समीक्षा : 'चुनी हुई कविताएँ'
समी. : राधेलाल बिजधावने, अरेरा कालोनी, भोपाल
'चुनी हुई कविताएँ'- सृजनात्मक सामाजिक चेतना को विकसित करती कविताएँ
कविताएँ मानवीय मन में रचनात्मक ऊर्जा पैदा कर मानवीय सोच को फ़िल्टर करती, संवेदनात्मक प्रतिभा को संवारती हैं तथा मानवीय अस्मिता के अहसासों को विस्तारित करती हैं। इसके साथ ही अंधेरे से डरे लोगों के मन में आत्मविश्वास पैदा कर उनको उजाले की आत्म शक्ति की ओर आगे बढाती हैं। ये जन चेतना के दरवाज़ों को खटखटाती हैं।
“चुनी हुई कविताएँ” संग्रह की राजेन्द्र नागदेव की कविताएँ - समाजोन्मुख सृजनात्मक चेतना की जुझारू कविताएँ हैं जो निजी एवं सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक नैतिक मूल्यों के संकटों को बारीकी के साथ पहचानती हैं। इन कविताओं में विचारों और भाषा शिल्प का नितांत नया अन्वेषण सृजनात्मक प्रतिफलन के साथ प्रस्तुत हुआ है। संग्रह की कविताएँ तमाम मानवीय खामियों और विरोधाभासों को प्रस्तुत करने में सक्रिय नज़र आती हैं। राजेन्द्र नागदेव की कविताएँ करुणा जनित संवेदना की हैं जो सम्पूर्ण मानव जीवन के प्रति बढ़ते अन्याय का प्रतिरोध करती हैं तथा नये लय विधान की उद्भावना को स्वीकारती हैं। इन कविताओं में संवेदनात्मक उत्स, व्यक्ति की स्वतंत्र लोक भावना के आधार पर प्रस्तुत हुआ है।
"हत्यारा घर के पिछवाड़े
तलवार को धो पौंछ कर चमका रहा है
उसने तलवार पर कल के लिए लिख दिया है
एक बच्चे का नाम
उस बच्चे का
जिसकी थकी हुई आवाज
ख़ामोशी को हिलाती हुई रह रह कर आ जाती है
वह बुला रहा है देर से पड़ौस के घर में
अपनी मरी माँ को।
हत्यारा खूब अच्छी तरह चमका रहा है
तलवार पर बच्चे का नाम,
प्रेम और युद्ध के बारे में
उसे कुछ नहीं मालूम
पर दंगे के बारे में
अच्छी तरह मालूम है कि
उसमें सभी कुछ जायज़ है। ('दंगे के बाद'- पृ 96) “चुनी हुई कविताएँ” संग्रह की राजेन्द्र नागदेवजी की कविताएँ विचार परंपरा से जुड़ी हैं। संग्रह की कविताएं लम्बे और पके अनुभवों को काव्य रूप में ग्रहण करती हैं। इसलिए कवि की इन कविताओं का तानाबाना भिन्न है। ये कविताएँ सामाजिक विकृतियों, विद्रूपताओं का खुलासा करती हैं। इसलिए भी कि न्याय और समता पर आधारित होने के मानवीय मूल्यों को प्रतिष्ठित करती हैं तथा साजिशों को रचने वाले लोगों के चेहरों को बेनकाब करती हैं।
“सड़क पर उस दिन
भर चुकी थी बस और चलने को थी ही
कि सबकुछ उलट गया
धुआँ, चीखें, हवा में हाथ, हवा में पाँव
हवा में सिर, हवा में चुनरी
हवा में उछली दूध की बोतल
जिसे बच्चे ने शुरू किया ही था अभी चूसना
फिर दो-चार पलों में जमीन
पर सबकुछ पर कुछ भी नहीं पहले की तरह
किसी थैले की चिन्दियाँ इधर उधर
बारूद और नफ़रत को
ठूस कर किसी ने भरा था इन्हीं चिंदियों में
कुछ लोग शरीरों में से निकले और चले गए बहुत दूर,
अपने घर से
इतने लंबे सफ़र पर निकले तो नहीं थे लोग। (“ सड़क : पाँच चित्र” पृ 144) इस संग्रह की राजेन्द्र नागदेव की कविताएँ मानव संवेदना से पूर्ण हैं। ये कविताएँ करुणा तथा आशा का अभावुकतापूर्ण दृढ़ संकल्प ग्रहण करती हैं। इसलिए संग्रह की कविताएँ अपने समय के मानवीय मूल्यों की समाज के प्रति जबाबदेही को नि:संकोच स्वीकारती हैं।
संग्रह की कविताएं विस्मृत अतीत की जाती संवेदनाओं को पुनर्जीवित करती हैं। संग्रह की कविताएँ पीड़ाओं, त्रासदियों के सागर में डूबते लोगों को बचाने की कोशिश करती हैं। मानवीय प्रकृति एवं प्रवृत्तियों से जुड़ी उन घटनाओं से ताल्लुक इन कविताओं का है जो मानवीय जीवन को पूरी तरह प्रभावित कर उसके अस्तित्व को मिटा देने की कोशिश में सक्रिय होती हैं। संग्रह की कविताएं गहरे आत्म निरीक्षण से गुजरती हैं इसलिए मानवीय मन की भीतरी सच्चाइयों को प्रस्तुत करती हैं
"एम्बुलेन्स ढो रही है
कितना सारा दर्द
कोई मृत्यु की नदी के किनारे
लेटा हुआ है
और नदी की एक लहर
उतावली हो रही है
उसे अपने में लपेट कर ले चलने के लिए” ( ‘एम्बुलेन्स'- पृ 114)
“चुनी हुई कविताएं” संग्रह की कविताएँ समय की तासीर और उसके रंग को पहचानती हैं। ये कविताएँ मानव मुक्ति एवं स्वतंत्रता की चिंताओं से गहरे से जुड़ी हैं और दुष्काल में उम्मीदें जगाती हैं। कविताओं में संवेदनशीलता का बिम्ब है। सर्व संकट हरण की मन:स्थिति इन कविताओं के केन्द्र में है।
राजेन्द्र नागदेव की कविताओं में मानवधर्मी नैतिकता को महत्व दिया गया है और नैतिक मूल्यों के पतन के प्रति गहरी चिंता व्यक्त की गई है। ये आत्मानुभूतिपरक कविताएँ नये नये खोल ओढने वाले अन्यायियों, अत्याचारियों की अनैतिकता की सारी खोलों को उघाड़ती हैं। संग्रह की कविताएँ बाजारीकरण के खतरों को भी उजागर करती हैं।
कृति- 'चुनी हुई कविताएँ रचनाकार- राजेन्द्र नागदेव प्रकाशक- शिवना प्रकाशन, पी सी लैब, सम्राट काम्प्लेक्स
बस स्टैण्ड, सिहोर मूल्य- दो सौ रुपये
लेखक राजेन्द्र नागदेव डीके 2 - 166/18, दानिशकुंज कोलार रोड भोपाल-462042 (को) 8989569036