व्यापारी का तोता

फारसी के प्रसिद्ध कवि मौलाना रूम की मसनवी की एक कथा


एक व्यापारी था। उसके पास एक बहुत बातूनी तोता था। वह उस तोते से बहुत प्रेम करता था। वह सदा व्यापार में उलझा रहता। पर जब भी उसे समय मिलता, वह तोते से बातें करके अपना मन बहलाता था।


एक बार व्यापारी की इच्छा हुई कि वह भारतवर्ष की ओर जाए। व्यापारी ने : आवश्यक काम समाप्त किया और फिर वह भारतवर्ष के भ्रमण पर चल पड़ा। चलते समय परिवार के सभी सदस्यों ने उपहारों की फरमाइशें कीं। व्यापारी ने अपने मित्र तोते से स्वयं पूछा, “ऐ मेरे प्यारे तोते! तुम्हारे लिए मैं भारतवर्ष से क्या लाऊँ?"


तोता (जो बहुत दिनों से पिजड़े में बन्द था) दुखी मन से बोला, “मुझे कुछ भी नहीं चाहिए। मेरी हार्दिक इच्छा है कि आप जब भारतवर्ष पहुँचें और हरे-भरे वनों में प्रसन्न और स्वतंत्र घूमने वाले तोतों को देखें, तो मेरा नमस्कार उन तक पहुँचाएँ और मेरा यह सन्देश भी उनसे कहें कि क्या इसे दोस्ती और सम्बन्धी होना कहते हैं कि तुम लोग स्वतंत्र घूमो, हरे-भरे खुले वातावरण में उन्मुक्त उड़ो और मैं यहाँ क़ैदी के सामान पिजड़े में बन्द रहूँ.. मेरे बारे में भी तो विचार करो और दूर पड़े क़ैदी के लिए कोई उपाय निकालो!"


व्यापारी ने ध्यान से सन्देश सुना और वायदा किया कि वह अवश्य उसका सन्देश पहुँचाएगा।


व्यापारी भारतवर्ष पहुँचा। एक घने सुन्दर वन से गुजरते हुए उसने वृक्षों पर फुदकते हुए ढेरों तोते देखे। वह रुक गया। एक वृक्ष के नीचे जाकर उसने तोतों से अपने प्रिय बातूनी तोते का सन्देश कहना शुरू किया। अभी वह अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि वृक्षों पर बैठे तोतों में से एक तोता काँपा और तड़पकर धरती पर आ गिरा।


यह दृश्य देखकर व्यापारी दुखी होकर सोचने लगा-यह क्या हुआ? इस नन्हें-से जीव की मृत्यु का कारण मैं ही बना। क्यों मैंने सन्देश सुनाया? इससे दुख नहीं सहा गया। बेचारा अपनी जान से हाथ धो बैठा।


थोड़े समय तक वह बुत बना खड़ा रहा। फिर विचार करने लगा-अब, पछताने से क्या होगा! कमान से निकला तीर वापस थोड़े ही आता है!


वह विचार में डूबा लौट आया। अपने देश की ओर लौटने से पहले उसने । अपने सारे परिवार के सदस्यों के लिए ढेर सारे उपहार खरीदे।


जैसे ही वह अपने घर में घुसा, तोते ने व्याकुलता से पूछा, “कहाँ है मेरा : उपहार? तोतों तक मेरा सन्देश पहुँचा दिया था न? मेरे सम्बन्धियों ने क्या उत्तर दिया? : जो भी उन्होंने उत्तर दिया हो, बिना घटाए-बढ़ाए एक-एक शब्द मुझे बताइए।" : ये सारे प्रश्न तोते ने एक साँस में कर डाले। - व्यापारी ने ठंडी साँस खींची, “ऐ मेरे प्यारे तोते! उस बात को भूल जाओ कि तुमने कोई सन्देश मुझसे कहलवाया था। मैं स्वयं पश्चाताप की अग्नि में जल रहा हूँ।


कि मैंने क्यों तुम्हारा सन्देश पहुँचाया।


तोते ने कहा, "कुछ तो बताइए!"


व्यापारी ने दुखी कंठ से उत्तर दिया, “ज़िद्द मत करो। यह बात सुनने की :हिम्मत तुममें नहीं है। मैं स्वयं को कोस रहा हूँ कि क्यों मैंने तुम्हारा कहना माना!" 


"ऐसा क्या हो गया है जो आप इतने चिन्तित हो उठे हैं?" तोते ने व्यग्रता से पंख फड़फड़ाए।


व्यापारी ने उत्तर दिया, 'मैं तुम्हारा सन्देश तोतों से कह ही रहा था कि उनमें से एक तोते ने क्रोध व दुख से अपनी जान दे दी। वह वृक्ष पर बैठा काँपता रहा, फिर तड़पकर नीचे गिर पड़ा। यह देखकर मैं लज्जित हो उठा। पर लज्जित होने से लाभ भी क्या था!"


जैसे ही व्यापारी ने बात समाप्त की, तोता काँपने लगा और पिजड़े में गिर पड़ा। उसके प्राण-पखेरू उड़ गए।


इस दृश्य को देखकर व्यापारी चिल्ला पड़ा और विलाप करने लगा। वह दुख से हाथ मलने लगा। फिर दूसरी गलती हो गई।


अब रोने से लाभ भी क्या था। उसने पिजड़े का दरवाजा खोला। तोते को बाहर निकालकर रखा। जैसे ही उसने तोते को बाहर रखा, तोता झट उड़कर सामने : दीवार पर बैठ गया।


व्यापारी का मुख अचरज से खुला का खुला रह गया। उसकी समझ में न : आया कि वह क्या बोले। तोते ने अपना मुख व्यापारी की ओर घुमाया और कहा, "मैं आपको कितना धन्यवाद दूँ कि आप मेरे लिए कैसा अनमोल उपहार लाए थे। वह उपाहर है स्वतंत्रता। उस तोते ने अपने को गिराकर बताया था कि मैं स्वयं को किस प्रकार स्वतंत्र कर सकता हूँ।" व्यापारी निःशब्द खड़ा रह गया।


अनुवाद: नासिरा शर्मा, नई दिल्ली, मो. 9811119489


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