुवाद: नासिरा शर्मा, नई दिल्ली, मो. 9811119489


Popular posts from this blog

अभिशप्त कहानी

हिन्दी का वैश्विक महत्व

भारतीय साहित्य में अन्तर्निहित जीवन-मूल्य